नई दिल्लीः उत्तराखंड वन अनुसंधान संस्थान लगातार नई वनस्पतियों की खोज कर रहा है. वन अनुसंधान संस्थान ने एक ऐसे अद्भुत फूल की खोज की है, जिसके बारे में जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. यह फूल आम फूलों की तरह ही दिखता है, लेकिन इसका खाना और जीवित रहने की प्रक्रिया दूसरे फूलों और पौधों से बिल्कुल अलग है. जैसा ही उसके नाम से ही साफ हो जाता है कि यह पौधा मांसाहारी है. मतलब, मांस खाता है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

चमोली मंडल की घाटी में मिला दुर्लभ फूल
उत्तराखंड वन विभाग के अनुसंधान विंग ने चमोली की मंडल घाटी में दुर्लभ मांसाहारी पौधे यूट्रीकुलरिया फुरसेलटा की खोज की है.



मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि पूरे पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में यह पहली ऐसी रिकॉर्डिंग है. इससे पहले इस मांसाहारी फूल को उच्च हिलालयी क्षेत्रों में कभी नहीं देखा गया है.


बारिश में तेजी से बढ़ता है ये पौधा
यूट्रीकुलरिया फुरसेलटा को ब्लैडरवर्ट भी कहते हैं. यह ज्यादातर साफ पानी में पाया जाता है. इसकी कुछ प्रजातियां पहाड़ी सतह वाली जगहों पर भी मिलती हैं. बारिश के दौरान यह तेजी से बढ़ता है. इसकी खास बात यह है कि ये फूल वनस्पति की अन्य प्रजातियों की तरह यह पौधा प्रकाश संश्लेषण क्रिया से भोजन हासिल नहीं करता. बल्कि शिकार के जरिये जीते हैं. 


यह कीड़े-मकौड़ों को खाता है. जैसे ही कोई कीट पतंगा इसके नजदीक आता है. इसके रेशे उसे जकड़ लेते हैं. पत्तियों में निकलने वाला एंजाइम कीटों को खत्म करने में मदद करता है.


यह प्रोटोजोआ से लेकर कीड़े, मच्छर के लार्वा और यहां तक कि युवा टैडपोल का भी भक्षण कर सकता है. संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि यह खोज उत्तराखंड में कीटभक्षी पौधों के अध्ययन की एक परियोजना का हिस्सा थी, जिसे 2019 में अनुसंधान सलाहकार समिति (आरएसी) की संस्तुति पर किया गया था.


आम पौधों से अलग दिखते हैं ये
इस तरह के पौधे सिर्फ ऑक्सीजन ही नहीं देते, बल्कि कीट पतंगों से भी बचाते हैं. ये दलदली जमीन या पानी के पास उगते हैं और इन्हें नाइट्रोजन की अधिक जरूरत होती है. जब इन्हें यह पोषक तत्व नहीं मिलता तो ये कीट पतंगे खाकर इसकी कमी को पूरा करते हैं. यह आम पौधों से थोड़ा अलग दिखते हैं .


जापानी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है शोध
इस खास तरह के फूल के बारे में 106 साल पुरानी जापानी शोध पत्रिका जर्नल ऑफ जापानी बॉटनी में लिखा गया है. पत्रिका में उत्तराखंड के वनों से जुड़ा पहला शोधपत्र पहली बार प्रकाशित हुआ है. मेघालय और दार्जिलिंग के कुछ हिस्सों में पाई जाने वाली यह प्रजाति 36 साल बाद भारत में फिर से रिकॉर्ड गई है.


यह भी पढ़िएः महाराष्ट्र के 15 बागी विधायकों को मिली वाई प्लस सुरक्षा, केंद्र सरकार ने मुहैया कराई सिक्योरिटी


 



Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.