नई दिल्ली: तीन अक्टूबर का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अहम दिन है. साल 1977 में इसी दिन देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया गया था.


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इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी की इस बड़ी राजनीतिक भूल को 'ऑपरेशन ब्लंडर' का नाम दिया गया. इस घटना से नुकसान की बजाए इंदिरा गांधी को फायदा हुआ. आपातकाल की वजह से उनके खिलाफ जो नफरत का माहौल था, वह सहानुभूति में बदल गया और बाद के चुनावों में उन्होंने जोरदार वापसी की.


उस समय देश में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार थी और केंद्रीय गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह थे. भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार इंदिरा गांधी को बाद में तकनीकी आधार पर रिहा कर दिया गया था. आइये आज उनकी गिरफ्तारी की पूरी कहानी जानते हैं.


गिरफ्तारी का कारण


इंदिरा गांधी पर चुनाव प्रचार में इस्तेमाल की गयी जीपों की खरीदारी में भ्रष्टाचार का आरोप लगा था. रायबरेली में चुनाव प्रचार के मकसद से इंदिरा गांधी के लिए 100 जीप खरीदी गई थीं. उनके विरोधियों का आरोप था कि जीपें कांग्रेस पार्टी के पैसे से नहीं खरीदी गईं बल्कि उसके लिए उद्योगपतियों ने भुगतान किया है और सरकारी पैसे का इस्तेमाल किया गया है.


राजनीतिक कारण


एक राय यह भी है कि इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के पीछे आपातकाल भी था. इस थ्योरी के मुताबिक, आपातकाल के दौरान हुए अत्याचार और नाइंसाफी से नेताओं के बीच इंदिरा गांधी को लेकर नाराजगी थी. आपातकाल के दौरान कई नेताओं को जेल भेज दिया गया था. इससे उन लोगों में गुस्सा था और वे चाहते थे कि इंदिरा गांधी को भी जेल भेजा जाए.


चुनाव में इंदिरा गांधी की हार के बाद उनकी गिरफ्तारी का रास्ता और साफ हो गया. तत्कालीन गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह तो जनता पार्टी की सरकार बनते ही इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने के पक्ष में थे लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई कानून के खिलाफ कुछ भी करने को तैयार नहीं थे.


उनका कहना था कि बगैर ठोस आधार के इंदिरा गांधी को गिरफ्तार नहीं किया जाए. ऐसे में चौधरी सिंह किसी मजबूत केस की तलाश में थे जिसे आधार बनाकर इंदिरा को जेल भेजा सके. फिर उनको जीप स्कैम की शक्ल में एक मजबूत केस मिल गया.


गिरफ्तारी की पूरी कहानी


शुरू में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी की तारीख 1 अक्टूबर तय की गई थी. लेकिन इस पर गृह मंत्री की पत्नी ने रोक लगा दिया था. उनका तर्क था कि 1 अक्टूबर शनिवार का दिन है और उस दिन गिरफ्तारी से समस्या हो सकती है.


फिर चौधरी चरण सिंह 2 अक्टूबर को गिरफ्तारी की तारीख रखना चाहते थे. लेकिन उनके स्पेशल असिस्टेंट विजय करण ने 2 अक्टूबर के बाद गिरफ्तारी के लिए कहा क्योंकि गांधी जयंती वाले दिन गिरफ्तारी करना अच्छा नहीं था. इस तरह 3 अक्टूबर को गिरफ्तार करने का समय तय हुआ. 3 अक्टूबर की सुबह इंदिरा गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई.


उस समय के सीबीआई निदेशक एन.के.सिंह ने एफआईआर की एक प्रति लेकर इंदिरा गांधी के घर गए. तब इंदिरा ने तपाक से बोला कि आपको मेरी गिरफ़्तारी के लिए अपॉइंटमेंट लेकर आना था. फिर इंदिरा ने उनसे तैयार होने का वक़्त माँगा. कुछ समय बाद एक सफेद सदरी और अपना एक बैग लटकाए इंदिरा जब बाहर आईं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.


गिरफ्तारी के बाद क्या हुआ?


उनको गिरफ्तार करने के बाद बड़कल लेक गेस्ट हाउस में हिरासत में रखना था. किसी वजह से उनको वहां नहीं रखा जा सका. फिर रात में किंग्सवे कैंप की पुलिस लाइन में बने गैजेटेड ऑफिसर्स मेस में लाया गया. वहां उनके साथ निर्मला देशपांडे साथ रहीं जो कांग्रेस की दिग्गज नेता थीं.


अगले दिन यानी 4 अक्टूबर, 1977 की सुबह उनको मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश गया जहां मजिस्ट्रेट ने आरोपों के समर्थन में सबूत मांगे. जब उनकी गिरफ्तारी के समर्थन में सबूत नहीं पेश किए जा सके तो मैजिस्ट्रेट ने हैरानी जताई और इंदिरा गांधी को इस आधार पर बरी कर दिया गया कि उनकी हिरासत के समर्थन में कोई सबूत नहीं दिया गया था.


प्रणब मुखर्जी का तंज


तकलीन कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रणव मुखर्जी ने इस पर कटाक्ष किया. उन्होंने कहा, जिनको 19 महीने जेल में रखा गया वो 19 घंटे भी जेल में न रख पाए. उनका ये तंज जनता पार्टी की सरकार के लिए करारा प्रहार था .


इस घटना का जिक्र सीबीआई के पूर्व अधिकारी एनके सिंह की किताब 'The Plain Truth: Memoirs of a CBI Officer' में है.


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