नई दिल्ली: कोरोना की दो मार झेल चुके लोगों के जीवन की गाड़ी धीरे धीरे पटरी पर लौट रही है, लेकिन तीसरी लहर को लेकर डर भी बना हुआ है. इन सबके बीच सरकारों के स्कूल खोलने के फैसले पर काफी बहस हो रही है. कुछ कहते हैं ये सही समय नहीं है, तो कुछ कहते हैं आखिर कब तक बच्चों को स्कूल से दूर रखेंगे.
आने वाले वक्त में कोरोना कितना खतरनाक?
कुछ खबरें ऐसी भी आईं कि आनेवाले दिनों में कोरोना मामूली सर्दी जुकाम बन कर रह जाएगा. तो फिर सवाल है कि क्या अब तीसरी लहर नहीं आने वाली, अगर आई तो कितनी भयानक होगी, स्कूल खुल गए तो क्या बच्चे इसकी चपेट में नहीं आएंगे आइए इन्हीं सवालों के जवाब समझने की कोशिश करते हैं.
क्या अब नहीं आनेवाली तीसरी लहर?
IIT हैदराबाद-कानपुर के एक्सपर्ट्स ने एक रिसर्च किया है, जिसके मुताबिक भारत में कोरोना की तीसरी लहर इसी महीने यानी अगस्त में ही आ सकती है. वहीं अक्टूबर में तीसरी लहर चरम पर होगी. कोरोना को लेकर यह ताजा अनुमान या आकलन शोधकर्ताओं ने गणित के मॉडल के आधार पर किया है कोरोना की दूसरी लहर को लेकर इनका अंदेशा सटीक बैठा था.
शोधकर्ताओं का मानना है कि कोरोना की तीसरी लहर दूसरी लहर जितनी घातक नहीं होगी, हालांकि इसमें रोज कोरोना के नए एक-एक लाख केस देखने को मिल सकते हैं. वहीं CSIR का भी मानना है कि कोरोना वायरस की तीसरी लहर निश्चित रूप से आ रही है, लेकिन यह अनुमान लगाना काफी कठिन है कि यह कब आएगी. यानी IIT के रिसर्च और CSIR दोनो के अध्ययन के मुताबिक कोविड की तीसरी लहर हर हाल में आएगी.
सर्दी जुकाम वाला VIRUS कोविड का करेगा खात्मा?
कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि सामान्य सर्दी-जुकाम वाला वायरस इंसान के शरीर से कोरोना वायरस को बाहर निकाल सकता है. कुछ वायरस ऐसे होते हैं जो इंसानी शरीर को संक्रमित करने के लिए दूसरे वायरस से लड़ते हैं. सामान्य सर्दी-जुकाम वाला राइनो वायरस भी कुछ ऐसा ही है जो कोरोना वायरस को हरा सकता है.
ग्लास्गो में सेंटर फॉर वायरस रिसर्च की टीम ने प्रयोग के लिए इंसान के श्वसन तंत्र जैसा एक ढांचा और कोशिकाएं बनाईं. फिर उसमे सार्स-CoV-2 वायरस और सामान्य सर्दी-जुकाम के लिए जिम्मेदार राइनो वायरस दोनों को एक ही समय पर रिलीज किया, लेकिन सफलता सिर्फ राइनो वायरस यानी सर्दी-जुकाम वाले वायरस को मिली ,यानी राईनो ने सार्स CoV-2 को निष्प्रभावी कर दिया.
मामूली सर्दी जुकाम बन कर रह जाएगा कोरोना?
एक रिसर्च कहती है कि भले ही कोरोना ने अभी हमें परेशान कर रखा हो लेकिन भविष्य में कोरोना आम सर्दी-जुकाम जैसा हो कर रह जाएगा. इस रिसर्च में कहा गया है कि भविष्य में सार्स-सीओवी-2 ऐसा संक्रमण बन सकता है, जिससे बच्चे 3 से 5 साल तक की आयु में ही संक्रमित हो जाएंगे और ऐसा होने पर यह संक्रमण मामूली बन जाएगा.
बचपन में संक्रमित हो जाने के कारण उनमें इसके खिलाफ रोग प्रतिरोधी क्षमता विकसित हो चुकी होगी. भविष्य में कोरोना से लोग संक्रमित तो होंगे लेकिन ये घातक नहीं रह पाएगा.
स्कूल खोलने का फैसला कितना सही?
कई पैरेंट्स के मन में बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर झिझक है, जो स्वाभाविक भी है तो क्या बच्चों में कोविड के कम असर को देखते हुए ये फैसला लिया गया है. दरअसल, देश में हुए चौथे देशव्यापी सीरो सर्वे में पता चला है कि 6 से 9 साल के 57 फीसदी बच्चों में एंटीबॉडी बन चुकी है.
वहीं 10 से 17 साल के 62 फीसदी बच्चों में एंटीबॉडी मिली है. इतना ही नहीं, दिल्ली के कुछ स्लम क्लस्टर में बच्चों में 80-90 फ़ीसदी एंटीबॉडी पाई गई है यानी बड़ों के मुकाबले बच्चों में कोविड के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता बनने की रफ्तार ज्यादा है.
ICMR ने सबसे पहले दिया था सुझाव
ICMR भी स्कूल खोलने के फैसले का समर्थन कर चुका है, उसके मुताबिक बच्चों का शरीर संक्रमण से ज्यादा अच्छी तरह लड़ सकता है. उसने सीरो सर्वे में बच्चों में मिली एंटीबॉडी का हवाला दिया था, ICMR के महानिदेशक डॉक्टर भार्गव का कहना था कि बड़ी कक्षाओं की जगह प्राथमिक कक्षाओं के लिए स्कूल खोलना बेहतर होगा.
