Indo China Conflict: समंदर में दफ़न होगा चीन का निरंकुश अहंकार
अरुणाचल प्रदेश से लेकर लद्दाख तक चीन की सेना युद्ध की तैयारियों में जुटी है. लड़ाकू विमान, टैंक और हावित्जर तोपों की तैनाती जारी है. लेकिन चीन की असली कमजोरी समुद्री मोर्चा है. ड्रैगन ने अगर जमीन पर दुस्साहस किया तो भारतीय नौसेना समुद्र में उसकी गर्दन दबोचने के लिए तैयार बैठी है. चीन को औकात में लाने के लिए भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच संयुक्त नौसैनिक अभ्यास आज से शुरु है.
नई दिल्ली: ऑस्ट्रेलिया भारत (India)और ऑस्ट्रेलिया के बीच हिंद महासागर में दो दिनों का संयुक्त युद्धाभ्यास (India-Australia joint Naval Exercise) आज बुधवार 23 सितंबर से शुरु हो रहा है. जिसमें दोनों सेनाएं जटिल नौसैनिक कौशल, विमान विरोधी ड्रिल और हेलिकॉप्टर अभियानों की पूरी रेंज के साथ उतरेंगी.
जून से अब तक यह भारतीय नौसेना (Indian Navy) की चौथी अहम सैन्य ड्रिल है. इससे पहले अमेरिका, जापान और रूस के साथ ऐसा नौसैनिक अभ्यास हो चुका है. इस नौसैनिक अभ्यास में भारत की तरफ INS सहयाद्रि (INS Shayadri) और INS कार्मुक (INS Karmuk) हिस्सा लेंगे. जबकि रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी की ओर से एचएमएएस होबार्ट (HAMS Hobart) इसमें भाग लेगा.
चीन की सेना जमीनी मोर्चे पर पूर्वी लद्दाख (eastern laddakh), देपसांग और अरुणाचल (Arunachal pradesh) में भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करने की तैयारी कर रही है. पाकिस्तान भी चोरी छिपे उसका साथ दे रहा है. लेकिन चीन शायद यह भूल जाता है कि जिस दिन भारत ने चीन को मुश्किल में डालने की बात ठान ली, उसी दिन भारतीय नौसेना चीन की सारी हेकड़ी निकाल देगी. ये अभ्यास चीन को यही सच समझाने के लिए है.
चीन को अकेले सबक सिखा सकती है भारतीय नौसेना
हिंदुस्तान दुनिया का इकलौता देश है. जिसके नाम पर पूरा एक महासागर है. यानी हिंद महासागर (Indian Ocean). लाखों वर्गमील में फैले इस समुद्री इलाके में हिंदस्तान की हुकूमत चलती है. भारतीय नौसेना की अनुमति के बिना इस इलाके में परिंदा भी पंख नहीं मार सकता.यही वो कमजोर नस है, जिसे दबाने से चीन बुरी तरह परेशान हो सकता है.
क्योंकि चीन का समुद्री व्यापार और उसकी तेल सप्लाई का 25 फीसदी इसी इलाके से होता है. यही नहीं चीन को अपना तैयार माल यूरोप और अमेरिका भेजने के लिए भी इस रास्ते की जरुरत होती है. चीन का 40 फीसदी निर्यात इसी रास्ते से होकर गुजरता है. चीन को अंतरराष्ट्रीय सागर में पहुंचने के लिए मलक्का जलडमरुमध्य (strait of Malacca) पार करना होता है.
लेकिन मलक्का जलडमरुमध्य से आगे भारतीय जल क्षेत्र से शुरु हो जाता है. जहां अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों पर भारतीय नौसेना का मज़बूत बेस मौजूद है. जो किसी भी तरह के समुद्री आवागमन को पूरी तरह ठप कर सकता है.
