Explainer: पेपर लीक के जमाने में बजट को कैसे रखा जाता सिक्योर?

How Government Prevents Budget Leak: बजट बनाने वाले अधिकारियों को एक दफ्तर में बंद कर दिया जाता है. उन्हें सारी सुविधाएं यहीं उपलब्ध करवाई जाती हैं. सिर्फ वित्त मंत्री इनसे मुलाकात कर सकते हैं. इन्हें कड़ी सुरक्षा में रखा जाता है.

Written by - Ronak Bhaira | Last Updated : Jul 23, 2024, 10:12 AM IST
  • दो बार लीक हो चुका बजट
  • एक बार वित्त मंत्री को हटाया
Explainer: पेपर लीक के जमाने में बजट को कैसे रखा जाता सिक्योर?

नई दिल्ली: How Government Prevents Budget Leak: नेटफ्लिक्स की एक मशहूर सीरीज है, 'हाउस ऑफ कार्ड्स'. इस पॉलिटिकल थ्रिलर में राजनीति के अलग-अलग दांव पेंच दिखाए गए हैं. सीरीज का नायक फ्रैंक अंडरवुड एजुकेशन बिल के ड्राफ्ट को लीक कर देता है. जिसके बाद तहलका मच जाता है. राष्ट्रपति के माथे पर भी चिंता की लकीरें दिखने लगती हैं. बहरहाल, इस उदाहरण से हम ये समझाना चाहते हैं कि सरकार के किसी भी गोपनीय दस्तावेज को लीक करने से कितना बड़ा हंगामा खड़ा हो सकता है. देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज केंद्रीय बजट पेश करेंगी. बजट के दस्तावेज गोपनीय होते हैं. इन दिनों पेपर लीक के कई मामले सामने आए हैं. ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि बजट को लीक होने से कैसे रोका जाता है. इसे कैसे कड़ी सुरक्षा में रखा जाता है. इसे बनाने वाले विशेषज्ञों और अधिकारियों पर कैसे नजर रखी जाती है. आइए, इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं...

दो बार लीक हो चुका है देश का बजट
ऐसा नहीं है कि इतिहास में कभी भी बजट लीक नहीं हुआ. देश का पहला बजट (जो 26 नवंबर 1947 को पेश हुआ) ही लीक हो गया था. तब जवाहरलाल नेहरू की सरकार हुआ करती थी. इसके बाद 1950 में पूर्णकालिक बजट पेश हुआ, वह भी लीक हो गया था. 1947 में ब्रिटेन के राजकोष के चांसलर ह्यूग डाल्टन ने एक पत्रकार को बजट से जुड़े कुछ ऐलान बता दिए, जो बजट भाषण से पहले ही अखबारों में प्रकाशित हो गए. इसी तरह से 3 मार्च, 1950 को पेश होने वाला बजट भी लीक हो गया था. ये प्रिंटिंग प्रेस के कैसी कर्मचारी द्वारा लीक किया गया. इस कारण तब के वित्त मंत्री जॉन मथाई की कुर्सी चली गई थी. 

सबक लिया, फिर लीक नहीं हुआ बजट
इन दो घटनाओं से सबक लेने के बाद देश का बजट कभी भी लीक नहीं हुआ. इसको लेकर पुख्ता इंतजाम किए गए. 1950 में बजट लीक होने के बाद 1980 तक मिंटो रोड स्थित एक प्रेस में बजट प्रकाशन होता था. इसके बाद एक सरकारी प्रिंटिंग प्रेस को स्थापित किया गया. इसे संसद भवन में ही बनाया गया.

अधिकारियों को लॉक कर देते हैं
हलवा सेरेमनी के बाद बजट पर जोर-शोर से काम शुरू हो जाता है. इसके बाद सभी लोगों को एक इमारत या दफ्तर में लॉक कर दिया जाता है. इसे लॉक-इन पीरियड भी कहा जाता है. करीब 100 अधिकारी ऐसे होते हैं, जिन्हें बजट बनाने के काम के लिए लॉक किया जाते है. ये करीब 10 दिन तक अपने काम में जुटे रहते हैं. इनका खाना, पीना, सोना...सब यहीं होता है. 

इंटेलिजेंस रखता है कड़ी नजर
बजट बनाने वाली टीम को इसके निर्माण के समय किसी से नहीं मिलने दिया जाता. इस दौरान इनसे सिर्फ वित्त मंत्री ही मुलाकात कर सकते हैं. ये आवाजाही भी नहीं कर सकते हैं. इनके लिए सारी सुविधाएं एक ही स्थान पर उपलब्ध करवाई जाती हैं. जिस ऑफिस या इमारत में बजट बनाने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को रखा जाता है, उस पर कड़ी नजर रखी जाती है. एंट्री-एग्जिट पर कड़ी सिक्योरिटी होती है. दिल्ली पुलिस की सहायता से इंटेलिजेंस ब्यूरो बजट बनाने वाले लोगों पर नजर रखता है, ताकि ये कोई भी बात बाहर लीक न कर सकें. इनके फोन कॉल्स भी ट्रैक होते हैं.

वित्त मंत्रालय में बढ़ा दी जाती है सुरक्षा
बजट पेश होने से 15 दिन पहले से वित्त मंत्रालय में सुरक्षा करने वाले जवानों की तैनाती बढ़ा दी जाती है. CISF और IB के अधिकारी वित्त मंत्रालय में चक्कर लगाते रहते हैं, ताकि कोई असामान्य घटना न हो. वित्त मंत्री, वित्त सचिव और मंत्रालय के अन्य शीर्ष अधिकारियों के कैबिन के बाहर सुरक्षा के लिए CISF को तैनात किया जाता है. 

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