Nirbhaya: हाथरस की पीड़िता के लिए इंसाफ की गुहार, आखिर कब बंद होंगे रेप
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के हाथरस (Hathras) में 14 सितंबर को एक लड़की के साथ चार लोगों ने मिलकर गैंगरेप किया और उसे मरने की हालत में छोड़ दिया गया. आखिरकार 15 दिनों की लड़ाई लड़ने के बाद पीड़िता न दम तोड़ दिया. पूरा देश अब इसके लिए इंसाफ की मांग कर रहा है.
लखनऊ: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के हाथरस (Hathras) में 14 सितंबर को ऐसी दरिंदगी सामने आई जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया. 19 साल की लड़की के साथ पहले आरोपियों ने गैंगरेप (Gangrape) किया और उसके बाद वह किसी से बोल न सकें इसके लिए उसकी जीभ काट दी गई. इतना ही नहीं उसके साथ मारपीट कर रीढ़ की हड्डी तोड़ दी. इस केस ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी, एक बार फिर पूरे देश को निर्भया केस याद आ चुका है.
बता दें कि 15 दिन तक मौत और जिंदगी से लड़ाई लड़ रही पीड़िता ने सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया. हैवानियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रेप के 9 दिन तक तो पीड़िता को होश ही नहीं आया लेकिन जब होश आया तो पीड़िता ने अपने साथ हुए दुष्कर्म का खुलासा किया.
दरअसल 14 सितंबर की सुबह पीड़िता अपने घर से गायों के लिए चारा लेने निकली थी, उसके बाद से वह घर लौट कर नहीं आई. काफी तलाश के बाद पीड़िता खून से लथपथ हालत में मिली जिसके बाद ई-रिक्शा से तुरंत अस्पताल ले जाया गया.
पुलिस ने आरोपियों की पहचान गांव के ही रहने वाले संदीप, लवकुश, रामू और रवि के रूप में हुई. सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है और पूरा देश मनीषा के लिए इंसाफ की मांग कर रहा है.
लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि प्रशासन और सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी रेप पर काबू नहीं पाया जा सकता. क्या इस तरह के लोगों को कानून का डर नहीं होता? या हमारी कानून व्यवस्था का इस तरह के दुष्कर्मियों पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता?
क्या फांसी देकर दरिंदों को सजा देना ही पीड़िता को इंसाफ दिलवाना है. क्योंकि इन जैसे लोगों को तो उनके गुनाह की सजा मिलती है लेकिन जिसके साथ दुष्कर्म कर उसे मार दिया जाता है या मरने की हालत में छोड़ दिया जाता है उसे किस बात की सजा मिलती है.
क्या कानून व्यवस्था या हमारा समाज ऐसा नहीं बन सकता जहां ऐसा करने की किसी की हिम्मत ही न हो. जहां किसी निर्दोश को अपनी जान या स्वाभिमान गवाना ही न पड़ें. सरकार तो पीड़िता को तमाम प्रकार के मुआवजा दे देती है लेकिन क्या किसी की जान और स्वाभिमान की कीमत लगाई जा सकती है, यह एक बड़ा सवाल है.
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