नई दिल्ली. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का न्यूज़ चैनल्स पर चल रहा एक विज्ञापन हैरान करता है. इसे देख कर समझ नहीं आता है कि आखिर चाहते क्या हैं केजरीवाल. आधे मिनट के आसपास का एडवर्ट आ रहा है कोरोना को लेकर आजकल टेलीविजन पर दिल्ली सरकार का, इसमें दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल का हसीन चेहरा बोलता नजर आता है. अगर आपने इसे सुना हो और आप हैरान न हुए हों तो आपको उसे फिर से सुनना चाहिये और इस बार ध्यान से सुनना चाहिये.


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क्या कहते हैं केजरीवाल


न्यूज़ चैनल्स पर चल रहे इस लगभग तीस सेकंड के सरकारी विज्ञापन में केजरीवाल तीस सेकंड्स में कुछ ऐसा कहते हैं जो न समझ आती है न हजम होती है. केजरीवाल इसमें कहते हैं कि अस्सी प्रतिशत कोरोना मरीजों में कोरोना के सिम्पटम्प्स या तो नजर नहीं आते या बहुत कम नजर आते हैं. ऐसे मरीजों को अस्पताल जा कर इलाज कराने की जरूरत नहीं है. वे घर में रह कर ही अपनी देखभाल कर सकते हैं. इस बारे में अधिक जानकारी लीजिये हमारी इस वेबसाइट से...


देखभाल से कोरोना मरीज ठीक हो जाते हैं क्या?


इस सरकारी विज्ञापन में केजरीवाल के शब्दों की चतुराई देखिये. केजरीवाल ये नहीं कह रहे हैं कि घर में रह कर अपना इलाज करवा लीजिये, वे कह रहे हैं घर में रह कर देखभाल कर लीजिये अपनी. क्या इलाज और देखभाल का फर्क केजरीवाल नहीं जानते? घर में रह कर कोरोना पेशेन्ट बिना दवाई अपनी देखभाल कैसे करेगा, ये केजरीवाल ने नहीं बताया. केजरीवाल ने ये भी नहीं बताया कि जिस आम आदमी की केजरीवाल की कोरोना वेबसाइट तक पहुंच न हो तो वो कैसे अपनी देखभाल करेगा? यदि कोरोना पेशेंट अपने परिवार को संक्रमित कर दे तब क्या होगा? यदि कोरोना मरीज के परिवारजन संक्रमित हो कर अपने पड़ौस को संक्रमित कर दें तो इस तरह धीरे-धीरे नहीं बल्कि जल्दी ही सारी दिल्ली संक्रमित हो जायेगी.  



 


क्या घर में कोरोना-सावधानियां रखी जा सकेंगी?


अस्पताल में जो सावधानी रखी जाती हैं क्या वो कोरोना रोगी घर में रख सकेंगे? क्या कोरोना के मरीजों के प्रति यही गंभीरता है केजरीवाल की? इलाज के बिना क्या कोरोना के मरीज अपने घर पर अपनी देखभाल करके दुनिया में कहीं ठीक हुए हैं क्या? क्या कोरोना कोई सर्दी-खांसी है कि घर जा कर उसकी देखभाल मरीज खुद कर सकता है?


क्या ये आंकड़े सही हैं ?


केजरीवाल कहते हैं कि अस्सी प्रतिशत लोगों में कोरोना के लक्षण या तो दिखते नहींं या बहुत कम दिखते हैं - क्या यह आंकड़ा केजरीवाल का अनुमान है या इसमें कुछ सच्चाई भी है - सबसे पहले तो इसकी जांच होनी चाहिये क्योंकि यह मामला दिल्ली के डेढ़ करोड़ लोगों की जान से जुड़ा हुआ है. केजरीवाल को बताना चाहिये कि ये आंकड़ा उनके पास किस स्रोत से आया है. 



 


''24 घंटों में करे डिस्चार्ज''


दिल्ली के आम आदमी के लिए आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अस्पतालों को आदेश दिया है कि किसी भी एसिम्प्टमेटिक और माइल्ड सिम्प्टम वाले कोरोना मरीज को 24 घंटे में डिस्चार्ज कर दिया जाए.  दिल्ली के नागरिकों के प्रति दिल्ली के अभिभावक का यह तानाशाहीपूर्ण व्यवहार किस तरह उचित है? क्या दिल्ली के लोगों को स्वास्थ्य का मूलभूत अधिकार प्राप्त नहीं है? 


