नई दिल्लीः राजधानी की हाई सिक्योरिटी तिहाड़ जेल में पिछले महीने की 14 तारीख को गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई से जुड़े बदमाश प्रिंस तेवतिया की चाकू से गोदकर हत्या होती है. इसके बाद 2 मई को गोगी गैंग के सदस्य धारदार हथियार से कई वार करके कुख्यात बदमाश टिल्लू ताजपुरिया की हत्या कर देते हैं. अब इसका वीडियो भी सामने आया है. इन दो हत्याकांड ने तिहाड़ जेल को फिर से सुर्खियों में ला दिया है. 


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रिपोर्ट्स के अनुसार, इस जेल में साढ़े सात हजार कैमरे लगे हैं. इसके बाद भी पिछले 9 साल में गैंगवार में 9 कैदियों जान गई है. इसकी एक वजह यह बताई जाती है कि तिहाड़ की क्षमता साढ़े पांच हजार कैदियों को रखने की है, लेकिन यहां 13 हजार से ज्यादा बंद हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो तिहाड़ जेल में 10 गैंग एक्टिव हैं. पांच-पांच गैंग के दो सिंडिकेट हैं. 


तिहाड़ जेल कब बनी थी?


साल 1957 में दिल्ली के चाणक्यपुरी से तिहाड़ गांव के करीब जेल बनी थी. शुरुआती 9 साल इसका जिम्मे पंजाब के पास रही. फिर इसकी जिम्मेदारी दिल्ली को मिल गई. फिर इसका काफी विस्तार हुआ और इसे तिहाड़ जेल नाम दिया गया.


किरण बेदी के समय हुआ कायाकल्प


किरण बेदी मई 1993 में दिल्ली जेल में महानिरीक्षक (IG) के रूप में तैनात हुई थी. उन्होंने तिहाड़ में कई सुधार किए. यहां उन्होंने कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं. विपश्यना मेडिटेशन भी शुरू किया था. 


तिहाड़ के कैदी ने पेश की थी मिसाल


मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, तिहाड़ में अपनी छात्रा से रेप और आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में बंद अशोक राय उर्फ अमित को निचली अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई थी. जेल में बंद अमित ने यूपीएससी की तैयारी की और अपनी सजा को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी. इस दौरान तैयारी को लेकर अमित की लगन देखकर कुछ अफसरों ने मदद भी की. अमित ने साल 2008 में एग्जाम दिया. उसने प्री, मेंस पास कर इंटरव्यू में हिस्सा लिया. 2009 में रिजल्ट आया तो अमित ने यूपीएससी पास कर ली.


इस तरह आईएएस किया ज्वाइन


चूंकि मामला हाई कोर्ट में था और अमित को जेल में रहते हुए साढ़े 5 साल हो गए थे. इसलिए कोर्ट के फैसले का इंतजार था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हाई कोर्ट ने फैसला देते समय अमित के आचरण और दूसरे कैदियों के लिए पेश की गई मिसाल को भी देखा. 


साथ ही कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की खुदकुशी केस से अमित का सीधा संबंध नहीं था. उसने कभी पीड़िता के साथ जबरदस्ती भी नहीं की. साथ ही वह साढ़े पांच साल जेल में काट चुका है इसलिए उसे रिहा कर दिया गया. इसके बाद अमित की आईएएस ट्रेनिंग हुई और बाद में भारत की सर्वोच्च सेवा में ज्वाइनिंग.


हालांकि, बाद में राष्ट्रीय महिला आयोग ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे सर्वोच्च अदालत ने खारिज कर दिया था.


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