नई दिल्लीः इस बार की सर्दी पर गर्मी का ग्रहण लगता दिख रहा है. माना जा रहा है कि कड़ाके की सर्दी नहीं पड़ेगी और यह साल सबसे गर्म रहने वाले सर्द दिनों के तौर पर जाना जाएगा. ऐसी आशंकाएं हैं. मौसम विभाग की माने तो दिसंबर से फरवरी के बीच सर्दी के मौसम में न्यूनतम तापमान सामान्य से थोड़ा अधिक रहेगा. मौसम विभाग के आईएमडी ने शुक्रवार को इस सीजन के लिए जारी अपने मौसम पूर्वानुमान में यह बात कही है. मौसम विभाग (IMD) ने कहा, 'इस विंटर में तापमान सामान्य से अधिक रहने की संभावना है. सुदूर उत्तर भारत को छोड़कर अधिकांश हिस्सों में न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहेगा, यह देश में सर्दी का मौसम सामान्य से गर्म रहने के संकेत देता है. 



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आशंका, नहीं दिखेगी शीतलहर
कोर कोल्ड वेव जोन यानी सीडब्ल्यूजेड में इन तीन महीनों में शीतलहर की गंभीर स्थिति की संभावना से इनकार किया गया है. इस रीजन में पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, यूपी, गुजरात, एमपी, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर के मौसम डिविजन, लद्दाख, मध्य महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, विदर्भ और सौराष्ट्र आते हैं.



सप्ताह की शुरुआत में अर्थ साइंस मंत्रालय के सचिव एम राजीवन ने कहा था कि 2019 अब तक का दूसरा सबसे गर्म विंटर रहने वाला है. उन्होंने कहा था, अल नीनो की स्थिति बरकरार रहेगी और इससे तापमान सामान्य से अधिक रहेगा.


क्या है अल नीनो, यहां जानिए
सामान्य तौर पर अल नीनो एक भौगोलिक घटना है, जिसके कारण बारिश की स्थिति और मौसम परिवर्तन पर असर पड़ता है. यह भौगोलिक परिस्थिति समुद्र में होने वाली प्राकृतिक घटना के कारण होती है. इसका संबंध सीधे-सीधे प्रशांत महासागर से है. इस महासागर के भूमध्यीय क्षेत्र की उस समुद्री घटना का नाम है, जो दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित इक्वाडोर और पेरु देशों के तटीय समुद्री जल में कुछ सालों के अंतराल पर घटित होती है.


 



यह समुद्र में होने वाली उथल-पुथल है और इससे समुद्र के सतही जल का ताप सामान्य से अधिक हो जाता है. अल नीनो स्पैनिश भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है शिशु. इस घटना को यह नाम मिलने की पीछे की वजह है कि अल नीनो की शुरुआत क्रिसमस के आसपास दिसंबर में होती है. ईसा मसीह के शिशु रूप के तौर पर इसे यह नाम दिया गया होगा. 


लेकिन हालात चिंताजनक हैं. क्यों
पिछले दिनों जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली हानि का आकलन करने वाले एक अध्ययन में कहा गया था कि इस सदी के अंत तक भारत में अत्यधिक गर्मी के कारण लगभग 15 लाख से ज्यादा लोग काल का ग्रास बन सकते हैं. यह अध्ययन अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी के टाटा सेंटर फॉर डेवलपमेंट (टीसीडी) ने किया था.



इसमें बताया गया कि लगातार ग्रीन हाउस गैसों के ज्यादा उत्सर्जन के कारण भारत में वर्ष 2100 तक औसत वार्षिक तापमान में चार डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है. इसके लक्षण बिल्कुल दिख से रहे हैं. यह भारत में सर्दी के मौसम का समय है, लेकिन अभी तक तापमान में स्थिरता है. 


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जलवायु परिवर्तन की चिंता दुनिया भर में है
नवंबर के शुरुआती हफ्तों में आसियान सम्मेन हुए थे. इसमें संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने जलवायु परिवर्तन की ओर ध्यान दिलाया था. उन्होंने एक गंभीर रिपोर्ट के आंकड़े सामने रखे और कहा कि समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है. इस समस्या से निपटने के लिए जल्द ही कदम उठाने होंगे. जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पर लगाम लगाने की दिशा में सही कोशिश नहीं की गई तो 2050 तक दुनियाभर में 30 करोड़ लोग समुद्र में बह जाएंगे.



उन्होंने कहा कि भारत, बांग्लादेश, चीन और जापान पर समुद्र का जलस्तर बढ़ने का सबसे अधिक जोखिम है. आज दुनिया में जीवन की निरंतरता यानी वर्तमान अवस्था में खुद को बनाए रखने की क्षमता के आगे सबसे बड़ा जोखिम जलवायु परिवर्तन है. मौसम के निर्धारित दिनों में हो रहा बदलाव कहीं जलवायु परिवर्तन के बड़े संकट की ओर इशारा तो नहीं है?


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