नई दिल्ली.  दिल्ली सरकार प्राचीन भारतीय ज्ञान को अगली पीढ़ी के लिए सहेजते हुए वैज्ञानिक तरीके से उन्हें ये ज्ञान सौंपने की योजना बना रही है. इस क्रम में अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर देशिक व्याख्यान श्रृंखला की शुरूआत की गई है. इस व्याख्यानमाला के माध्यम से सरकार का उद्देश्य अठारहवीं-उन्नीसवीं सदी के दौर में हुए अनुसंधानों, वैज्ञानिक प्रयोगों, सामाजिक चेतना के प्रयोगों, शिक्षा में हुए प्रयोगों की खास बातों और उसमें भारत के भविष्य के लिए संभावनाओं लेकर छात्रों को जागृत करना है.


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पहले व्याख्यान में सोमवार को आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी ने प्राचीन भारत के ज्ञान विशेषकर अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी की भारतीय ज्ञान-परम्पराओं को लेकर अपना जानकारी साझा की. व्याख्यानमाला के पहले वक्तव्य में इसी बात कि चर्चा हुई कि हमारा यह प्राचीन ज्ञान कितना मौलिक व महान है लेकिन कैसे अंग्रेजों तथा आजादी के बाद भी इस ज्ञान परम्परा की उपेक्षा की गई.


दिल्ली सरकार का मानना है कि इस ज्ञान परम्परा की न केवल उपेक्षा की गई बल्कि हमारी यह ज्ञान परम्परा राजनीति का शिकार भी होती चली गई तथा नेताओं अपनी राजनीति को साधने के लिए इसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया.


क्या बोले मनीष सिसोदिया
इस मौके पर उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि ऐसे कार्यक्रम के माध्यम से हमारा विजन इस प्राचीन ज्ञान को केवल और केवल बुद्धिजीवी वर्ग तक सीमित नहीं रखना है बल्कि हर छात्र तक पहुंचाना है ताकि यह ज्ञान उनके माध्यम से समाज तक पहुंचे और लोग इस प्राचीन व समृद्ध ज्ञान का उपयोग कर सके. सिसोदिया ने कहा कि यह देश का दुर्भाग्य है कि चिंतन करने के नाम पर देश की राजनीति कन्नी काटती नजर आती है और यही कारण है कि देश में शिक्षा पर काम नहीं हो पाया. लेकिन अगर देश और समाज को खड़ा करना है उनकी नींव को मजबूत करना है तो इसका एकमात्र मार्ग शिक्षा है.


उन्होंने कहा कि कोई भी समाज या देश अपने धरातल पर किस मजबूती से खड़ा होगा यह स्कूल तय करते हैं और उसके बाद देश किस ऊंचाई तक जाएगा यह उसकी यूनिवर्सिटीज तय करती हैं. उन्होंने कहा कि अगर समाज का बेस कमजोर है और समाज किसी भी मुद्दे पर भटक जाता है तो इसका मतलब है कि स्कूल कमजोर हैं. 


'प्राचीन ज्ञान को जानने के बजाय उसे मानने पर जोर दिया गया'
उपमुख्यमंत्री ने कहा कि हमारा प्राचीन ज्ञान बेहद शानदार और समृद्ध था लेकिन उसे अपडेट नहीं किया गया और आगे नहीं बढ़ाया गया उसका वैज्ञानिक विश्लेषण नहीं किया गया. आने वाली पीढ़ियों को इस प्राचीन ज्ञान को जानने के बजाय उसे मानने पर जोर दिया गया और यह शिक्षा के क्षेत्र में हुई सबसे बड़ी गलती थी. उन्होंने कहा कि इस गलती को ठीक करने कि दिशा में ऐसे कार्यक्रम बेहद महत्वपूर्ण है जहां प्राचीन अनुसंधाओं, प्रयोगों व ज्ञान को साझा करने के लिए मंच प्रदान किया जाता है.


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