दंगाईयों के हाथों मारे गए कांस्टेबल रतनलाल का परिवार बेसहारा
CAA के विरोध के चलते अबतक देश को आर्थिकहानि और कई प्रकार की परेशानियां तो हो ही रही थी. लेकिन बीते दिन एक ऐसी घटना सामने आई है जिसने हर किसी का दिल दहला दिया. देश की नागरिकों की सुरक्षा और व्यवस्था को बनाए रखने में जुटे पुलिस ऑफिसर को यह विरोध इतना महंगा पड़ा कि उसे अपनी जान गंवानी पड़ गई.
नई दिल्ली: दिल्ली के उत्तर पूर्वी जिले में CAA के विरोध में हिंसा ऐसी भड़की की मानवता ही शर्मसार हो गई. हिंसा में जुटे लोग यह भूल गए कि अपनी मांग मनवाने के लिए किसी निर्दोष की जान तक लेने से भी परहेज नहीं.
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राजस्थान के रहने वाले थे रतनलाल
दिल्ली पुलिस का शहीद जवान रतन लाल तो वहां इसलिए मौजूद था ताकि किसी भी आम नागरिक को परेशानी न हो. न विरोध करने वालों को और न इसके सर्मथन करने वालों को. आज शहीद हवलदार की मौत ने भी सियासी रूप ले लिया है. लेकिन रतनलाल के परिवार ने तो अपना सबकुछ एक ही झटके में खो दिया. रतनलाल महज 42 वर्ष के थे, राजस्थान के सीकर के रहने वाले रतन लाल 1998 में दिल्ली पुलिस में शामिल हुए थे. और उसके बाद से वह परिवार के साथ दिल्ली आकर बस गए.
बिलख रहे हैं शहीद रतनलाल के नन्हे बच्चे
शहीद रतन लाल दिल्ली के बुराड़ी में अमृत विहार में पत्नी पूनम और तीन बच्चों के साथ रहते थे. रतन लाल की पत्नी गृहणी हैं और तीनों बच्चों काफी छोटे हैं. उनकी बड़ी बेटी सिद्धि महज 13 साल की है जो कक्षा 7वीं की छात्रा हैं, छोटी बेटी कनक 10 साल की हैं जो कक्षा 5वीं की छात्रा हैं और एक छोटा सा बेटा राम है. रतन लाल का बेटा महज 5 साल का है जो पहली कक्षा में पढ़ता है. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उनके पूरे परिवार में सिर्फ रतन लाल ही कमाने वाले थे और देश के साथ ही घर के बाकी सदस्यों का देखरेख करते थे. पर घर से निकलते समय इन मासूम बच्चों को भी कहां पता था कि आज उनके सर से पिता का हाथ ही छींन जाएगा. आज के बाद उन्हें कहां पिता की गोद नसीब होगी वो सुकून और घर की वह खुशी छीन सी जाएगी. कहां रतन लाल की पत्नी ने सोचा था कि आज आखिरीबार वह अपने सुहाग के नाम का सिंदूर लगा रही हैं. जैसे ही उनकी पत्नी को रतन लाल की शहीदी की खबर मिली वह सुनकर बेहोश हो गई और तब से अपना सुदबुद खो बैठी हैं. रतन लाल ने कभी नहीं सोचा होगा कि आज वो उनके हाथों से ही मारे जाएंगे जिनकी सुरक्षा के लिए ही मौजूद थे.
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कौन पोंछेगा शहीद के परिवार के आंसू
कल जब रतन लाल की शहीदी की खबर लोगों ने सुना तो सरकार ने बड़ी रकम देने की घोषणा कर दी तो लोगों ने दुख जताकर श्रद्धांजलि दे दी. सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने हेशटैग यूज करके रतन लाल के लिए संवेदना जताई. हर बार जब इस तरह की कोई दुखद घटना घटित होती है तो कुछ दिनों के बाद लोग इस चीजों को भूल जाते हैं या यूं कहें तो कोई दूसरी घटना इस तरफ से अपना ध्यान खींच लेती है. लेकिन जिस परिवार ने अपने बेटे, पति, पिता या भाई को खोया होता है वो इस दर्द को आजीवन उठाते हैं. कुछ समय बाद न कोई आंसू पोछने के लिए पहुंचता है और न कोई परिवार के सदस्यों की हालात का जायजा लेता है. लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या पैसे और तरह-तरह की घोषणाएं या संवेदना जताकर क्या हो जाता है. जिसने अपनी जान ही खो दी उसका क्या. कभी सोचा है कि आप का कोई अपना या बहुत करीबी घर से निकले लेकिन कभी लौट कर वापस ही नहीं आए. वो दर्द शायद न हम और न आप समझ सकते हैं लेकिन अंदाजा तो लगा ही सकते हैं. सिर्फ सोचने मात्र से हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं तो जिसने आखिरी बार घर से निकलते समय सोचा ही नहीं होगा कि वह वापस नहीं लौटेगा उसके परिवार वालों का क्या?
रतनलाल के हत्यारों को कब मिलेगी सजा?
एक 5 साल के बच्चे को यह समझाना कि उसके पिता अब कभी घर आकर उसे लाड नहीं करेंगे और न ही उसके साथ आकर खेलेंगे कितना मुश्किल होता है ये. लेकिन हमारी देश में इस तरह की घटनाएं होती रही तो शायद ही कोई परिवारवाला चाहेगा कि उसके घर का बेटा या बेटी देश की सेवा में जाए. जब देश के लोग ही देश की सेवा में जुटे लोगों की इस तरह से निर्मम हत्या कर हैवानियत पर उतर आए हो. इस घटना के बाद तो प्रशासन व्यवस्था में जुटे लोगों के परिवार वाले भी चैन की सांस नहीं ले पा रहे हैं. अब वक्त आ गया है कि देश में ऐसे कदम उठाए जाए जिससे कि देश की सेवा में या देश में रहने वाले लोगों को सुरक्षा व्यवस्था पर डगमगा रहे भरोसे को फिर से कायम किया जाए.