तो क्या बाबूलाल मरांडी खरमास बाद थाम लेंगे भगवा झंडा ?

झारखंड में चुनाव परिणाम के बाद सरकार में भले झामुमो के हेमंत सोरेन हों लेकिन भाव बढ़ गया है झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी का. वह इसलिए कि सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे झाविमो के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को भाजपा अपने पाले में लेना चाहती है और उन्हें पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका देने की योजना भी बना रही है. ऐसा क्यों, आइए जानते हैं.

Written by - Satyam Dubey | Last Updated : Jan 12, 2020, 04:13 AM IST
    • पार्टी आलाकमान को झारखंड में रसूखदार चेहरे की तलाश
    • क्यों फिट हैं भाजापा के लिए बाबूलाल मरांडी ?
    • राजनीतिक वर्चस्व वाले कबीले से आते हैं मरांडी
    • झाविमो विधायक और भाजपा सूत्रों के अलग-अलग बोल
    • खरमास के बाद हो सकता है ऐलान
तो क्या बाबूलाल मरांडी खरमास बाद थाम लेंगे भगवा झंडा ?

रांची: झारखंड में चुनाव परिणाम के बाद का समीकरण कुछ ऐसा है कि झामुमो के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार चला रही है और भाजपा विपक्षी पार्टी है. अन्य दो पार्टियां भी हैं जो झारखंड के चुनावी रण में किंगमेकर बनते बनते रह गईं. झाविमो और आजसू. भाजपा के पुराने साथी बाबूलाल मरांडी की झाविमो फिलहाल हेमंत सोरेन सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है. लेकिन अब हालात बदलते हुए दिखाई दे सकते हैं. ऐसा इसलिए कि बाबूलाल मरांडी जल्द भाजपा खेमें में वापसी करते दिखाई दे सकते हैं. बदले सियासी समीकरणों के बीचे भगवा बैनर तले बाबूलाल मरांडी की वापसी का रास्ता तय होता दिख रहा है.

पार्टी आलाकमान को झारखंड में रसूखदार चेहरे की तलाश

ऐसा इसलिए कि भाजपा में पुराने नेताओं की पार्टी से नाराजगी के बाद हुए अलगाव और रघुबर दास के फेल कर जाने के बाद सक्षम नेतृत्व की कमी से जूझ रहा है. रघुबर दास को झारखंड की जनता ने स्वीकार नहीं किया जिसके बाद यह बात उठने लगी कि झारखंड में किसी बाहरी चेहरे की बजाए पार्टी को राज्य के अंदर ही रसूखदार व्यक्तित्व की तलाश करनी चाहिए. ऐसे में पार्टी आलाकमान को नजर आए भाजपा के पुराने सारथी बाबूलाल मरांडी. 

क्यों फिट हैं भाजापा के लिए बाबूलाल मरांडी ?

बाबूलाल मरांडी भाजपा के लिए एक एक्सफैक्टर साबित पहले भी हो चुके हैं. भाजपा से दूरी के बाद भी कभी भी उनका रवैया धुर विरोधी वाला नहीं रहा. इसके कई कारण है. झाविमो प्रमुख खुद भी भाजपा के साथ गैर-राजनीतिक संगठनों की पृष्ठभूमि से आते हैं.

मरांडी की भाजपा के नेताओं से तो खूब बनती ही है, साथ ही झारखंड में किसी भी नेता से उनके संबंध काफी अच्छे रहे हैं. झारखंड के सियासी फिजाओं में यह बात तैरने लगी है कि भाजपा बाबूलाल मरांडी से बातचीत कर उन्हें पार्टी में शामिल कराने के लिए मांडवाली कर रही है. 

राजनीतिक वर्चस्व वाले कबीले से आते हैं मरांडी

दिलचस्प बात यह है कि झारखंड के तीन कबीलों का राजनीतिक रूप से काफी वर्चस्व रहा है. मरांडी, मुंडा और सोरेन. बाबूलाल मरांडी को भी आदिवासी समाज का काफी सहयोग मिलता रहा है. झाविमो का भाजपा में विलय कराने की चाह रखने वाली भाजपा आलाकमान यह बात भलीभांति जानती है. झाविमो के हालिया उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर जीत दर्ज कर पाए थे. इसके बाद से ही यह कयास लगाए जा रहे हैं कि खरमास के बाद पार्टी इसकी घोषणा भी कर सकती है. 

झाविमो विधायक और भाजपा सूत्रों के अलग-अलग बोल

हालांकि झाविमो के विधायक प्रदीप यादव से जब इस बारे में जानकारी ली गई तो उन्होंने कहा कि आप जब कयासों पर ही बात कर रहे हैं तो बेहतर होगा कि आप अध्यक्षजी से ही सीधा सीधा पूछ लें. मैं जहां हूं, वहीं रहूंगा.  उधर भाजपा के सूत्रों का दावा है कि वे जल्द ही मरांडी की झाविमो पार्टी का भाजपा में विलय करा सकते हैं. दरअसल, बाबूलाल मरांडी के मना करने के भी संकेत कम ही मिल रहे हैं. कारण कि भाजपा के साथ रहकर जहां तक वे पहुंच पाए, उसके बाद से पार्टी से अलग हटकर अपना दल बना कर वे कुछ खास नहीं पा सके. 

खरमास के बाद हो सकता है ऐलान

लोकसभा हो या विधानसभा सभी चुनावों में झाविमो का प्रदर्शन औसत ही रहा है. इसके अलावा भाजपा के साथ दोबारा आने की स्थिति में उन्हें पार्टी में वरीयता दिए जाने की पूरी संभावना नजर आ रही है. ऐसे में कल को यानी खरमास के बाद जैसा कि भाजपा नेताओं का दावा है, मरांडी भाजपा के साथी फिर से बनते नजर आ सकते हैं.

 

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