नई दिल्ली: Gyanvapi Case: ज्ञानवापी केस में आज शुक्रवार 7 अक्टूबर को अहम फैसला सुनाया जा सकता है. अदालत तय करेगी कि सर्वे के दौरान ज्ञानवापी परिसर में वजूखाने के पास जो कथित शिवलिंग, जिसे मुस्लिम पक्ष फव्वारा बताता है उसकी कार्बन डेटिंग होगी या नहीं. आइये कार्बन डेटिंग के बारे में विस्तार से जानते हैं. 


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क्या  है कार्बन डेटिंग
 रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक का आविष्कार 1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड लिबी और उनके साथियों ने किया था. कार्बन डेटिंग एक विधि है, जिसकी वस्तु की उम्र का अंदाजा लगाया जाता है. इसका इस्तेमाल  बेहद पुरानी वस्तुओं की उम्र जानने में किया जाता है. इस तकनीक के जरिये लकड़ी, चारकोल, बीज,हड्डी, चमड़े, बाल, सींग और रक्त अवशेष, पत्थर व मिट्टी की उम्र पता कर सकते हैं.ये वे चीजें हैं जिसमें कार्बनिक अवशेष होते हैं.


कार्बन डेटिंग का तरीका
विशेषज्ञों के मुताबिक  वायुमंडल में कार्बन के 3 आइसोटोप होते हैं, कार्बन 12, कार्बन 13 और कार्बन 14. कार्बन डेटिंग के लिए कार्बन 14 चाहिए होता है और फिर इसमें कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच अनुपात निकाला जाता है. इस बदलाव को मापने के बाद किसी जीव  या वस्तु की अनुमानित उम्र का पता लगाया जाता है. 

बता दें कि वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद पुराना है. अदालत के आदेश पर मस्जिद में सर्वे और वीडियोग्राफी हो चुकी है. भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण आंदोलन के दौरान ही मथुरा में कृष्णजन्म भूमि-शाही ईदगाह मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे को भी उठाया था. उनका दावा है कि यह तीनों मस्जिदें, हिंदू मंदिरों को गिराकर बनाई गई थीं.

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