नई दिल्ली: सिर्फ एक महीने पहले गौतम अडानी की गिनती दुनिया के तीसरे सबसे अमीर शख्स के रूप में होती थी लेकिन अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की नकारात्मक रिपोर्ट आने के बाद उनकी अगुवाई वाले समूह के शेयरों में इस कदर बिकवाली हुई कि अब वह सबसे अमीर लोगों की सूची में 30वें स्थान पर आ गए हैं.


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12.06 लाख करोड़ रुपये की भारी-भरकम गिरावट
बंदरगाह, हवाई अड्डा, खाद्य तेल, बिजली, सीमेंट और डेटा केंद्र जैसे तमाम क्षेत्रों में कारोबारी दखल रखने वाले अडानी समूह के शेयरों में बीते एक महीने में भारी बिकवाली हुई है. आंकड़े बताते हैं कि अडानी समूह की 10 कंपनियों के सम्मिलित बाजार मूल्यांकन में इस दौरान 12.06 लाख करोड़ रुपये की भारी-भरकम गिरावट आ चुकी है.


हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट 24 जनवरी को प्रकाशित हुई थी जिसमें अडानी समूह पर शेयरों के दाम बढ़ाने में हेराफेरी और फर्जी विदेशी कंपनियों का इस्तेमाल करने के गंभीर आरोप लगाए गए थे. हालांकि, अडानी समूह ने इन आरोपों को झूठा एवं आधारहीन बताते हुए उन्हें खारिज कर दिया था. अडानी समूह की तरफ से दिए गए तमाम स्पष्टीकरण के बाद भी इसके शेयरों में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी है.


अडानी को सबसे अधिक नुकसान कहां हुआ?
सर्वाधिक नुकसान अडानी टोटल गैस लिमिटेड को हुआ है जिसके बाजार मूल्यांकन में 80.68 प्रतिशत की बड़ी गिरावट हो चुकी है. इसी तरह अडानी ग्रीन एनर्जी का मूल्यांकन 74.62 प्रतिशत घट गया है. अडानी ट्रांसमिशन के बाजार मूल्य में 24 जनवरी से अबतक 74.21 प्रतिशत की गिरावट आई है. वहीं समूह की मुख्य कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज का मूल्यांकन करीब 62 प्रतिशत तक गिर चुका है.


अडानी पावर और अडानी विल्मर के अलावा इसकी सीमेंट कंपनियों अंबुजा सीमेंट्स एवं एसीसी के बाजार पूंजीकरण में भी इस दौरान गिरावट दर्ज की गई है. इसके साथ ही मीडिया कंपनी एनडीटीवी और अडानी पोर्ट्स एंड एसईजेड को भी मूल्यांकन में खासा नुकसान हुआ है. अगर गौतम अडानी की व्यक्तिगत पूंजी की बात करें तो उनका मूल्यांकन 120 अरब डॉलर से घटकर 40 अरब डॉलर से भी कम रह गया है. इस तरह उनके व्यक्तिगत मूल्यांकन में 80 अरब डॉलर यानी दो-तिहाई की गिरावट आ चुकी है.


दुनिया के 10वें सबसे अमीर शख्स हैं मुकेश अंबानी
अडानी की संपत्ति में गिरावट आने के साथ ही रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी फिर से देश के सबसे धनी आदमी बन गए हैं. अंबानी 81.7 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ दुनिया के 10वें सबसे अमीर शख्स हैं. अमेरिका के पूर्व वित्त मंत्री और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व अध्यक्ष लैरी समर्स ने हाल ही में अडानी प्रकरण की तुलना एनरॉन मामले से करते हुए कहा था कि यह भारत का एनरॉन प्रकरण बन सकता है. वर्ष 2001 में अमेरिकी कंपनी एनरॉन कॉरपोरेशन पर राजस्व बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के आरोप लगने के बाद उसके शेयरों में भारी गिरावट आई थी.


हिंडनबर्ग रिसर्च ने भी अपनी निवेश शोध रिपोर्ट में अडानी समूह पर शेयरों के भाव चढ़ाने के लिए गलत तरीके अपनाने के आरोप लगाए हैं. उसके आरोपों के मूल में यह है कि अडानी समूह के अधिकारियों या परिवार के सदस्यों का उन फर्मों पर किसी तरह का नियंत्रण है जो समूह की कंपनियों का स्वामित्व रखती हैं. मसलन, मॉरीशस में गठित ओपल इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड की अडानी पावर में 4.69 प्रतिशत हिस्सेदारी है.


आरोप है कि ओपल इन्वेस्टमेंट का गठन ट्रस्टलिंक इंटरनेशनल लिमिटेड ने किया था जिसके ताल्लुक अडानी परिवार से रहे हैं. हालांकि, अडानी समूह ने 27 जनवरी को कहा था कि ओपल की तरफ से खरीदे जाने वाले शेयरों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं होता है. इस मामले में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने लगातार सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर निशाना साधा है.


नरेंद्र मोदी सरकार पर कांग्रेस ने लगाए गंभीर आरोप
कांग्रेस ने अडानी समूह के त्वरित विस्तार में नरेंद्र मोदी सरकार के सक्रिय समर्थन का हाथ होने के आरोप लगाए हैं. हालांकि, सरकार एवं भाजपा दोनों ने इन आरोपों को नकारा है. गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी का नाम भी इस विवाद में जोर-शोर से उभरा है. हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में विनोद अडानी पर विदेशों में गठित संदिग्ध कंपनियों के साथ जुड़ाव के आरोप लगाए गए हैं.


हिंडनबर्ग के मुताबिक, विनोद अडानी मॉरीशस, साइप्रस और कई कैरेबियाई देशों में गठित उन कंपनियों का प्रबंधन करते हैं जिनका अडानी समूह के साथ चोरी-छिपे लेनदेन है. हालांकि, समूह ने कहा कि विनोद अडानी उसकी किसी भी सूचीबद्ध कंपनी में अहम प्रबंधकीय पद पर नहीं हैं और न ही वह रोजमर्रा के कामकाज में कोई भूमिका निभाते हैं. बीते एक महीने में अडानी एंटरप्राइजेज की तरफ से लाए गए 20,000 करोड़ रुपये के एफपीओ को पूर्ण अभिदान मिलने के बाद भी वापस लेने का फैसला काफी अहम रहा.


हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद शेयरों में जारी तीव्र गिरावट के बीच एफपीओ को निर्गम के अंतिम दिन पूर्ण अभिदान मिल गया था. लेकिन प्रबंधन ने संभवतः एलआईसी जैसे बड़े निवेशकों को नुकसान से बचाने के लिए इसे वापस लेने का फैसला किया.


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