क्या है मलक्का स्ट्रेट का महत्व
मलक्का जलडमरुमध्य से हर साल लगभग 95000 व्यापारिक जहाज गुजरते हैं. जिसमें सबसे ज्यादा चीन के होते हैं. यह लगभग 800 किलोमीटर लंबा जलमार्ग है. जो बेहद संकरा (narrow) है. एक जगह पर तो यह रास्ता सिर्फ 2.8 किलोमीटर चौड़ा और मात्र 84 फुट गहरा है.
दुनिया के व्यापारिक नौवहन शब्दकोश में "मलक्कामैक्स" शब्द के तौर पर शामिल है. जिसका अर्थ है कि 84 फुट से कम गहराई वाला जहाज. क्योंकि इससे अधिक गहराई वाला जहाज मलक्का स्ट्रेट को पार नहीं कर सकता. इस प्राकृतिक परेशानी के बावजूद दुनिया भर के जहाजों के लिए मलक्का स्ट्रेट से गुजरना मजबूरी है. क्योंकि इसका कोई विकल्प नहीं है.
लेकिन मलक्का स्ट्रेट तक पहुंचने के लिए भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूहों के पास से गुजरना होता है. जहां भारतीय नौसेना राज करती है. यह स्थिति चीन को परेशान करने वाली है. क्योंकि भारत के एक इशारे पर उसका पूरा समुद्री मार्ग बाधित हो जाएगा. ना तो उसे तेल मिल पाएगा और ना ही उसका तैयार माल एशिया, अफ्रीका और यूरोप के बाजारों तक पहुंच पाएगा.
भारतीय नौसेना कभी भी दबोच सकती है चीन की गर्दन
चीन को भारत की थल और वायुसेना से उतना डर नहीं लगता. जितना उसे भारतीय नौसेना का खौफ है. ड्रैगन जानता है कि भारतीय नौसेना की जरा सी कोशिश उसे पूरी तरह पंगु बना सकती है.
भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह में 572 टापू हैं. जो कि हमारे देश की मुख्य भूमि से हजारों किलोमीटर दूर बिल्कुल मलेशिया और इंडोनेशिया के बिल्कुल नजदीक स्थित हैं. यहां मौजूद भारतीय सेना और नौसेना चीन के व्यापारिक मार्ग "स्ट्रेट आफ मलक्का" को किसी भी समय पूरी तरह से ठप कर सकती है.
अंडमान निकोबार दीप समूह में उपस्थित भारत की अंडमान निकोबार कमांड (ANC) और ट्राई सर्विस स्ट्रैटेजिक कमांड (Tri Services Strategy Command)चीन के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द है.
इसके अलावा भारतीय नौसेना चीन के तीन कमजोर बिंदुओं पर एक साथ हमला करके उन्हें बर्बाद करने की स्थिति में है. जिसमें से पहला है. strait of Malacca, दूसरा ग्वादर पोर्ट और तीसरा हॉर्न ऑफ अफ्रीका पर जिबूती पोर्ट. इन तीनों जगहों पर चीन ने अपने अड्डे बना रखे हैं. लेकिन यह तीनों अड्डे भारतीय नौसेना के रहमोकरम पर हैं.
इन्हें निशाना बनाने के लिए भारतीय नौसेनिक जहाजों को अपनी तयशुदा पोजिशन को छोड़कर ज्यादा गति (manoeuver) करने की भी आवश्यकता नहीं है. ना ही भारतीय नौसेना को अपने समुद्री Exclusive Economic Zone (EEZ) को छोड़कर दूर जाने की जरुरत है.
भारतीय नौसेना अपने इलाके में बैठकर बड़ी आसानी से चीन के इन तीनों नाजुक बिंदुओं पर करारा वार कर सकती है.
चीन अपनी इस कमजोरी से वाकिफ है
ऐसा नहीं है कि चीन अपनी इस कमजोरी को जानता नहीं है. इसीलिए चीन की सरकार हिंद महासागर को छोड़कर दक्षिए एशिया, मध्य एशिया, अफ्रीका और यूरोप तक पहुंचने के लिए वैकल्पिक रास्तों की तलाश में जुटी रहती है. लेकिन उसे अब तक सफलता नहीं मिली है.
