दिल्ली : केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एससी-एसटी आरक्षण को अगले दस सालों के लिये बढ़ा दिया है. ये आरक्षण हर 10 साल बाद बढ़ाना पड़ता है इसलिये सरकार ने इसे 2030 तक बढ़ा दिया है.


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जानिये हर दस साल बाद क्यों बढ़ाना पड़ता है ये आरक्षण


संविधान की धारा 334 के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण का प्रावधान किया गया था लेकिन यह सिर्फ शुरुआती दस सालों के लिए था. उसके बाद से हर दस साल में संविधान संशोधन के जरिए यह अगले दस साल के लिए बढ़ाया जाता रहा है. आखिरी बार 2009 में यह पारित हुआ था और 2020 तक के लिए लागू बढ़ाया गया था. ये समय सीमा अगले साल 25 जनवरी को समाप्त हो रही थी. अगर आज मोदी कैबिनेट इसे मंजूरी न देती तो आने वाले विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव में ये आरक्षण प्रभावी नहीं होता.



दलित विरोधी छवि को सुधारने की कोशिश में सरकार


केंद्र की मोदी सरकार पर विपक्ष लगातार दलित विरोधी होने का आरोप लगाता रहा है. कई बार सरकार के मंत्रियों की ओर से ऐसे बयान सामने आए जिससे सरकार की इस नकारात्मक छवि को बनाने का प्रयास किया गया. यूं तो एससी-एसटी के आरक्षण को बढ़ाने के लिये संविधान संशोधन की परंपरा चलती आ रही है लेकिन आज के राजनीतिक परिदृश्य में इसका खास महत्व है. नरेंद्र मोदी समेत कई भाजपा नेता तो आरक्षण को बरकरार रखने की बात करते हैं लेकिन विपक्ष उनकी आरक्षण विरोधी छवि को बनाने में सफल रहा है. इसी के परिणामस्वरूप भाजपा को बिहार विधानसभा चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ा था.



सरकार इसी सत्र में बिल को पास कराने की कोशिश में


 केंद्र सरकार की कोशिश है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एससी-एसटी आरक्षण को जारी रखने वाला बिल इसी सत्र में पारित करा लिया जाय. भाजपा की ओर से अपने सभी सांसदों को लोकसभा और राज्यसभा में शत-प्रतिशत उपस्थिति बरकरार रखने की सलाह दी गयी है. इससे स्पष्ट है कि मोदी सरकार चाहती है कि दलितों से जुड़े इस विधेयक पर विपक्ष को राजनीति करने का कोई मौका न दिया जाय और शीघ्रता से इस बिल को संसद से पास करा लिया जाय.