नई दिल्ली: What is Note for Vote: सुप्रीम कोर्ट ने 'नोट के बदले वोट' मामले में 1998 के अपने फैसले को पलट दिया है. कोर्ट ने .’राजनीति में नैतिकता’ को काफी जरूरी मानते हुए कोर्ट ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि घूस लेने वाले ने घूस देने वाले के हिसाब वोट दिया या नहीं. विषेधाधिकार सदन के साझा कामकाज से जुड़े विषय के लिए है. वोट के लिए रिश्वत लेना इसका (विधायी कामकाज) का हिस्सा नहीं है.


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क्या है नोट के बदले वोट?
यदि कोई विधायक या सांसद सदन में पैसे लेकर वोट या भाषण दे तो, ऐसे मामले को 'नोट के बदले वोट' कहा जाता है. 25 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने ने ‘पीवी नरसिम्हा राव वर्सेज CBI मामले’ में सदन में ‘वोट के बदले नोट’ में सांसदों को पर कार्रवाई से छूट की बात कही थी. पांच जजों की पीठ ने तब कहा था कि सदन के अंदर दिए गए भाषण और वोट के बदले आपराधिक मुकदमा नहीं चल सकता. 


शिबू सोरेन मामला और सुप्रीम कोर्ट
दरअसल, साल 1991 के आम चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की और नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने. लेकिन जुलाई 1993 के मानसून सत्र में ही राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आ गया. तब आरोप लगे कि शिबू सोरेन और उनकी पार्टी के चार सांसदों ने पैसे लेकर लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोटिंग की. CBI ने इस मामले में सांसदों के खिलाफ जांच शुरू की. लेकिन कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत मामले को रद्द कर दिया और कानूनी कारवाई नहीं हुई. कोर्ट ने तब कहा था किसंसद और विधानसभा के सदस्य बिना चिंता या डर के स्वतंत्रता से भाषण या फिर वोट दे सकते हैं.


फिर कैसे उठा मामला?
झारखंड के पूर्व CM हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन के कारण यह मामला फिर उठा. यह बात 2012 के राज्यसभा चुनाव की है. सीता तब विधायक थीं, अब भी हैं. तब सीता पर आरोप लगे कि उन्होंने रिश्वत लेकर राज्यसभा चुनाव में वोट दिया. उन पर केस दर्ज हुआ. सीता हाई कोर्ट गईं, 17 फरवरी, 2014 को हाई कोर्ट ने मामला रद्द करने से इनकार दिया. फिर सीता सोरेन सुप्रीम कोर्ट गईं. अपने ससुर शिबू सोरेन के मामले के तर्ज पर वे कार्रवाई से छूट चाहती थीं. लेकिन अब कोर्ट ने ऐसा करने से इनकार दिया है. अब सीता सोरेन की मुश्किलें बढ़ गई हैं. 


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