किसान की नाक काटकर अपनी नाक बचाएंगे टिकैत ?
बिना नाक के टिकैत राजनीति का बहाना सूंघ कर और ज़हरीले हो चुके हैं. सियासी शातिरपने ने उन्हें 16 कलाओं में दक्ष किया है.
नई दिल्ली: राजनीति की नाक छोटी लेकिन तेज़ होती है. शातिर दिमाग नेता नाक के लिए नहीं अपनी सियासत के लिए खुद की नाक न्यौछावर करने के लिए जाना जाता है. टिकैत राजनीति के लिए अपनी नाक न्यौछावर करके मंच पर खड़े हैं. बिना नाक के टिकैत राजनीति का बहाना सूंघ कर और ज़हरीले हो चुके हैं. सियासी शातिरपने ने उन्हें 16 कलाओं में दक्ष किया है.अब यक्ष प्रश्न ये है कि टिकैत की सस्ती राजनीति देश के लोकतंत्र के लिए कितनी महंगी पड़ने वाली है. क्योंकि ऐसा लगता है जैसे
- देश की नाक कटवाने की सुपारी ले चुकी है टिकैत एंड कंपनी
- लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को बदनाम करने की साजिश पर काम कर रही है अराजक गैंग
- देश की ज़मीन पर 'विदेशी ज़हर' उतारने का 'ब्लू प्रिंट' गैंग का काम जारी है
जैसे-जैसे आंदोलन से किसानों के अलग होने का सिलसिला तेज़ हो रहा है, वैसे-वैसे टिकैत के बिगड़ते बोल और तेवर बता रहे हैं कि अब वो पूरी तरह कुंठित हो चुके हैं. टिकैत अब अपनी रैलियों में उद्योगपतियों के प्रतिष्ठानों और संस्थानों पर हमले करने का अह्वान कर रहे हैं. भारत की महान लोकतांत्रिक व्यवस्था में राकेश टिकैत जैसे नेताओं के ये बोल कितने लोकतांत्रिक हैं अब वक्त इस पर बहस का है. ये भी दीगर है कि उन्हें एक गंवई किसान कह कर उन्हें भाषा की पहचान न होने की छूट नहीं दी जा सकती. राजस्थान के सीकर की रैली में टिकैत लालकिला नहीं बल्कि संसद पर ट्रैक्टर मार्च की अपील करते हुए भीड़ को उकसाते हैं. उन्होंने कहा कि इस बार 4 लाख नहीं बल्कि 40 लाख ट्रैक्टरों से संसद का घेराव किया जाएगा.
ये बात अब बखूबी समझ लेने की है कि राकेश टिकैत एक खास एजेंडे के तहत ज़मीन पर उतरे हैं. उनका किसानों के हित से लेना-देना नहीं बल्कि उनकी सारी जुगत खुद को सियासत की बिसात का वो वज़ीर बनाने का है जो आड़े-तिरछे-सीधे किसी भी रास्ते चलकर बादशाह को मात दे सकता है. किसान आंदोलन के मंच से टिकैत बादशाह को हटाने की चेतावनी भी देते हैं. वो कहते हैं कि कहीं ऐसा न हो ये आखिरी लुटेरा बादशाह साबित हो. चरखा पर सूत कातकर टिकैत मीडिया में खुद की गांधीवादी छवि दिखाते हैं. लेकिन सच ये है कि मंच पर वो एक ऐसे लठैत से ज्यादा कुछ भी नहीं जो लट्ठ चलने की सूरत में दहाड़े मार कर रोता है.
राजनीति की 16 कलाओं में सिद्ध टिकैत
देश में चलती फिरती नौटंकी बन चुके टिकैत की हदें पंजाब-हरियाणा-राजस्थान और पश्चिमी यूपी जैसी जगहों तक सीमित हैं. इसे भी समझने की ज़रूरत है कि अगर टिकैत एंड कंपनी ने इन स्टेट्स से बाहर कदम रखा तो कथित आंदोलन की औकात और टिकैत की नाक दोनों नाप दी जाएगी. बात कुछ हल्की लग सकती है पर जो सच है शायद उसे ऐसे ही लाइनों के साथ समझा जा सकता है. और सच ये है कि टिकैत को गैर बीजेपी शासित राज्यों में नाक टिकाने का भरपूर मौका दिया जा रहा है.
