नाबालिग लड़की के पीठ और सिर पर हाथ फेरने से लज्जा भंग नहीं होती, अगर इरादा गलत न हो: कोर्ट

बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने एक केस की सुनवाई के दौरान कहा है कि पीठ और सिर पर हाथ फेरने से अवयस्क लड़की की लज्जा भंग नहीं होती, अगर इरादा गलत न हो.  18 साल के व्यक्ति पर 12 साल की एक लड़की की लज्जा भंग करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था. 

Written by - Vineet Sharan | Last Updated : Mar 14, 2023, 03:07 PM IST
  • न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकल पीठ ने दोषसिद्धी रद्द की
  • कहा कि ऐसा प्रतीत नहीं होता कि दोषी का गलत इरादा था
नाबालिग लड़की के पीठ और सिर पर हाथ फेरने से लज्जा भंग नहीं होती, अगर इरादा गलत न हो: कोर्ट

मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. पीठ ने 28 वर्षीय एक व्यक्ति की दोषसिद्धी रद्द कर दी. यह केस  2012 का है. नागपुर पीठ ने कहा कि किसी गलत नीयत के बिना नाबालिग लड़की की पीठ और सिर पर केवल हाथ फेर देने से उसकी लज्जा भंग नहीं होती, अगर इरादा गलत न हो. 

क्या है केस
आरोपी पर व्यक्ति पर 12 साल की एक लड़की की लज्जा भंग करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था. 15 मार्च 2012 को अपीलकर्ता 18 साल का था. वह कुछ दस्तावेज देने लड़की के घर गया था. लड़की उस समय घर अकेली थी. उसने लड़की के सिर और पीठ पर हाथ फेरा. इसके बाद लड़की चिल्लाने लगी. अदालत ने 10 फरवरी को मामले में फैसला सुनाया, जिसकी प्रति 13 मार्च को उपलब्ध हुई. 

पीड़िता के आरोप
पीड़िता ने पुलिस को दी शिकायत में आरोप लगाया कि आरोपी ने उसकी पीठ और सिर पर हाथ फेरते हुए कहा था कि वह बड़ी हो गई है. न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकल पीठ ने दोषसिद्धी रद्द करते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत नहीं होता कि दोषी का कोई गलत इरादा था, बल्कि लगता है कि वह पीड़िता को बच्ची के तौर पर ही देख रहा था. 

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ किसी महिला की लज्जा भंग करने के लिए, किसी का उसकी लज्जा भंग करने की मंशा रखना महत्वपूर्ण है. 12-13 वर्ष की पीड़िता ने भी किसी गलत इरादे का उल्लेख नहीं किया. उसे कुछ अनुचित हरकतों की वजह से असहज महसूस हुआ.’’ कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपी की मंशा लड़की की लज्जा भंग करने की थी. 

निचली अदालत द्वारा मामले में दोषी ठहराने और 6 माह की सजा सुनाने के बाद व्यक्ति ने उच्च न्यायालय का रुख किया था. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि निचली अदालत का फैसला उचित नहीं था. अदालत ने कहा, प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि व्यक्ति ने बिना किसी गलत नियत के, बिना सोचे समझे वह आचरण किया. 

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