Farmers Protest: पीएम की बातों पर यकीन क्यों नहीं...अन्नदाता!
आंदोलनकारी किसान स्वामीनाथन आयोग की जिस रिपोर्ट का हवाला दे रहे हैं, उसकी सिफारिशें भी तो यही थीं. उन सिफारिशों को तब की यूपीए सरकार ने लागू करने की जगह ठंडे बस्ते में डाल दिया था. स्वामीनाथन आयोग की उन्हीं सिफारिशों को मोदी सरकार अमल में लाने में जुटी है. किसानों की आमदनी डबल करने का प्लान उसी का एक हिस्सा है.
नई दिल्लीः कृषि सुधार कानून (Agro law) पर सरकार और अन्नदाता के बीच तकरार का 23वां दिन गुजर चुका है. पीएम मोदी (PM Modi) ने भी सामने आकर नये कानूनों के फायदे का गणित किसानों को समझाया. लेकिन किसान संगठन अब भी इसी जिद पर अड़े हैं कि तीनों कानूनों को वापस ले सरकार.
उनके समर्थन में विपक्षी पार्टियां भी ये तर्क जोरशोर से उछाल रही है कि किसान नये कानूनों का गिफ्ट नहीं चाहते, तो सरकार क्यों नहीं मान जाती.
इसी तर्क के जवाब उठते हैं कई सवाल. सवाल ये है कि आप ही बताइये अन्नदाता-कैसे मिले उपज के सही दाम? बिचौलियों पर कैसे लगे लगाम? कैसे हो किसानों की डबल कमाई का इंतजाम?
सरकार कह रही है कि किसानों की कमाई दोगुनी करने का रास्ता तभी खुलेगा, जब खेती करने से लेकर उपज की रखरखाव में नई तकनीकें आएंगी. इससे उपज की बर्बादी भी रुकेगी और सही कीमत मिलने का रास्ता भी खुलेगा.
आंदोलनकारी किसान स्वामीनाथन आयोग की जिस रिपोर्ट का हवाला दे रहे हैं, उसकी सिफारिशें भी तो यही थीं. उन सिफारिशों को तब की यूपीए सरकार (UPA Govt) ने लागू करने की जगह ठंडे बस्ते में डाल दिया था. स्वामीनाथन आयोग की उन्हीं सिफारिशों को मोदी सरकार अमल में लाने में जुटी है. किसानों की आमदनी डबल करने का प्लान उसी का एक हिस्सा है.
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अन्नदाता से आंदोलन पर 'नमो' संवाद
अन्नदाता से सीधा संवाद में पीएम मोदी ने यही बात उदाहरण के जरिये समझाया है. उनसे पूछा कि हर साल करीब एक लाख करोड़ की फल-सब्जियां बर्बाद होती है. क्या ये एक लाख करोड़ रुपये किसानों की जेब में नहीं जाने चाहिए. और क्या ऐसा कृषि सुधार कानूनों को अमल में लाये बिना संभव है?
प्रधानमंत्री के कहने पर केंद्रीय कृषि मंत्री (Agriculture minister) और सरकार के दूसरे मंत्री देश भर में किसान सम्मेलनों के जरिये इसी तरह तीनों कानूनों पर किसानों का भ्रम दूर करने में जुटे हैं. और कई किसान संगठनों को इस बात को समझाने में सरकार कामयाब होती दिख रही है. तभी मेरठ समेत देश के कई हिस्सों में किसान नये कानूनों के समर्थन में भी दिखने लगे हैं.
आशंका नहीं, संभावनाओं पर गौर जरूरी
खेती-किसानी के लिये संभावनाओँ की बात करें..तो पहला तथ्य यही है कि अनाज-फल-सब्जी के लिहाज से हिन्दुस्तान दुनिया का छठा सबसे बड़ा बाजार है. और ये बाजार बहुत तेजी से बढ़ रहा है. साल 2016 में हिन्दुस्तान का अनाज-फल-सब्जी का बाजार करीब 24 लाख करोड़ रुपये का था, जिसके साल 2020 के आखिरी तक 41 लाख करोड़ रुपये के होने की संभावना है. बड़ी बात तो ये है कि अनाज-फल-सब्जी के इतने बड़े बाजार में अभी तक सिर्फ पच्चीस हजार करोड़ रुपये का ही निवेश हुआ है.
ये आंकड़े बता रहे हैं कि अनाज-फल-सब्जी के बाजार पर उद्योगपतियों और कंपनियों के कब्जे की जो आशंका किसान भाइयों के मन में उठ रही है, वो सीधे तौर पर संभव नहीं है. इस मामले में पूरा आसमान खुला हुआ है.
हां, खेती और उपज के रखरखाव में आधुनिक तकनीकों को शामिल कर किसान जरूर अपने उस घाटे को पाट सकते हैं, जो उपज की बर्बादी के तौर पर उन्हें झेलना होता है.
ये बात इस लिहाज से भी समझ में आती है कि सूखे अनाज के भंडारण का जो देश में इंतजाम है, उसमें उनकी गुणवत्ता बनाए रखने, बचाने रखने की कारगर तकनीक की कमी अब भी दिखती है. इसके कारण गोदामों में रखी उपज का बड़ा हिस्सा बर्बाद होता है.
यकीन रखिए, नये कृषि कानूनों का 'फल' मिलेगा
अगर फल सब्जियों की बात करें तो ये नुकसान कई गुना होकर सालाना एक लाख करोड़ के पार पहुंच जाता है. इसे रोकना है तो कृषि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश जरूरी है.
इसे कोल्ड स्टोरेज के उदाहरण से समझ सकते हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हिन्दुस्तान में 6 लाख 56 हजार गांव हैं. जबकि पूरे देश में महज 8186 कोल्ड स्टोरेज, जिनकी कुल भंडारण क्षमता पौने चार करोड़ टन से ज्यादा नहीं है.
अगर सिर्फ आलू की ही बात कर लें...तो एक सीजन में देश में सवा पांच करोड़ टन आलू उपजता है. यानी मौजूदा कोल्ड स्टोरेज की पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर भी हम एक सीजन का पूरा आलू स्टोर नहीं कर सकते. बाकी सब्जियों, फलों और कोल्ड स्टोरेज में रखे जाने वाली दूसरी उपज की तो बात ही छोड़ दीजिए.
सालों में 45 लाख करोड़ का नुकसान, आगे क्यों झेलें?
ये नुकसान कितना बड़ा हो चुका है, ये समझने के लिये OECD-ICAIR यानी आर्थिक सहयोग विकास संगठन और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक रिपोर्ट का जिक्र जरूरी हो जाता है. OECD-ICAIR की उस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से 2017 के बीच किसानों को उपज का सही दाम नहीं मिल पाने से करीब 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है.
खेती के नये कानून के समर्थन में उतरे छोटे किसान शायद इसे अच्छे से समझ रहे हैं. समझ रहे हैं कि आमदनी डबल करने का रास्ता आशंकाओं से ऊपर उठ कर जाता है.खासतौर से उन आशंकाओं से, जिनके हकीकत में नहीं बदलने की गारंटी भी सरकार दे रही है.
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