जांच एजेंसी ने गलती की या गवाहों ने गुमराह किया.. कोर्ट ने यह कह 8 साल पुराने हत्या केस में 10 लोगों को किया बरी
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जांच एजेंसी ने गलती की या गवाहों ने गुमराह किया.. कोर्ट ने यह कह 8 साल पुराने हत्या केस में 10 लोगों को किया बरी

ठाणे जिले के नापोली इलाके में एक मंदिर के पास 24 अक्टूबर 2016 को एक स्थानीय सुरक्षा व्यवसाय संचालक रंजीत उर्फ ​​बंटी पर चाकुओं से हमला किया गया था और बाद में उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई थी. आरोप लगा कि आरोपी ने एक साजिश के तहत अक्षय नंदा के साथ मिलकर रंजीत पर हमला किया और उनकी सोने की चेन तथा अंगूठियां लूट लीं.

जांच एजेंसी ने गलती की या गवाहों ने गुमराह किया.. कोर्ट ने यह कह 8 साल पुराने हत्या केस में 10 लोगों को किया बरी

ठाणे की एक अदालत ने हत्या के लगभग आठ साल पुराने मामले में यह कहते हुए 10 आरोपियों को बरी कर दिया है कि जांच एजेंसी ने गंभीर गलती की या उसे गवाहों द्वारा ‘गुमराह’ किया गया. आरोपियों के खिलाफ हत्या और दंगा करने का आरोप लगाया गया था और उन पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के कड़े प्रावधानों के तहत मामला भी दर्ज किया गया था. विशेष अदालत (मकोका) के न्यायाधीश अमित एम शेटे ने सात साल से अधिक समय तक चली सुनवाई के बाद 19 दिसंबर को पारित 56-पन्नों के फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष और गवाह आरोपियों के खिलाफ हत्या के गंभीर अपराध को साबित नहीं कर पाए. आदेश की एक प्रति सोमवार को उपलब्ध कराई गई.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, ठाणे जिले के नापोली इलाके में एक मंदिर के पास 24 अक्टूबर 2016 को एक स्थानीय सुरक्षा व्यवसाय संचालक रंजीत उर्फ ​​बंटी पर चाकुओं से हमला किया गया था और बाद में उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई. अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि आरोपी ने एक साजिश के तहत अक्षय नंदा के साथ मिलकर रंजीत पर हमला किया और उनकी सोने की चेन तथा अंगूठियां लूट लीं. बचाव पक्ष के वकीलों ने आरोपों का विरोध किया. अदालत ने इकबालिया बयानों में विसंगतियों पर भी गौर किया, जिसके बारे में आरोपियों ने दावा किया कि उन पर दबाव बनाया गया.

अदालत ने कहा, 'रिकॉर्ड पर मौजूद सभी साक्ष्य की समीक्षा की जाए तो चश्मदीद गवाहों के बयान और मकसद के बारे में उचित संदेह प्रतीत होता है. अभियोजन पक्ष और गवाह सभी उचित संदेह से परे हत्या के गंभीर अपराध को साबित नहीं कर पाए.' अदालत ने कहा, 'रिकॉर्ड पर मौजूद सभी सबूतों से पता चलता है कि जांच एजेंसी ने गंभीर गलती की या एजेंसी को गवाहों द्वारा गुमराह किया गया.' इसने कहा कि अभियोजन पक्ष और गवाह ‘अपने आप को सही साबित नहीं कर पाए’, जिससे उचित संदेह पैदा होता है और आरोपी इसके लाभ के हकदार हैं.

जिन लोगों को बरी किया गया, उनमें अक्षय नंदा उर्फ ​​नंदू पाटिल (36), रोहित रवि पाटिल (35), अनिल (33), अजिंक्य उर्फ ​​अज्जू विजय जाधव (33), अभिषेक गंगाधर निंबोलकर (36), अनिल उर्फ ​​​​बबलू शिवाजी शेलार (34), सचिन सोपन वाडकर (44), ऋषिकेश रामदास पाटिल (34), भरत खंडू पाटिल (36) और रुपेश राजेश खण्डागले (46) शामिल हैं.
(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)

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