Pranab दा ने बताया, `8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का फैसला कितना गुपचुप था?`
पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) की आत्मकथा मंगलवार को बाजार में आ गई. `द प्रेसिडेंसियल ईयर्स, 2012-2017` में उस वक्त की राजनीतिक हालात का जिक्र है. इस किताब के जरिए प्रणब दा ने नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को दूसरे कार्यकाल के लिए सलाह दी, साथ ही नोटबंदी पर सबसे बड़े सवाल का जवाब भी दिया..
नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की आत्मकथा द प्रेसिडेंशियल इयर्स, 2012-2017 बाजार में आ चुकी है. उन्होंने अपनी किताब में तत्कालीन राजनीतिक हालात का जिक्र किया. प्रणब दा ने कांग्रेस (Congress) के तौर तरीकों को 2014 में करारी हार की वजह बताया. इसके साथ ही Pranab Mukherjee ने पीएम मोदी को पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री से प्रेरणा की सलाह देते हुए लिखा कि उन्हें असहमति की आवाज भी सुननी चाहिए. आपको प्रणब दी की पुस्तक में मौजूद कुछ बड़े तथ्यों से रूबरू करवाते हैं.
'द प्रेसिडेंसियल ईयर्स, 2012-2017’
सवाल- 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का फैसला कितना गुपचुप था?
सवाल- 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार की वजह क्या थी?
सवाल- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में सदन के नहीं चलने की बड़ी वजह क्या थी?
ऐसे ही कई सवालों का जवाब प्रणब मुखर्जी की आत्मकथा 'द प्रेसिडेंसियल ईयर्स, 2012-2017' (The Presidential Years 2012-2017) में है. उन्होंने अपने निधन से पहले इस किताब को पूरा किया था और अब ये किताब बाजार में आ गई है. किताब में प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) ने अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान देश की सियासत का हाल लिखा है और कई सवालों का जवाब दिया है.
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नोटबंदी के सवाल पर प्रणब दा का जवाब
यही नहीं प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में नोटबंदी (Demonetisation) के फैसले का भी जिक्र किया है और लिखा कि 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा करने से पहले उनके साथ इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं की थी, लेकिन इससे उन्हें हैरानी नहीं हुई क्योंकि ऐसी घोषणा के लिए आकस्मिकता जरूरी है.'
कांग्रेस पर प्रणब मुखर्जी ने किया प्रहार
2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस (Congress) की करारी हार पर प्रणब मुखर्जी ने लिखा कि 'मुझे लगता है कि पार्टी अपने करिश्माई नेतृत्व के खत्म होने की पहचान करने में विफल रही. पंडित नेहरू जैसे कद्दावर नेताओं ने यह सुनिश्चित किया कि भारत अपने अस्तित्व को कायम रखे और एक मजबूत व स्थिर राष्ट्र के तौर पर विकसित हो. दुखद है कि अब ऐसे अद्भुत नेता नहीं हैं, जिससे यह व्यवस्था औसत लोगों की सरकार बन गई.'
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प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान संसद के गतिरोध का भी जिक्र किया है. और लिखा है कि 'मैं सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच कटुतापूर्ण बहस के लिए सरकार के अहंकार और स्थिति को संभालने में उसकी अकुशलता को जिम्मेदार मानता हूं.'
प्रधानमंत्री मोदी को प्रणब की की सलाह
किताब में पूर्व राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री के साथ अपने सौहार्दपूर्ण संबंधों का भी जिक्र किया है. साथ ही प्रधानमंत्री मोदी को पूर्व के प्रधानमंत्रियों से प्रेरणा लेने की भी सलाह दी. किताब में उन्होंने लिखा कि 'सिर्फ प्रधानमंत्री के संसद में उपस्थित रहने भर से इस संस्था के कामकाज में बहुत बड़ा फर्क पड़ता है. चाहे जवाहलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) हों, या फिर इंदिरा गांधी (Indira Gandhi), अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) अथवा मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) हों, इन्होंने सदन में अपनी उपस्थिति का अहसास कराया. प्रधानमंत्री मोदी को अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों से प्रेरणा लेनी चाहिए और नजर आने वाला नेतृत्व देना चाहिए.'
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पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी किताब में 2012 से 2017 के बीच के कई राजनीतिक घटनाक्रम का ना सिर्फ जिक्र किया है, बल्कि अपनी राय भी रखी है. किताब मंगलवार को ही बाजार में आई है और ज़ाहिर है अगले कुछ दिनों में इसमें कही बातें भी सियासत का हिस्सा बनने वाली हैं.
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