चीन ने आर्कटिक महासागर से होकर यूरोप जाने के लिए रास्ता तैयार करने की पूरी कोशिश की. लेकिन इस रास्ते में बेहद ज्यादा सर्दी होने की वजह से कई जगहों पर बर्फ की बड़ी बड़ी चट्टानें तैरती रहती हैं. जो कि किसी भी जहाज को डुबा सकती हैं. टाइटैनिक भी ऐसी ही एक बर्फ की चट्टान से टकराकर डूबा था.
समुद्री रास्तों पर अपनी निर्भरता खत्म करने के लिए ही चीन OBOR (one belt one road) परियोजना पर तेजी से काम कर रहा है. लेकिन यह भी रास्ता उसे सिर्फ ग्वादर तक पहुंचा सकता है और एशिया के कुछ देशों तक माल सप्लाई में मदद कर सकता है. यह समुद्री रास्ते का पूरा विकल्प नहीं है.
समुद्र के रास्ते चीन का दूसरा रास्ता इंडोनेशिया के जावा सुमात्रा द्वीपों के बीच सुंदा स्ट्रेट (Sunda strait) से होकर निकलता है. लेकिन इस रास्ते से 1000 नॉटिकल माइल अतिरिक्त यानी तीन दिन ज्यादा लग जाते हैं. इसके अलावा इस रास्ते की गहराई मलक्का स्ट्रेट से भी कम है. यानी बड़े जहाज यहां से नहीं गुजर सकते.
इसके अलावा इंडोनेशिया से चीन के संबंध बेहद अच्छे नहीं हैं. जिसके कारण इस रास्ते पर हमेशा खतरा मंडराता रहेगा. इसके अलावा ये रास्ता ऑस्ट्रेलिया की सीमा के बेहद नजदीक है. जो कि दुनिया में कोरोना फैलाने के लिए चीन को जिम्मेदार मानते हुए भारत, जापान और अमेरिका के साथ चीन विरोधी गठबंधन में शामिल है. भारत-ऑस्ट्रेलिया का ताजा अभ्यास इसी गठबंधन का नतीजा है.
चीन के खिलाफ पूरी दुनिया
समुद्र में चीन की कमजोरी औऱ भारत की ताकत से पूरी दुनिया वाकिफ है. यही वजह है कि चीन को काबू में लाने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में जापान सहित चीन के सभी पड़ोसी देश भारत का साथ देने के लिए तैयार हैं.
भारत ने मलक्का स्ट्रेट के बिल्कुल पास में INS Kohassa नाम का तीसरा नेवल बेस बनाया है. जहां पर लड़ाकू जहाज तैनात हैं. इसके अलावा दो नेवल बेस अंडमान निकोबार में पहले से ही हैं. मलक्का जलडमरूमध्य हिंद और प्रशांत महासागर को जोड़ने के अलावा चीन सागर (China sea) को भी हिंद महासागर से जोड़ने सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है.
चीन सागर के आस पास बसे देश इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, वियतनाम, लाओस इत्यादि किसी भी देश से चीन के संबंध अच्छे नहीं है. लेकिन भारत से इन सभी के रिश्ते बहुत अच्छे हैं. जो कि चीन की चिंता का कारण है.
इसके अलावा दक्षिण चीन सागर इलाके के पास 90 फाइटर जेट और 6 हजार नौसैनिकों के साथ "USS Nimitz" और 60 फाइटर जेट और 4 हजार नौसैनिकों के साथ "USS Ronald Reagan" तैनात है.
ऐसे में अगर चीन भारत के खिलाफ जमीन पर किसी तरह का कदम उठाता है तो समुद्र में उसकी करारी हार तय है. इसके अलावा दुनिया से उसका संपर्क पूरी तरह कट जाएगा. चीन ये स्थिति बर्दाश्त नहीं कर सकता है. उसकी हार तय है.
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