नई दिल्ली: कोलकोता हाईकोर्ट ने पॉक्सो से जुड़े एक केस में एक पीड़िता नाबालिग के बयानों को बेहद अहम मानते हुए आरोपी सौतेले पिता की सजा को बरकरार रखा है. इसके बावजूद कि इस केस में अहम गवाह के तौर पर शामिल खुद पीड़िता की मां भी अपने ही बयानों से पलट गयी थी.


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हाईकोर्ट ने जज की तारीफ की!
जस्टिस शेखर बी सराफ और जस्टिस के डोम भूटियाा ने पॉक्सो अदालत के फैसले के तहत दी गयी सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि किसी भी घटना का पीड़ित सबसे बेस्ट जज होता है. इस मामले में यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़िता के सबूत सजा के लिए पर्याप्त हैं.


हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा एक लड़की जो खुद यौन उत्पीड़न का शिकार हुई हो, वह अपराध में सहभागीदार कैसे हो सकती है, जबकि वह अन्य व्यक्ति की वासना का शिकार है. इसलिए उसके बयानों को एक सहयोगी के साक्ष्य के तौर पर संदेह के साथ परीक्षण की आवश्यक्ता नही है.


अदालत ने कहा कि पीड़िता के साक्ष्य को एक सहयोगी के तौर पर संदेह के लिए परीक्षण नही किया जा सकता. दुष्कर्म के अपराध के दोषी के लिए केवल एकमात्र साक्ष्य ही पर्याप्त है, बशर्ते कि वह साक्ष्य आत्मविश्वास से प्रेरित, पूर्ण भरोसेमंद, बेदाग और वास्तविक गुणवत्ता से पूर्ण हो. दुष्कर्म सिर्फ शरीर पर किया हमला नही, ये आत्मा को मार देता है.


बयानों से मुकर गई पीड़िता की मां
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इसके बावजूद की पीड़िता की मां अपने बयानों से मुकर गयी है. ऐसे में पीड़िता का अपने बयानों पर बने रहने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. अगर इस मामले में आरोपी पिता को सजा नहीं दी जाती है तो ये उसके पीड़िता बयानों की सुरक्षा नहीं है. सजा के लिए एक पर्याप्त सबूत के तौर पर उसे सुरक्षित रखना जरूरी है.


अदालत ने कहा ये हम मानते हैं कि दुष्कर्म केवल एक शरीर पर किया गया हमला नहीं है. बल्कि पीड़िता के पुरी आत्मा पर किया गया हमला है, जो उसके संपूर्ण व्यक्तित्व को नष्ट कर देता है. एक दुष्कर्मी असहाय महिला की आत्मा को पूरी तरह से मार देता है. इसलिए इस इस मामले में पीड़िता की गवाही की सराहना की जानी चाहिए, भले ही उसकी मां क्यों ना मुकर गयी है.


हाईकोर्ट ने लगायी मां को फटकार
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में मां के बयानों से बदलने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए फटकार भी लगायी. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि नाबालिग की मां असली अपराधी को अच्छी तरह से जानती थी इसके बावजूद उसने उसे अपने पति को बचाने का प्रयास किया. क्योंकि उसने स्थानीय समुदाय से बहिष्कृत होने और दूसरी शादी को बचाने के लिए अपनी बेटी के साथ हुए अन्याय के लिए असली अपराधी को सजा दिलाने की कोई जहमत नही उठायी.


क्या है मामला?
पोर्ट ब्लेयर की एक नाबालिग अपनी मां के दूसरे विवाह के बाद सौतेले पिता के साथ रह रही थी. जब उसकी मां और उसकी छोटी बहन घर पर नहीं होती, तब उसका सौतेला पिता उस नाबालिग पीड़िता का यौन शोषण करता. कुछ समय बाद पीड़िता के पीरियड नहीं आने पर उसकी मां उसे निकटवर्ती अस्पताल लेकर गयी. अस्पताल में मेडिकल परीक्षण करने पर नाबालिग के 6 माह के गर्भवती होने की जानकारी सामने आयी.


पीड़िता के गर्भ की जानकारी होने पर उसकी मां और सौतेले पिता ने जून 2017 में उसे निर्मला शिशु भवन में भर्ती करा दिया. शिशु भवन की इंचार्ज ने सौतेले पिता द्वारा दुष्कर्म करने की जानकारी होने पर सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट के नोडल आफिसर की इसकी सूचना दी. बाद में इसकी सूचना पोर्ट ब्लैयर के डिस्ट्रीक्ट चाईल्ड प्रोटेक्शन यूनिट को दी गयी. यूनिट द्वारा एक महिला कांस्टेबल के साथ पीड़िता की काउंसलिग कि गयी. ​


काउंसलिंग करने पर पीड़िता ने बताया कि उसके सौतेले पिता उसके साथ लगातार दुष्कर्म करते रहे हैं, जिसके चलते ही वह प्रेगनेंट हुई. पीड़िता के बयानों के आधार पर पुलिस ने 5 जून, 2017 को लड़की के सौतेले पिता के खिलाफ POCSO अधिनियम की धारा 5(j) (ii), 6 और आईपीसी की 376 के तहत मामला दर्ज किया और आरोपी पिता को गिरफ्तार कर लिया.


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ट्रायल के बाद पॉक्सो कोर्ट ने आरोपी सौतेले पिता राम सेवक लोहार को चौदह साल के कठोर कारावास 50 हजार के जुर्माने की सजा सुनाई. कोलकोता हाईकोर्ट ने अब पॉक्सों कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है.


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