क्या दिल्ली के अस्पताल भर गए हैं?


एक तरफ तो केजरीवाल का कहना है कि दिल्ली के अस्पतालों में कोरोना मरीजों के लिये बेड उपलब्ध हैं और दूसरी तरफ वे चाहते हैं कि कोरोना के रोगी अस्पताल न आयें. यदि बेड की कमी है या अस्पताल की कमी है या मेडिकल के साजोसामान कम पड़ गये हैं या डॉक्टर्स नहीं हैं तो क्या उन्हें वास्तविक स्थिति दिल्ली की जनता और केन्द्र सरकार को बतानी नहीं चाहिये? 



 


''घर जा के क्वारेंटाइन हो जाओ!'' 


दिल्ली में कोरोना मरीजों की शिकायतें आ रही हैं कि अस्पतालों में कोरोना-टेस्ट में देरी की जा रही है, अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे हैं, कोरोना मरीजों की अस्पताल पहुंचने से पहले मौत हो रही है. कोरोना संदिग्धों का कहना है कि अस्पतालों से बिना चेकअप सीधे घर भेज रहे हैं, और कह रहे हैं घर जा के क्वारेंटाइन हो जाओ! 


दिल्ली में कोरोना का कोहराम 


दिल्ली के कोरोना आंकड़ों के बारे में बताना मात्र औपचारिकता होगी क्योंकि ये आंकड़े तो सबको पता हैं. भारत में तीसरा सबसे बड़ा कोरोना-स्टेट दिल्ली है जहां स्थिति बिगड़ती ही जा रही है. पिछले 1 सप्ताह से दिल्ली में कोरोना के मामलों में तेज़ उछाल देखी गई है. सवा हजार से ज्यादा नए मामले यहां सामने आये हैं जबकि कुल कोरोना मरीजों का आंकड़ा 27 हजार को पार कर गया है. 



 


दिल्ली का खजाना कोरोना के समय खत्म हो गया?


क्या जवाब देगी दिल्ली सरकार यदि आम आदमी पार्टी से दिल्ली का आम आदमी पूछेगा कि कोरोना महामारी के दौर में यदि उनके लिये स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं या उनके लिए पर्याप्त सरकारी-वित्त नहीं है तो खजाने का सारा पैसा आखिर गया कहां? दिल्ली की जनता ये भी पूछ सकती है कि कोरोना के नियंत्रण पर कितना और कहां-कहां खर्च किया गया है पैसा? कितने लोगों को भोजन कराया गया और आखिर कितना भोजन करा दिया गया लोगों को? विज्ञापनों में कितना पैसा खर्च किया?  इस स्वास्थ्य आपातकाल में क्या केजरीवाल के खर्चों का हिसाब मांगने का अधिकार दिल्ली के नागरिक को नहीं है? 


चार मूल प्रश्नों के उत्तर दें केजरीवाल


क्या दिल्ली के कोरोना-मरीजों के साथ यह व्यवहार न्यायोचित है? क्या यह तर्कपूर्ण है? क्या यह अंतिम विकल्प है? क्या स्थिति केजरीवाल के हाथ से निकल चुकी है? सवाल तो और भी हैं जो दिल्ली की जनता कर सकती है जैसे - क्या इसी दिन के लिए आप को मुख्यमंत्री बनाया था कि मुसीबत में साथ छोड़े के निकल जाएं आप? या ये कि दिल्ली से मजदूरों के पलायन को क्यों नहीं रोका गया ? मजदूर कहते हैं कि आपकी सरकार ने उनको भगाया, आप क्या कहते हैं? आपके आते ही दिल्ली में दंगा कैसे हो गया? या फिर ये आसान सवाल कि दिल्ली सरकार द्वारा जारी किये जा रहे कोरोना मौतों के आंकड़े दिल्ली के शमशान घाटों के कोरोना-मौतों के आंकड़ों से मेल क्यों नहीं खाते? इस तरह के तमाम सवालों के जवाब नागरिकों को चाहिए किन्तु यदि उपरोक्त चार प्रश्नों के उत्तर ही सीएम केजरीवाल दे सकें, तो कोरोना-काल में उनकी योग्यता की परख दिल्ली की जनता को हो जायेगी वरना दिल्ली की जनता बेवजह कोरोना की मौत मारी जायेगी.


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