नई दिल्ली. देश भर में मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं.प्रदर्शन होने तक तो बात ठीक है किन्तु प्रदर्शनकारी जो हिंसा कर रहे हैं इससे उनकी दूसरी नियत ज़ाहिर हो रही है. प्रदर्शनकारियों की भीड़ नागरिकता क़ानून का विरोध कर रही है या जनता द्वारा चुनी गई सरकार का - ये बड़ा सवाल सामने आ रहा है. 



नागरिकता क़ानून और देश की सरकार दोनों ही संविधान-सम्मत हैं 


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नागरिकता क़ानून का विरोध करने वाली भीड़ मूल रूप से क़ानून का विरोध करने से अधिक देश की सरकार का विरोध करती नज़र आ रही है. सरकारी सम्पत्ति पर हमला इसका ही मुजाहिरा है और तो और इस तथाकथित प्रदर्शनकारियों की भीड़ में लगने वाले नारे सरकार विरोधी अधिक हैं, नागरिकता क़ानून विरोधी कम.


हिंसक प्रदर्शनकारियों का उद्देश्य विरोध नहीं, हिंसा है 


नागरिकता क़ानून का विरोध करने सड़कों पर उतरे ये लोग संसद द्वारा पास नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध करने के उद्देश्य से प्रदर्शन करते नज़र नहीं आ रहे हैं. इनका उद्देश्य दूसरा दिखाई देता है. इन प्रदर्शनों की आड़ में ये अराजकता फैलाने की नियत से सड़कों पर उतरे साफ़ नज़र आ रहे हैं.



हिन्सा करने का अधिकार किसी को नहीं  


प्रदर्शनकारियों को अच्छी तरह से पता है कि उन्हें विरोध प्रदर्शन का प्रजातांत्रिक अधिकार तो मिला है किन्तु हिन्सा करने का अधिकार इस देश के संविधान ने उन्हें नहीं दिया है. चाहे वह एक आम नागरिक हो या किसी क़ानून या सरकारी कदम का विरोध करने वाले लोग, सभी को पता होना चाहिए कि सरकारी सम्पत्ति को नष्ट करने वाला उनका यह प्रदर्शन गैर-कानूनी है. 


सुरक्षा बलों पर हमला स्वीकार्य नहीं है 


भारत में कश्मीर की बात और थी जहां कांग्रेस राज में सेना को देश-द्रोहियों के पत्थर झेलने पड़ रहे थे. अब मोदी-राज है. राष्ट्रवादियों की सरकार किसी भी तरह सेना या पुलिस बलों पर हमला बर्दाश्त नहीं करेगी. न ही ऐसा दुनिया के किसी भी देश में बर्दाश्त किया जाता है. ये बात 'अजेंडा' लेकर सड़कों पर उतरे हिंसक प्रदर्शनकारियों को साफ-साफ समझ लेनी चाहिए.