- गैर बीजेपी शासित राज्यों में टिकैत को 'नाक टिकाने' का ऑफर
- खाली हाथ आओ 'विपक्षी' कार्यकर्ताओं की टीम पाओ
- ममता बेकरार हैं, उद्धव बेचैन हैं, गहलोत 'गमगम' हैं
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तो क्या अब भी समझाने की जरूरत है कि टिकैत एंड कंपनी की अराजक गैंग को समर्थन कौन दे रहा है और क्यों दे रहा है? गाज़ीपुर बॉर्डर पर खाली पड़े तंबू बता रहे हैं कि राकेश टिकैत दरअसल अपनी कट चुकी नाक को बचाने निकले हैं. टिकैत की आखिरी उम्मीद अब खाप पंचायतों से ही है. जाति का कार्ड खेलकर कम से कम जाटलैंड में वो अपनी इज़्जत बताने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं. इसकी बेचैनी कितनी है वो टिकैत के बिगड़े बोल बता रहे हैं क्योंकि
- टिकैत एक बार नहीं कई बार देश के सिखों को मंच से भड़का चुके हैं
- टिकैत 26 जनवरी के 1984 से भी बड़ा दंगा करवाने का आरोप सरकार पर मढ़ चुके हैं
- खालिस्तान गैंग की एंट्री पर सवाल पूछने पर टिकैत पलट कर आरोप सरकार पर लगाते हैं, वो कहते हैं सरकार ने झूठी कहानी गढ़ी है
ज़रा ये भी समझिए कि 1984 के सिख दंगों का दाग किसके दामने पर है? और अगर ये दाग किसी और पार्टी के ऊपर लगा दिया जाता है या उसके खिलाफ सिखों को भड़का दिया जाता है तो फायदा किस पार्टी को होगा? क्या यही वजह है कि कहीं-कहीं राहुल-प्रियंका की लाइन सीधे टिकैत की लाइन से मिलती दिखती है. खासकर आक्रमकता से भरे और उकसाने वाले बयानों के मद्देनज़र?
राकेश टिकैत हरियाणा के जींद में रैली को संबोधित करते हुए कहते हैं, कि "एक धार्मिक झंडा लाल किले के ऊपर लगवाकर पूरा देश ही बर्बाद कर दिया. मतलब ऐसी नफरत फैला दी थी कि ये सरदार को बहुत खराब कौम है और उसके साथ कहने लगे ये किसान भी खराब है. कहने लगे ये देश का गद्दार ही है सारे के सारे. सीधा पगड़ी पर हमला किया था."
पानी नाक से ऊपर बहे इससे पहले टिकैत पर नकेल ज़रूरी
टिकैत जैसे गैंगबाज़ों की शह का नतीजा है कि पंजाब के बठिंडा में गैंगस्टर और लाल किला कांड का लखटकिया वॉन्टेड लक्खा सिधाना मंच पर नज़र आता है. पंजाब में कांग्रेस की सरकार है. जिसकी नाक के नीचे एक गैंगस्टर और 1 लाख ईनामी बदमाश किसानों के मंच पर बैठता है और पंजाब की पुलिस उसकी मिजाज़पुर्सी करती है. सच ये है कि टिकैत कंपनी बुरी तरह बौखलाई हुई है. धरना स्थल पर लगातार घटती किसानों की संख्या के बीच टिकैत की सारी जद्दोजहद अपनी नाक बचाने की है. यही वजह है कि अब बंगाल-महाराष्ट्र जैसे सूबों पर फोकस किया जा रहा है जहां विपक्षी कार्यकर्ताओं की भीड़ को किसान बताकर उतारा जा सके. और पंजाब-हरियाणा-पश्चिमी यूपी के कुछ किसानों के आंदोलन को देश के किसानों का आंदोलन बताया जा सके, नाक बचेगी तभी तो नाक रगड़ी जाएगी. मंच पर दहाड़े मारकर रोते हुए टिकैत ने ये भी साबित किया है कि वो निशाना चूकने पर नाक रगड़ने में माहिर रहे हैं.
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