अद्भुत और अविस्मरणीय था स्वामी जी का शिकागो धर्म सम्मेलन
जिन स्वामी विवेकानंद की मूर्ति पर जेएनयू परिसर में लेफ्टिस्ट पार्टियों के छात्रों ने हमला किया था, उन्हीं स्वामी विवेकानंद ने 126 साल पहले अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म संसद में अपने भाषण की जो शुरुआत की थी, उस पर देर तक बजती रही तालियों की गूंज आज भी इतिहास की स्मृतियों में अमर है.
नई दिल्ली. स्वामी विवेकानंद का जीवन एक युगपुरुष की अनंत कथा है. स्वामी विवेकानंद जैसा युगपुरुष कई शताब्दियों में एक बार जन्म लेता है. विवेकानंद ऐसी अलौकिक दिव्य आत्मा हैं जिन्होंने हिन्दुस्तान की खोई अस्मिता, खोए गौरव को ढूंढकर उसे दोबारा पूरी दुनिया के सामने स्थापित किया. साथ ही समूची मानवता को एकसूत्र में पिरोने का मंत्र भी दुनिया को दिया. शिकागो धर्म सम्मेलन में दिए उनके ओजस्वी और दिल में उतर जाने वाले भाषण ने पश्चिमी देशों में भारत को लेकर बनी धारणा ही बदल दी.
ऐतिहासिक दिन था 11 सितंबर 1883 का
11 सितंबर 1893 को दुनिया भर के विद्वान, दार्शनिक, धर्मशास्त्री और विज्ञान के जानकार शिकागो के आर्ट पैलेस के हॉल में इकट्ठा थे. मकसद था अनंत, अज्ञेय, सर्वशक्तिमान ईश्वर पर चर्चा. इस निष्कर्ष पर पहुंचना कि ईश्वर को पाने का, ईश्वर को महसूस करने का, सत्य को साधने का सही रास्ता किस धर्म और संप्रदाय में सबसे प्रामाणिक तरीके से बताया गया है. तब पश्चिम के देश हिन्दुस्तान और हिन्दू धर्म को हिकारत की नजर से देखते थे. वे हमें पिछड़ा और अशिक्षित मानते थे.
ओजस्वी था स्वामी जी का सम्बोधन
धर्म संसद में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व करने गए स्वामी विवेकानंद को तो बोलने का टाइम भी मुश्किल से मिला था. पर स्वामी जी की जब बारी आई तो उन्होंने कुछ इस तरह के संबोधन से शुरुआत की. ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका. पश्चिमी देशों में लेडीज एंड जेंटलमैन के संबोधन से आख्यान या भाषण की शुरुआत करने की परंपरा थी. समूची मानव जाति को ह्दय की अतल गहराई से भाई और बहन के रूप में देखना तो वैदिक सनातन संस्कृति की ही देन है. यही वजह है कि स्वामी जी के इस संबोधन पर आर्ट पैलेस के हॉल में करीब 10 मिनट तक तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती रही.
पश्चिम में हुआ आध्यात्मिक ज्ञान का सूर्योदय
किसी के संबोधन पर इतनी देर तक तालियां पहली बार बजी थीं. अमेरिका और यूरोप के लोगों ने अपनेपन का एहसास दिलाने वाला ये संबोधन पहली बार सुना था. हॉल में मौजूद 7 हजार लोगों को भाई और बहन कह के बुलाना वो भी दिल की गहराइयों से, मैटिरियल लाइफ में भरोसा करने वाले, भौतिक सुख सुविधाओं को जीवन का उदेश्य मानने वाले निढाल थे. उसके बाद तो उन्हें मंच पर कई दिनों तक बार-बार बुलाया गया और हर बार दुनिया भर के ज्ञानी लोग सांसें थामकर उनकी बातें सुनते थे. आहें भरते थे, ये कहते हुए कि हिन्दुस्तान के इस संन्यासी की वाणी में अलौकिक सत्ता की खूशबू है, प्रेम की दिव्य छटा है.
स्वामी जी थे साइक्लोनिक हिन्दू
स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की धर्म संसद में तकरीबन सवा सौ साल पहले दर्शन और ज्ञान की जो बातें कहीं उसे पूरी तरह समझने में दुनिया को हजारों साल लग जाएंगे. क्योंकि वो बातें तर्क के म्यान से नहीं निकली थीं. वो तो प्रेम और सत्य की अलौकिक सत्ता के साक्षात्कार पर आधारित थीं. हां लोगों ने इतना जरूर समझ लिया था कि हिन्दुस्तान का ये संन्यासी जो कुछ बोल रहा है वो सच ही तो बोल रहा है. तभी तो अमेरिका के तब के प्रतिष्ठित दैनिक अखबार द न्यूयॉर्क हेराल्ड ने खबर लिखी ऐसे संन्यासी के देश में ज्ञान और शिक्षा के प्रसार के लिए मिशनरीज भेजना कितना मूर्खतापूर्ण है. मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया.
स्वामी विवेकानंद पर हमारी ये खास सीरिज जारी रहेगी. जिसमें हम आपको स्वामी विवेकानंद के जीवन के कई अनजाने पहलू आपके सामने लाएंगे. पढ़ते रहिए ज़ी हिंदुस्तान
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