नई दिल्ली. अटल जी और सुषमा जी के बीच तीन महान साम्य थे - नम्रता, योग्यता और विद्वता का. दोनों ही उत्कृष्ट वक्ता थे. एक पहले चले गए और दूसरी बाद में गईं पिछले वर्ष. कई ऐसे आदर्श कारण हैं जिनके लिए सुषमा स्वराज को देश सदा ही स्मरण करता रहेगा, सिर्फ आज उनके जन्मदिवस पर ही नहीं !


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चुनौतीपूर्ण निर्णयों व बेबाक बयानों के लिए भी जानी गईं 


सात बार सांसद, तीन बार विधायक रह चुकी सुषमा स्वराज भारत की विदेश मंत्री के रूप में  अपने उल्लेखनीय कार्यों, चुनौतीपूर्ण निर्णयों, बेबाक़ बयानों के साथ नेतृत्व की एक अलग पहचान थीं. उनकी तेजस्विता, दमदार आवाज़, गरिमापूर्ण व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना कोई नहीं रह सकता था. 


भारत की प्रथम महिला विदेश मंत्री थीं सुषमा जी 


लॉ की डिग्री हासिल करने के पूर्व वे लगातार तीन वर्षों तक एनसीसी की बेस्ट कैडेट और पंजाब की श्रेष्ठ वक्ता रही हैं. पंजाब विश्‍वविद्यालय द्वारा उन्हें सर्वोच्च वक्ता का सम्मान भी प्राप्त हुआ था. 



 


जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में साथ थीं 


सुषमा जी ने 1970 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपना राजनीतिक करियर शुरू किया. अपने अध्ययन के दिनों के उपरान्त ही वे जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में ज़ोर-शोर से शामिल हो गईं.  


दिल्ली की प्रथम मुख्यमंत्री थीं सुषमा जी 


1977 में चौधरी देवीलाल की कैबिनेट में 25 वर्ष की उम्र में ही राज्य की कैबिनेट मंत्री बनने का कीर्तिमान बनाने वाली सुषमा जी वर्ष 1988 में दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री रहीं. 27 साल की उम्र में वे जनता पार्टी (हरियाणा) की प्रमुख भी रहीं थीं.


असाधारण सांसद पुरस्कार प्राप्त एकमात्र महिला नेत्री  


भारतीय संसद में सुषमा स्वराज एकमात्र महिला सांसद हैं, जिन्हें ‘असाधारण सांसद’ के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. भारतीय जनता पार्टी की वे प्रथम महिला राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा कैबिनेट मंत्री रही हैं. 


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