नई दिल्ली: राज्यसभा में शुक्रवार को कांग्रेस सांसद राजीव सातव ने ओबीसी जनगणना की मांग उठाई. उन्होंने कहा कि जब जानवरों और पेड़ों की गणना हो सकती है तो फिर ओबीसी की जनगणना क्यों नहीं हो सकती? कांग्रेस के महाराष्ट्र से राज्यसभा सदस्य राजीव सातव ने शुक्रवार को सदन में ओबीसी जनगणना का मुद्दा उठाते हुए कहा कि जब गोपीनाथ मुंडे संसद सदस्य थे, तब उन्होंने भी इसकी मांग उठाई थी.
बरसों से इसकी मांग उठ रही है. राजीव सातव ने कहा, सरकार जब जानवरों की जनगणना कर सकती है, पेड़ों की कर सकती है तो ओबीसी की जनगणना क्यों नहीं?
2018 में किया था आश्वस्त
ओबीसी की जनगणना के लिए सरकार ने 2018 में आश्वस्त किया था, 2019 में भी किया था, लेकिन अभी पता चल रहा है कि ओबीसी का कॉलम हटाया गया है. कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य ने कहा कि ओबीसी को सही लाभ मिल रहा है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए उनकी जनगणना होनी चाहिए. इसके लिए केंद्र सरकार पहल कर सकती है. ओबीसी की जनगणना के लिए सरकार को कदम उठाया चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में 26 फरवरी को हुई थी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में 26 फरवरी को जाति आधारित जनगणना को लेकर सुनवाई हुई थी. पिछड़े वर्गों के लिए जाति-आधारित जनगणना की याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने केंद्र, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्रालय को नोटिस जारी किया था और केंद्र से इस मसले पर जवाब मांगा था.
कहा गया कि 2021 की जनगणना के फॉर्म में धर्म, SC/ ST स्टेटस का कॉलम है, लेकिन OBC स्टेटस के बारे में कोई कॉलम नहीं है. याचिकाकर्ता के मुताबिक शिक्षा, रोजगार, चुनाव आदि में आरक्षण लागू करने में ओबीसी की जातिगत जनगणना की अहम भूमिका है.
1931 में हुई थी आखिरी जातिगत जनगणना
जातिगत आधार पर जनगणना की मांग में देश में कई सालों से चल रही है. दरअसल 1931 में आखिरी बार जातिगत जनगणना पर आधारित आंकड़े तैयार किए गए थे. इसी आधार पर तैयार की गई मंडल आयोग की सिफारिशों पर तत्त्कालीन वीपी सिंह सरकार ने ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी. सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन की एक शाखा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) ने 2006 में देश की आबादी पर नमूना सर्वेक्षण रिपोर्ट की घोषणा की और कहा कि देश में ओबीसी आबादी कुल आबादी की करीब 41 फीसदी है.
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दोबारा सामने आ रही जातिगत जनगणना न होने की बात
2018 में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 2021 की जनगणना के लिए तैयारियों की समीक्षा की थी. इस दौरान गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘पहली बार ओबीसी से संबंधित आंकड़े भी इकट्ठा करने का विचार किया गया है. इसके बाद से 2021 की होने वाली जनगणना को बेहद खास माना जा रहा था, लेकिन 2020 के आखिरी में फिर सामने आया कि जातिगत जनगणना नहीं होगी. इसे लेकर विरोध के सुर मुखर हो रहे हैं.
दरअसल, देश में जातिगत आधार पर जनगणना की मांग काफी समय से हो रही है. ऐसे में 2021 की जनगणना की प्रक्रिया के बीच जातिगत आधार पर जनगणना कराने की मांग जोर पकड़ रही है. सीएम नीतीश कुमार ने हाल ही बिहार विधानसभा में जाति आधारित जनगणना कराने के पक्ष में बयान दिया दिया था.
सपा मुखिया अखिलेश यादव समेत कई और नेता भी ऐसी ही मांग उठा चुके हैं. इससे पहले भी साल 2011 में जनगणना के दौरान देश में जाति आधारित जनगणना की मांग उठी थी. भारत में जनगणना का काम इस साल (2021) होना है. इसकी शुरुआत पिछले साल ही होनी थी लेकिन कोरोना संकट के चलते इसे टाल दिया गया था. केंद्र अब इस प्रक्रिया को शुरू करना चाहता है.
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