किसानों को भड़काने वाली राजनीति का `खुलासा`
देश के अन्नदाता नाराज हैं या फिर उन्हें भड़काया जा रहा है? किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर चलाया जा रहा है. इसे लेकर विपक्ष के विरोध का Fact Check आपको इस खास रिपोर्ट के जरिए समझाते हैं..
नई दिल्ली: सरकार किसानों से जुड़े तीन बिल लेकर आई जिसे आज़ाद भारत का सबसे बड़ा कषि सुधार बताया गया. कहा गया इससे किसान मंडियों बिचौलियों के चंगुल से आज़ाद होगा और आत्मनिर्भर होगा. मतलब अब किसान कहीं भी किसी को भी अपनी तय कीमत पर अपनी पैदावार बेच सकतें हैं. उनके लिए सरकारी मंडियों में ही अपनी उपज बेचने की शर्त हटा दी गई है, लेकिन आज फिर किसानों ने दिल्ली कूच किया और कृषि बिल के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया.
राजनीति के लिए किसानों को भड़काया?
किसानों को हरियाणा बॉर्डर पर जगह-जगह रोका गया. वॉटर कैनन इस्तेमाल की गईं. कई जगह टकराव की नौबत आई. मांग है कि नए कानून में एमएसपी सुनिश्चित की जाए और मंडियां ना खत्म हो. हालांकि पहले भी कई मौकों पर पीएम से लेकर कृषि मंत्री तक ये कह चुके हैं कि एमएसपी से कम पर खरीद नहीं होगी और ये फैसला किसानों के हित में लिया गया फैसला है. कृषि मंत्री ने किसानों को 3 दिसंबर को बातचीत के लिये बुलाया. विपक्ष खासकर कांग्रेस को कहा कि राजनीति न करे, तो क्या राजनीति ही किसानों को भड़का रही है?
किसानों के प्रदर्शन पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर बोले, उन्होंने कहा कि किसानों पर राजनीति न हो. कांग्रेस को नसीहत देते हुए उन्होंने कहा कि अपने गिरेबां में कांग्रेस झांके, घोषणा पत्र ले किसानों की बात वापस ले. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि नया कानून बनाना समय की आवश्यकता थी. नया कृषि क़ानून राजनीति करने का मुद्दा नहीं, हम किसानों की दोगुनी आय के लिये प्रतिबद्ध हैं. कुछ किसानों को भ्रम है, भ्रम दूर किया जाएगा. किसानों से चर्चा की, 3 दिसंबर को फिर करेंगे.
कांग्रेस के विरोध का Fact Check
- 2019 के घोषणापत्र में कांग्रेस ने APMC Act खत्म करने का वादा किया, ताकि किसान जहां चाहें उपज बेच सकें
- 2019 के घोषणापत्र में लिखा- आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 पुराना पड़ चुका है. सिर्फ आपात जरूरतों के लिए
- 2014 में कांग्रेस ने फलों और सब्जियों को APMC एक्ट से बाहर कर दिया, अपने राज्यों में लागू किया
- 2013 में कॉन्ट्रैक्ट खेती पर कमेटी की सिफारिश, ठेके पर खेती की बात का समर्थन किया
कैप्टन अमरिंदर सिंह Vs मनोहर लाल खट्टर
किसान आंदोलन पर हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्री आमने-सामने हैं. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हरियाणा में किसानों के रोके जाने को असंवैधानिक बताया है. जिस पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पलटवार किया है. मनोहर लाल ने ट्वीट कर कहा है कि "मैं राजनीति छोड़ दूंगा अगर MSP को लेकर समस्या हुई. इसलिए किसानों को भड़काना बंद करें. अमरिंदर सिंह जी मैं आपसे 3 दिनों से संपर्क करने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन दुर्भाग्यवश आपसे संपर्क नहीं हो पाया. आपने बात नहीं करने का फैसला लिया, क्या किसानों को लेकर यही आपकी गंभीरता है. आप ट्वीट कर रहे हैं और बातचीत से भाग रहे हैं क्यों? झूठ धोखे और दुष्प्रचार का समय पूरा हुआ. लोगों ने आपका असली चेहरा देखा लिया है."
