नई दिल्ली. नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद्र कृषि क्षेत्र को देखते हैं. जीएसटी पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के बाद रमेश चंद्र ने यह सुझाव दिया है. उनके अनुसार इससे जीएसटी को लेकर विवादों को भी विराम मिलेगा और इसकी स्वीकार्यता भी अधिक बढ़ जाएगी. 


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माल एवं सेवा कर में दो ही स्लैब हों 


रमेश चंद्र का सुझाव है कि माल एवं सेवा कर में कुल दो ही स्लैब्स रखे जाने चाहिए. इसकी दरों को भी बार बार बदलना समझदारी नहीं है. अगर जरूरत पड़ती है तो वार्षिक आधार पर इसमें परिवर्तन किया जाना चाहिए. 


जीएसटी की स्वीकार्यता धीरे-धीरे होगी 


जो महत्वपूर्ण बात रमेश चंद्र ने कही वह यह थी जब भी किसी देश में कोई बड़ा कराधान सुधार लाया जाता है, तो शुरुआत में उसमें समस्या आना स्वाभाविक होता है. ज्यादातर देशों में जीएसटी एक दम ही स्थिर नहीं हुई, उनमें भी भारत की ही तरह समय लगा. 



बार-बार दरों में बदलाव ठीक नहीं 


रमेश चंद्र ने कहा कई उत्पाद ऐसे हैं जिनपर जीएसटी नहीं लगता जबकि पांच उत्पादों पर जीएसटी के अलावा उपकर भी लगता है. उनका मानना है कि जीएसटी की दरों में बार-बार परिवर्तन करने से समस्याएं पैदा होती हैं.


दर घटाने की मांग प्रवृत्ति नहीं बननी चाहिये


रमेश चंद्र के अनुसार जहां विभिन्न उत्पादों और सेवाओं पर जीएसटी की दर घटाने की मांग बार-बार उठती है वहीं कर के स्लैब घटाने की बात भी बराबर से कही जाती . उन्होंने कहा कि यह एक प्रवृत्ति बन गई है कि अब हर क्षेत्र द्वारा जीएसटी की दर कम करने की मांग की जाने लगी है. अगर गौर से देखा जाए तो जीएसटी के मुद्दे दरों को कम करने से कहीं बड़े हैं. 


जीएसटी की स्थिति 


माल एवं सेवा कर अर्थात जीएसटी भारत में जुलाई, 2017 से लागू हुआ था. इसके अंतर्गत समस्त प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों को समाहित कर दिया गया था. लेकिन अलग-अलग विवादों में घिरने के कारण अलग-अलग निदानों के रूप में जीएसटी की दरों में तब से अब तक कई बार बदलाव करने पड़े हैं. अभी जीएसटी के अंतर्गत चार स्लैब्स रखे गए हैं जो कि .5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत हैं. जीएसटी का उत्तरदायित्व  केंद्रीय वित्त मंत्री की अगुवाई वाली जीएसटी परिषद के हाथों में है जो कि  वस्तुओं और सेवाओं पर कर की दर तय करती है. इस परिषद में हर राज्य का वित्त मंत्री सदस्य के रूप में सम्मिलित है.


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