जोशीमठ आपदा: क्या है जमीन दरकने के पीछे का बड़ा कारण, 1971 में भी यहां दिखीं थी दरारें

उत्तराखंड के जोशीमठ में सड़कों और घरों में दरारें मुख्य रूप से हिमालय जैसे बेहद नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में हो रहे बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के विकास के कारण हैं. विशेषज्ञों ने रविवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन एक गुणक (मल्टीप्लायर) ताकत है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 9, 2023, 08:24 AM IST
  • पर्यावरण से खिलवाड़ का नतीजा है ये आपदा
  • मानवजनित गतिविधियों के कारण बनी ऐसी स्थिति
जोशीमठ आपदा: क्या है जमीन दरकने के पीछे का बड़ा कारण, 1971 में भी यहां दिखीं थी दरारें

नई दिल्ली: उत्तराखंड के जोशीमठ में सड़कों और घरों में दरारें मुख्य रूप से हिमालय जैसे बेहद नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में हो रहे बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के विकास के कारण हैं. विशेषज्ञों ने रविवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन एक गुणक (मल्टीप्लायर) ताकत है.

हालांकि, एक स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता ने जोशीमठ और उसके आसपास कई सुरंगों और जलविद्युत परियोजनाओं को अपूरणीय क्षति के लिए जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि उनकी आवाज को खुले तौर पर नजरअंदाज किया गया है.

पर्यावरण से खिलवाड़ का नतीजा है ये आपदा

भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के अनुसंधान निदेशक और सहायक एसोसिएट प्रोफेसर व आईपीसीसी रिपोर्ट के प्रमुख लेखक अंजल प्रकाश ने मीडिया को बताया कि जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता बन रहा है. स्थानीय अधिकारी पर्यावरण के साथ इस हद तक खिलवाड़ कर रहे हैं जो अपरिवर्तनीय है.

उन्होंने कहा, "जोशीमठ समस्या के दो पहलू हैं - पहला बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का विकास है, जो हिमालय जैसे बहुत ही नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में हो रहा है और यह एक तरह से बिना किसी नियोजन प्रक्रिया के हो रहा है."

उन्होंने कहा, "दूसरी बात, जलवायु परिवर्तन एक बल गुणक है. जिस तरह से कुछ पहाड़ी राज्यों में जलवायु परिवर्तन प्रकट हो रहा है वह अभूतपूर्व है. उदाहरण के लिए 2021 और 2022 उत्तराखंड के लिए आपदा के वर्ष रहे हैं. अत्यधिक वर्षा जैसी कई जलवायु जोखिम घटनाएं दर्ज की गई हैं, जो भूस्खलन का कारण बनती हैं."

पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव के गंभीर परिणाम हमारे सामने

अंजल प्रकाश ने कहा, "हमें पहले यह समझना होगा कि ये क्षेत्र बहुत नाजुक हैं और पारिस्थितिकी तंत्र में छोटे बदलाव या गड़बड़ी गंभीर आपदाओं को जन्म देगी, जो हम जोशीमठ में देख रहे हैं. वास्तव में, हिमालयी क्षेत्र में यह इतिहास का एक विशेष बिंदु है, जिसे इस रूप में याद किया जाना चाहिए."

हीम, अर्नोल्ड और ऑगस्ट गांसर की पुस्तक 'सेंट्रल हिमालय' के अनुसार, चमोली जिले का जोशीमठ कस्बा भूस्खलन के मलबे पर बसा है. कुछ घरों ने पहले ही 1971 में दरारों की सूचना दी थी, जिसके बाद एक रिपोर्ट ने कुछ उपायों का सुझाव दिया था, जिसमें मौजूदा पेड़ों का संरक्षण और अधिक पेड़ लगाना शामिल था, जिन पत्थरों पर शहर स्थित है, उन्हें छुआ नहीं जाना चाहिए और सीमेंट कंक्रीट (आरसीसी) से मजबूत करना चाहिए.

मानवजनित गतिविधियों के कारण बनी ऐसी स्थिति

वाई.पी. एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के प्रमुख सुंदरियाल ने मीडिया को बताया कि इन उपायों का कभी पालन नहीं किया गया. कई विशेषज्ञों ने उल्लेख किया है कि पारंपरिक आवास निर्माण प्रौद्योगिकियां नवनिर्मित बुनियादी ढांचे की तुलना में भूकंप और भूस्खलन का अधिक मजबूती से सामना करने में सक्षम हैं.

मौजूदा हालात के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, जोशीमठ में चल रहा संकट मुख्य रूप से मानवजनित गतिविधियों के कारण है. जनसंख्या में कई गुना वृद्धि हुई है और इसलिए पर्यटकों की भूमि में गिरावट आई है. इंफ्रास्ट्रक्चर भी बढ़ाया गया है और अनियंत्रित किया गया है. इसके बावजूद कस्बे में जल निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं है.

 पनबिजली परियोजनाओं के लिए स्थानीय भूकंप झटके दिए गए

सुंदरियाल के मुताबिक, मलबे की चट्टानों के बीच महीन सामग्री के क्रमिक अपक्षय के अलावा, पानी के रिसाव ने समय के साथ चट्टानों की सोखने की शक्ति को कम कर दिया है. इसी वजह से भूस्खलन हुआ है, जिससे घरों में दरारें आ गई हैं.

दूसरे, पनबिजली परियोजनाओं के लिए इन सुरंगों का निर्माण ब्लास्टिंग, स्थानीय भूकंपीय झटके पैदा करने, चट्टानों के ऊपर से मलबा हिलाने, फिर से दरारें पैदा करने के माध्यम से किया जा रहा है.

स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता अतुल सत्ती ने कहा कि वे जोशीमठ और उत्तराखंड के अन्य हिस्सों में और उसके आसपास कई सुरंगों और जलविद्युत परियोजनाओं के कारण हुई अपूरणीय क्षति के बारे में अधिकारियों को बार-बार चेतावनी देते रहे हैं.

(इनपुट- आईएएनएस)

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