नई दिल्ली.  क्या लोकतंत्र को अपराधी नेताओं के लिए बनाया गया था? यदि अपराधी नेता लोकतंत्र का हिस्सा हैं तो यह किस प्रकार का लोकतंत्र है भारत में? राजनीतिक पाखंड का दूसरा नाम है भारतीय लोकतंत्र जिसमे लगभग हज़ारों सांसदों और विधायकों पर विभिन्न न्यायालयों में आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं. 


4442 नेताओं पर आपराधिक प्रकरण 


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छोटी सी बात है मगर बहुत इसमें कई सवाल हैं. चपरासी जैसी छोटी सी नौकरी में एक आपराधिक पृष्टभूमि के व्यक्ति को नहीं लिया जा सकता किन्तु देश के संविधान के रक्षकों और देश के भविष्य के निर्माताओं के लिए यह सुविधा क्यों दी गई है?  अपराधी देश के संविधान की रक्षा कैसे कर सकते हैं? देश का क़ानून कैसे बना सकते हैं ? और ये लोग जनता को भला क्या न्याय दे सकते हैं? इस देश में अधिकार सबके लिए समान क्यों नहीं हैं?


539 में से 233 ने किया घोषित 


543 सांसदों और 4123 विधायकों को जोड़ कर लगभग साढ़े चार हज़ार चुने हुए नेता हैं हमारे देश में.  इनमें से आज की संसद के चुनाव जीत कर आये 539 सांसदों में से 233 ने स्वयं ही यह घोषणा की है कि उनके विरुद्ध विभिन्न न्यायलयों में आपराधिक प्रकरण चल रहे हैं. दुखद सत्य ये भी है कि कुछ सांसद ऐसे भी हैं जिन पर 100 से ज़्यादा मुकदमे लंबित हैं. अब बताइये देश की ऐसी संसद देश का कैसा भविष्य तय कर सकती है. 


देश की अन्य संस्थाओं के लिए प्रेरणा 


हमारे सांसद हमारे देश की अन्य संस्थाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनते हैं. ये सांसद हमारे देश के सरकारी सेलेब्रिटी हैं जिनका यशगान मीडिया को करना पड़ता है. यदि हमारे सांसदों की तरह हमारे देश के शिक्षक भी हो जाएँ, हमारे अधिकारी भी ऐसे ही हो जाएँ, हमारे न्यायाधीश भी  हो जाएँ, हमारा पुलिसबल हमारी सेना भी यदि ऐसी ही हो जाए - तो आप अनुमान लगाइये इस देश को रसातल में जाने से कौन रोक सकता है?


देश की लाइफ-लाइन है डेमोक्रेसी 


डेमोक्रेसी के जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि हमारे सांसद और विधायक हमारे देश की लाइफ-लाइन हैं. यदि हमारी लाइफ-लाइन को कीड़े लग जाएं तो हमारे देश के भविष्य से क्या आशा की जा सकती है. हमारे मृतप्राय लोकतंत्र में अपराधी नेता बाहर से चुनाव तो लड़ते हैं, जेल के भीतर से भी चुनाव लड़ने की सुविधा उन्हें प्राप्त है. जेल से छूट कर जब ये अपराधी नेता बाहर आते हैं तो फिर अपने बाहुबल और पैसे की दम पर चुनाव लड़ने पर आमादा हो जाते हैं. ऐसे में एक सच्चा जनप्रितिनिधि उनके खिलाफ कैसे खड़ा रह सकता है और कैसे चुनाव जीत सकता है? किस लोकतंत्र पर गर्व करते हैं हम?


भाजपा नेता की उचित मांग 


भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की सराहना होनी चाहिए कि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका के माध्यम से मांग की है कि गंभीर अपराध में लिप्त नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने से रोका जाए क्योंकि ऐसा करना बिलकुल वैसा होगा ही जैसे मामूली अपराध के सिद्ध हो जाने पर सरकारी कर्मचारियों को सदा के लिए नौकरी से निकाल दिया जाता है या सरकारी नौकरी के लिये योग्य नहीं माना जाता है.


पार्टियों पर प्रतिबंध लगाया जाए 


राजनीति करने का अधिकार नेताओं को जन्मसिद्ध तौर पर मिला हुआ है. ऐसे में हर तरह के भ्रष्टाचार के अलावा गबन, घोटाला, चोरी, डकैती, बलात्कार, हत्या जैसे घृणित और संगीन अपराधों में लिप्त लोगों को किसी भी पार्टी का सदस्य बनने से रोका जाना चाहिए ताकि वे अपने पैसे, अपने बाहुबल, अपनी जाति, अपने धर्म का फायदा उठा कर चुनाव न जीत सकें क्योंकि देश की व्यवहारिक रूप से अनपढ़ जनता इन लोगों को ही वोट देकर चुन भी लेती है.  


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