नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति एक ऐसे पैनल द्वारा करने का प्रावधान करने वाले नए कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) शामिल नहीं हैं.


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न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, 'हम इस रोकेंगे नहीं… रोक लगाना संभव नहीं है. यह एक वैधानिक प्रावधान है.' हालांकि, केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया गया है और मामले की जांच करने पर सहमति व्यक्त की.


कांग्रेस नेता और याचिकाकर्ता जया ठाकुर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने तर्क दिया कि कानून सत्ता के पृथक्करण के दायरे में है और नए कानून के तहत नई नियुक्तियां करने से पहले इस पर रोक लगाई जानी चाहिए.


हालांकि पीठ इस मुद्दे की जांच करने के लिए सहमत हो गई, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि इस स्तर पर किसी कानून के क्रियान्वयन पर रोक नहीं लगाई जा सकती. उसने मामले की अगली सुनवाई अप्रैल में तय की.


ठाकुर के अलावा, वकीलों के एक समूह की दो अन्य याचिकाओं में भी मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम, 202 की वैधता को चुनौती दी गई है, जिसमें कानून को संविधान का उल्लंघन बताया गया है.


क्या कहता है नया कानून
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 28 दिसंबर को एक विधेयक पर अपनी सहमति दी थी, जिसमें सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए एक नई व्यवस्था बनाने का प्रावधान है.


नए कानून में सीईसी या ईसी के रूप में नियुक्ति के लिए चयन समिति के विचार के लिए पांच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करने के लिए केंद्रीय कानून मंत्री और सचिव के पद से नीचे के दो अन्य व्यक्तियों की अध्यक्षता में एक सर्च समिति गठित करने का प्रावधान है. यह सीईसी और अन्य ईसी की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को सिफारिशें करने के लिए प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री की अध्यक्षता में एक चयन समिति का प्रावधान करता है. बता दें कि पहले चयन पैनल में CJI को भी शामिल करने के निर्देश थे.


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