भारत में ज़्यादातर राज्यों में प्राइमरी स्कूल पिछले साल मार्च से ही बंद हैं. 9वीं-12वीं कक्षा के छात्रों के लिए किसी-किसी राज्य ने थोड़ी छूट दी थी, लेकिन प्राइमरी के छात्रों को वो मौक़ा पिछले डेढ़ साल से नहीं मिला है.
8-12 वीं तक के स्कूल ही खुले हैं
ICMR ने कहा था कि पहले प्राइमरी स्कूल से शुरुआत की जाए, फिर सेकेंडरी स्कूलों के बारे में सोचा जाए लेकिन कई राज्यों में पहले 8 वीं से 12 तक के ही स्कूल खोले गए हैं. तो कुछ राज्यों में खोलने की तैयारी चल रही है.
बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा ,मध्य प्रदेश,हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब में कोरोना गाइडलाइंस के साथ स्कूल खुल चुके हैं, तो उत्तर प्रदेश में 16 अगस्त से स्कूल खोलने की तैयारी है. लेकिन राजधानी दिल्ली, केरल समेत कई राज्यों में फिलहाल स्कूल बंद ही रखे गए हैं. जहां ज्यादातर राज्यों ने बड़ी कक्षाओं को पहले खोला है. वहीं पंजाब ने प्राइमरी से सीनियर सेकेंडरी तक सभी कक्षाओं के लिए स्कूल खोल दिया है.
कई देशों ने बंद नहीं किया था स्कूल
महामारी के दौरान जब भारत में स्कूल कॉलेज बंद थे उसस वक्त विश्व के कई देशों ने प्राइमरी क्लास के बच्चों के लिए स्कूल खोले रखा, वहां बच्चों को महामारी से ज्यादा खतरा नहीं हुआ. आज भी विश्व के 170 देशों में स्कूल खुले हुए हैं.
दुनिया भर में हुई रिसर्च में जो बात निकल कर सामने आई है, वो ये कि बच्चों में कोविड 19 का इंफेक्शन जरूर होता है, लेकिन बीमारी गंभीर रूप नहीं लेती है. कुछ स्टडी ऐसी भी आई हैं, जिनमें पता चला है कि बच्चों को कोविड 19 के मुक़ाबले ज्यादा खतरा सीजनल फ्लू की वजह से है.
ऑनलाइन क्लास स्कूल का विकल्प नहीं
कोरोना संक्रमण की वजह से पिछले करीब डेढ़ साल से स्कूल बंद हैं और बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है. लेकिन जहां नेटवर्क की सुविधा नहीं है, जिन गरीब बच्चों के पास मोबाइल-लैपटॉप नहीं हैं, उन बच्चों को काफी परेशानी हो रही है. इस वजह से स्कूलों को धीरे-धीरे खोलने का फैसला लिया जा रहा है.
दरअसल, पिछले साल कोरोना संक्रमण के चलते 24 मार्च को लगे लॉकडाउन के बाद से ही स्कूल बंद कर दिए गए थे. बड़े बच्चे तो फिर भी ऑनलाइन क्लास कर लेते हैं, लेकिन छोटे बच्चों के साथ उनके पैरेंट्स को भी इसमें दिक्कत होती है. एक बच्चे के लिए स्कूल जाना उसके समग्र विकास यानी शैक्षणिक के साथ ही सामाजिक, शारीरिक, मानसिक विकास में अहम रोल अदा करता है जो ऑनलाइन क्लास के जरिए संभव नहीं है.
दिसंबर तक सभी को लग जाएगी वैक्सीन?
कोरोना के खिलाफ जारी इस जंग में सबसे बड़ा हथियार वैक्सीन है कोविड-19 महामारी के खिलाफ देश में 16 जनवरी को टीकाकरण अभियान की शुरुआत हुई थी जो लगातार जारी है. मई में सरकार ने दावा किया था कि दिसंबर के अंत तक सबको वैक्सीनेशन का टारगेट पूरा कर लिया जाएगा.
उस वक्त सरकार ने 216 करोड़ डोज की उपलब्धता का दावा किया था, लेकिन जून के आखिर में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया अगस्त 2021 से दिसंबर 2021 तक कोविड-19 के कुल 135 करोड़ टीके ही उपलब्ध होंगे.
92 लाख टीका प्रतिदिन का हिसाब
देश की वयस्क आबादी यानी 18 साल से अधिक आयु का अनुमान 94 करोड़ के करीब है, जिसका मतलब है कि सभी को पूरी तरह से टीका लगाने के लिए 188 करोड़ खुराक की जरूरत है. जुलाई आखिर तक देश में कोरोना वैक्सीन की 47 करोड़ खुराकें दी जा चुकी हैं, अब बचे हुए महीनों में 141 करोड़ की खुराक दी जानी है.
इस हिसाब से लक्ष्य हासिल करने के लिए हर दिन करीब 92 लाख डोज देने की जरूरत है. सरकार के मुताबिक सितंबर के आखिर तक देश में 35 करोड़ औऱ डोज़ लग जाएंगे उसके बाद भी 106 करोड़ टीके की दरकार होगी.
आबादी के लिहाज से इतनी जल्द सबको वैक्सीनेट कर पाना एक बहुत बड़ी चुनौती है, फिर भी इतने कम वक्त में वैक्सीनेशन ने रफ्तार पकड़ी है. अब तक 2 कंपनियां ही वैक्सीन बना रही थी, अब 10 से ज्यादा कंपनियों में निर्माण शुरू हो चुका है. अब कोविशील्ड और कोवैक्सीन के अलावा स्पूतनिक V भी आ चुकी है. उम्मीद है टीकाकरण की रफतार और बढ़ेगी.
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