नई दिल्ली.  बरसों से कांग्रेस बीजेपी और राष्ट्रवादियों पर सावरकर का नाम लेकर हल्ला बोल करती आई है.  कांग्रेस का कहना है कि सावरकर ने अंग्रेजी हुकूमत से माफ़ी मांगी थी और इस तरह वे राष्ट्रभक्त किसी भी तरह नहीं कहे जा सकते. आज फिर राहुल गाँधी ने रेप इन इंडिया वाले अपने बयान पर माफ़ी मांगने की बजाये  कहा कि - कांग्रेसवाला बब्बर शेर होता है, 'मैं राहुल सावरकर  नहीं राहुल गांधी हूं, नहीं मागूंगा माफी!'


सावरकर की माफ़ी कांग्रेस का ऐतिहासिक झूठ है 


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इसका जवाब ये है कि वीर सावरकर  ने अंग्रेज़ों से माफ़ी नहीं मांगी थी. उन पर कांग्रेस का आरोप कि उन्होंने ने सजा से बचने के लिए अंग्रेजों से माफी मांगी, ये सच नहीं बल्कि कांग्रेस का एक ऐतिहासिक झूठ है. आज की पीढ़ी के लिए इसका सच छुपा है इतिहासकार और लेखक विक्रम संपथ द्वारा लिखी गई सावरकर  की आत्मकथा 'सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्‍ट' में. 



'सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्‍ट' 


इतिहासकार और लेखक विक्रम संपथ द्वारा लिखी गई सावरकर  की इस आत्मकथा को पढ़ कर इस सच को जाना जा सकता है कि वीर सावरकर  ने अंग्रेजी सरकार से माफ़ी नहीं मांगी थी. वीर सावरकर के जीवन पर आधारित इस पुस्तक में सपंथ ने सावरकर के जीवन के कई पहलुओं को बड़ी सच्चाई से प्रस्तुत किया है.


राहुल गाँधी वीर सावरकर को कितना जानते हैं?


सावरकर  की आड़ में बीजेपी, हिंदुत्व और राष्ट्रवादियों पर हमला बोलने वाली कांग्रेस कभी भी इस झूठ की परतें नहीं खोलती. यदि कांंग्रेसियों से या खुद राहुल गाँधी से पूछा जाए कि क्या वे सचमुच सावरकर  को जानते हैं या वे सावरकर को कितना जानते हैं? तब इन सवालों पर उनके पास कोई  जवाब नहीं होगा. राहुल गाँधी कांग्रेस के उस तोते की तरह अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं जो ये तो जानता है कि उसे बोलना क्या है पर ये नहीं जानता जो बोला उसका अर्थ क्या है. 



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सावरकर का माफीनामा एक गढ़ा गया झूठ 


यदि कांग्रेस से उसके इस ऐतिहासिक झूठ की परतें खोलने को कहा जाए, तो यकीनन शायद ही कोई एक-आध नेता ऐसा मिले जो इस बात को ढंग से जानता हो या समझा सकता हो.  'सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्‍ट' में सपंथ ने सवारकर द्वारा अंग्रेज़ों को लिखी गई दया याचिका (British congress apology) पर भी विस्तार से चर्चा की है. उन्होंने इस पुस्तक में साफ़ किया कि ये कोई दया याचिका नहीं थी, ये सिर्फ एक कानूनी याचिका थी. 


क्या थी अंग्रेज़ों को लिखी गई सावरकर की याचिका?


सावरकर  क़ानूनवेत्ता थे. वे भी जानते थे कि प्रत्येक राजबंदी को एक वकील करके अपना मुकदमा लड़ने की छूट होती है उसी तरह सारे राजबंदियों को याचिका देने की छूट दी गई थी. इसलिए उन्होंने जेल से छूट कर देश सेवा में खुद को लगाने के लिए इस याचिका का इस्तेमाल किया था. इस याचिका में अँगरेज़ हुकूमत को ये वादा किया जाता था कि यदि बंदी जो जेल से रिहा किया गया तो वह अँगरेज़ हुकूमत के खिलाफ नहीं जाएगा. एक बुद्धिमान क्रांतिकारी के तौर पर सावरकर  ने बड़ी चतुराई से इस याचिका का इस्तेमाल अपनी रिहाई के उद्देश्य से किया था.


गाँधी ने कहा था कि सावरकर एक चतुर क्रांतिकारी हैं 


इस बात को गाँधी ने भी माना और कहा कि सावरकर  एक चतुर क्रांतिकारी हैं क्योंकि उन्होंने इस याचिका का इस्तेमाल करके अपनी रिहाई की दिशा में प्रयत्न किया था. क्योंकि वे जानते थे कि जेल में रह कर देश के लिए उतना नहीं किया जा सकता जितना जेल से निकल कर किया जा सकता है.  



सावरकर हीरो थे न कि विलेन 


आज़ादी के पहले और बाद के दौर को जो कोई ईमानदारी से जानता हो या जिसने इस दौर के सच को किताबों में या वास्तविक भारत के इतिहास में पढ़ा हो तो वह निस्संदेह विनायक दामोदर सावरकर  को हीरो ही कहना चाहेगा. वीर सावरकर ने भारत की स्वतंत्रता हेतु कठोर बलिदान दिये लेकिन फिर भी उन्हें स्वतंत्र भारत की कांग्रेस सरकार वो स्वीकार्यता नहीं मिलने दी जिसके वे अधिकारी थे. 


सावरकर वीर भी थे और महान देशभक्त क्रांतिकारी भी 


देश के लिए वीर सावरकर  ने तमाम तरह की यातनाओं का सामना किया. 1910 में नासिक के अँगरेज़ कलेक्टर की हत्या के जुर्म में सावरकर को 25 -25 साल की दो अलग-अलग सजाएं सुनाई गईं. उन्हें काला पानी दिया गया और अंडमान की कुख्यात सेल्युलर जेल में रख कर 9 साल तक अमानुषिक यातनाएं दी गईं. 


सावरकर ने सही थींं अमानवीय यातनायें


जेल में सावरकर  को 13.5/7.5 फीट की घनी अंधेरी कोठरी में रखा गया.अंडमान में सरकारी अफसर बग्घी में चलते थे और सावरकर  समेत तमाम कैदियों को इन बग्घियों को खींचना पड़ता था. कैदी बग्घियों को खींचने में जब भी लड़खड़ा जाते थे, उनको चाबुक से पीटा जाता था. इसके अलावा कैदियों को जेल मेंं कोल्हू चलाकर तेल भी निकालना पड़ता था.


और तो और टॉयलेट में भीड़ होने के कारण कभी-कभी कैदी को जेल के अपने कमरे के एक कोने में ही मल त्यागना पड़ता था. कभी कभी कैदियों को खड़े खड़े ही हथकड़ियां और बेड़ियां पहन दिन गुजारना होता था. कई बार उन्हें खड़े खड़े ही मल-उत्सर्जन का दंड मिलता था और अगर इस दौरान उनको उलटी भी आ जाती थी तो भी उनको बैठने की इजाजत नहीं थी.



वीर सावरकर को मिलना ही चाहिये भारत रत्न


ऐसे वीर सावरकर को यदि भारत रत्न प्रदान किया जाता है तो इसमें कांग्रेस को आपत्ति नहीं होनी चाहिये थी. और यदि आपत्ति हो तो कांग्रेसियों को अपने भारत रत्न राजीव गाँधी और वीर सावरकर  की तुलना कर लेनी चाहिये, जवाब मिल जायेगा.


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