कृषि क़ानून पर वार
राहुल गांधी, सांसद, कांग्रेस
मोदी सरकार की क्रूरता के ख़िलाफ़ किसान डटकर खड़ा है
प्रियंका गांधी वाड्रा, महासचिव, कांग्रेस
किसानों से सबकुछ छीनकर पूंजीपतियों को परोसा जा रहा है
अमरिंदर सिंह, मुख्यमंत्री, पंजाब
तीनों बिल किसान विरोधी, ये पंजाब को तबाह कर देंगे
अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री, दिल्ली
केंद्र के तीनों बिल किसान विरोधी हैं. ये किसानों पर जुर्म है
तेजस्वी यादव, नेता, RJD
आज देश के सारे किसानों को एक हो जाने की ज़रूरत है
रामगोपाल यादव, नेता, समाजवादी पार्टी
7% आबादी की रोज़ी-रोटी से जुड़े कानून पर मनमर्ज़ी कैसे?
डेरेक ओ' ब्रायन, सांसद, TMC
किसानों की आय 2022 क्या 2028 तक डबल नहीं होगी
ख़बर क्या है? यहां समझिए..
नए कृषि क़ानून के खिलाफ़ पंजाब के किसानों का दिल्ली कूच हुआ. किसानों को हरियाणा सीमा पर रोका, कई जगहों पर टकराव हो गई. किसानों के आंदोलन को कांग्रेस समेत विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त है. कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने किसानों से आंदोलन रोकने को कहा. लेकिन आपको खबर के साथ साथ किसानों की 10 समस्याओं पर भी एक नजर डालनी चाहिए.
भारत के किसानों की 10 बड़ी समस्याएं
- कृषि में हर उम्र के 52% लोग
(Source: Census Data of India 2011)
- GDP में कृषि का योगदान 17-18%
(Source: Indian Economic Survey 2018)
- किसानों की औसत कमाई 6,400 रुपए/महीने
(Source: NSSO Report 2016)
- 52% किसानों पर औसत कर्ज 1.4 लाख रुपए
(Source: NABARD All India Rural Financial Inclusion Survey 2016-17)
- 2019 में 10 हज़ार किसानों ने आत्महत्या की
(Source: National Crime Records Bureau 2019)
- अनाज के बाज़ार मूल्य का 10-23%
(Source: International Journal of Science and Research)
- कृषि उत्पादों के निर्यात में भारत का हिस्सा 2.5%
(Source: WTO’s Trade Statistics 2014)
- गांवों के सिर्फ 1% युवा किसान बनने के इच्छुक
(Source: ASER Survey)
- 76% किसान कृषि छोड़ना चाहते हैं
(Source: CSDS Report 2018)
- मौजूदा लोकसभा के 38% सांसद किसान
(Source: PRS India)
निश्चित तौर पर हमारे अन्नदाता को उनका हक मिलना चाहिए. लगातार सरकार कोशिशें भी कर रही है. विरोध की राजनीति करने वालों के सिर्फ मुद्दा चाहिए. जानबूझकर वो किसानों को भड़का रहे हैं, उन्हें भटका रहे हैं. इसीलिए आपको इस कानून की सच्चाई क्या है और अफवाह क्या है आपको हम समझाते हैं. कृषि क़ानून प्रधानमंत्री की 10 बातों के जरिए..
कृषि क़ानून प्रधानमंत्री की 10 बातें
नए कृषि कानून के किसानों के बंधे हाथ खुल गये हैं
जिन 'गिरोहों' का नुकसान वही कृषि कानून के खिलाफ़
किसानों को असली आज़ादी इन क़ानूनों से मिली है
किसान अब जहां चाहें, फसल बेचने के लिये आज़ाद
देश में MSP भी रहेगी और किसानों की आज़ादी भी
बिचौलियों को बचाने वाले अब असफल हो गये हैं
कृषि कानून के वही विरोधी, जो बिचौलियों के साथ
कुछ लोग (विपक्ष) सिर्फ़ विरोध के लिये विरोधी हैं
ट्रैक्टर में आग लगाने वाले किसानों के असली शत्रु हैं
विपक्षी किसान को आज भी मजबूर रखना चाहते हैं
मतलब साफ है विपक्ष अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस बार किसानों को भड़का रहा है. ये पहली बार नहीं है, जब किसी कानून के खिलाफ सियासी ड्रामा देखा जा रहा है. CAA की आड़ में देश को जलाने की साजिश रची गई, दिल्ली में दंगे हुए. तो क्या अब किसानों को उग्र आंदोलन के लिए भी साजिशन भड़काया जा रहा है?
सवाल नंबर 1). एक देश एक बाज़ार से किसे डर?
सवाल नंबर 2). किसानों का प्रदर्शन 'प्रायोजित' है?
सवाल नंबर 3). किसान प्रदर्शन में 'बिचौलिया' कौन?
सवाल नंबर 4). किसानों के नफ़े से किसे नुकसान?
सवाल नंबर 5). किसान आज़ाद तो कौन बर्बाद?
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