कोर्ट ने केंद्र सरकार के याचिका पर लिया फैसला, RIL से संपत्ति का ब्योरा मांगा
दिल्ली हाईकोर्ट ने रिलांयस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और ब्रिटिश गैस के खिलाफ केंद्र सरकार की ओर से डाली गई याचिका में संज्ञान लिया है. हाई कोर्ट ने दोनों ही कंपनियों को उनकी संपत्तियों का ब्योरा देने का निर्देश जारी किया है. कोर्ट में दायर किए गए याचिका में केंद्र सरकार ने रिलायंस को अपनी हिस्सेदारी बेचने से रोक लगाने की मांग की थी. क्यों, आइए जानते हैं.
नई दिल्ली: यह मामला सउदी के अरामको तेल कंपनी से जुड़ा हुआ है. केंद्र सरकार ने पिछले दिनों कोर्ट में याचिका दायर किया. रिलायंस और ब्रिटिश गैस के खिलाफ. याचिका में दोनों कंपनियों को उनकी संपत्ति का कितना भी हिस्सा बेचने पर रोक की मांग की दरख्वास्त की गई थी. इस पर फैसला लेते हुए कोर्ट ने यह निर्देश जारी किया कि दोनों कंपनियां अपनी संपत्तियों का ब्योरा कोर्ट को सौंपे.
केंद्र सरकार ने कहा कंपनी कॉन्ट्रैक्ट का कर रही है उल्लंघन
इस मामले के तार सउदी अरब की तेल कंपनी सउदी अरामको से संबंधित है. केंद्र सरकार ने सितंबर महीने में ही एक याचिका दायर किया था उसमें यह लिखा था कि रिलायंस अरामको को सबसे पहले तो अपनी हिस्सेदारी बेचने पर रोक लगाए. उन्होंने कहा कि दोनों कंपनियां पन्ना-मुक्ता तथा ताप्ती (PMT) उत्पादन साझेदारी अनुबंध के तहत 4.5 अरब डॉलर का आर्बिट्रल अवॉर्ड का भुगतान अब तक नहीं भर पाईं हैं.
आर्बिट्रेशन अवॉर्ड का भुगतान कर जो चाहे वो करे कंपनी
साल 1994 के पीएमटी कॉन्ट्रैक्ट की मानें तो दोनों ही कंपनियों का कॉन्ट्रैक्ट शनिवार को समाप्त हो गया है. इस मामले में तर्क देते हुए केंद्र सरकार ने कोर्ट से मांग की कि वह RIL और ब्रिटिश गैस को 4.5 अरब डॉलर का आर्बिट्रेशन अवॉर्ड का जल्द से जल्द भुगतान करने का निर्देश जारी करे.
इसके बाद वे जिसे चाहें अपनी हिस्सेदारी बेच सकते हैं. RIL के निदेशक को कंपनी की संपत्तियों का ब्योरा देने के लिए एक हलफनामा दायर करने का निर्देश जारी किया गया. उच्च न्यायालय की वाणिज्यिक पीठ ने कहा कि वह मामले की अगली सुनवाई छह फरवरी तक टाल रही है.
कंपनी ने एक मीडिया कर्मी के किए गए सवालों का जवाब भी नहीं अच्छे से नहीं दिया. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उन्होंने इसके लिए कंपनी को कॉल भी किया और टेक्स्ट मेसेज भी भेजे, लेकिन उसका कोई जवाब नहीं मिला.
कंपनी पर भारी भरकम कर्ज है बाकी
केंद्र सरकार ने कोर्ट में अपने पक्ष की दलील देते हुए कहा कि कंपनी RIL अपनी 20 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की बात करती है लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती. क्योंकि RIL पर 2.88 लाख करोड़ रुपये का भारी-भरकम कर्ज है और कंपनी अपने कर्जों को खत्म करने के लिए अपनी चल-अचल संपत्तियों की अन्य निजी हाथों में बेच रही है. जो सही नहीं है.
केंद्र सरकार ने कोर्ट को आगाह किया कि कंपनी भविष्य में भी अपनी संपत्तियों की बिक्री कर सकती है और तब तक आर्बिट्रल अवॉर्ड के भुगतान के लिए कंपनी के पास कुछ नहीं बच पाएगा.
केंद्र सरकार का पक्ष रखने वाले ने कहा कि उसे कंपनी के बिजनस प्लान की कोई जानकारी नहीं है और न ही उसपर उसका कोई नियंत्रण है. इसलिए कोर्ट ही उचित फैसला ले.