नई दिल्ली: इन दिनों नागरिकता संशोधन कानून को सभी विपक्षी दल सबसे बड़े हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. इस कड़ी में सबसे शीर्ष पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम है. आज हम दीदी से कहना चाहते हैं कि विरोध करना आपका हक है लेकिन शासन प्रशासन छोड़कर सिर्फ मार्च निकालते रहना ही प्रदेश की जनता के साथ ज्यादती है.


दीदी आजकल 'मार्च मोड' में हैं


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शायद ही कोई दिन गुजरता होगा जब ममता बनर्जी कोलकाता में इस अंदाज में सड़क पर मार्च की अगुवाई ना करती हों. शायद ही कोई दिन गुजरता होगा जब ममता बनर्जी खुद हजारों की भीड़ को लेकर सड़क पर ना उतर रही हों. ममता बनर्जी कह भी चुकी हैं कि उनके जिंदा रहते पश्चिम बंगाल में नागरिकता कानून लागू नहीं होगा. 


ममता का दावा कितना सच्चा?


ममता भीड़ से कह रही हैं कि देशवासियों से नागरिकता का अधिकार कोई नहीं छीन सकता है. ममता ने नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन पर कहा कि ये कैसे हो सकता है कि इन्हीं छात्रों को 18 साल की उम्र में सरकार चुनने के लिए मतदान का अधिकार है तो तो उन्हें विरोध करने का अधिकार क्यों ना दिया जाए.


प्रधानमंत्री मोदी ने भी रामलीला मैदान की रैली में हिंदू शरणार्थियों को देश में शरण दिए जाने को लेकर ममता बनर्जी के बदले हुए रवैये पर सवाल उठाए थे.


नीचे दिया आंकड़ा देखिए और समझिए की ममता बनर्जी ने 16 दिसंबर से अबतक कितनी रैली और सभाएं नागरिकता कानून के विरोध में की हैं.


दीदी आजकल सिर्फ प्रदर्शन में व्यस्त हैं!


16 दिसंबर से अबतक 5 रैली और 3 जनसभाओं में हिस्सा लिया. हर रैली में 2 घंटे ममता बनर्जी मौजूद रहीं. और हर जनसभा में एक घंटे तक मौजूद रहीं. यानी 13 घंटे विरोध प्रदर्शन में ही गुजार दिए. पश्चिम बंगाल सरकार को चलाने में एक सेकेंड का खर्च 52 हजार रुपये है. और जब मुख्यमंत्री प्रशासन छोड़कर रैली और जनसभा में शामिल हों, तो 13 घंटे में 250 करोड़ का नुकसान पश्चिम बंगाल को झेलना पड़ा.


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सवाल ये है कि क्या ममता बनर्जी एक चुनी हुई मुख्यमंत्री होने के बावजूद क्या जनता को नागरिकता कानून पर इस तरह गुमराह कर सकती हैं?


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