यूपी: इस गांव में `सदियों` से नहीं मनाई गई दिवाली, दीया जलते ही होती है अनहोनी
आजादी के बाद से यहां दीपावली का कोई भी उत्सव नहीं मनाया गया है. दीवाली पर मातम छाया रहता है. एक दो बार नई बहुएं आयीं और उन्होंने इस परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया, जिसका खमियाजा भी हमें भुगतना पड़ा.
गोंडा: भगवान राम के 14 वर्ष वनवास काटने के बाद अयोध्या वापस आने की खुशी और उनके स्वागत में दीप जलाकर दिवाली मनाई जाती है. त्रेता युग परंपरा पूरे देश में चल रही है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि अयोध्या से सिर्फ 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित गोंडा जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां सदियों से दिवाली नहीं मनाई जाती है. दीवाली पर मातम छाया रहता है. आजादी के बाद से यहां दीपावली का कोई भी उत्सव नहीं मनाया गया है.
ग्राम पंचायत डुमरियाडीह का यादवपुरवा
यह कहानी है उत्तर प्रदेश के गोंडा के वजीरगंज विकास खंड की ग्राम पंचायत डुमरियाडीह के यादवपुरवा की. इस गांव में 20 घर हैं. इसमें कुल मिलाकर 250 लोग रहते हैं. यह सभी लोग इस त्योहार वाले दिन घर मे ही रहते हैं. न कोई पकवान बनता है, न ही कोई उल्लास होता है. यहां दिवाली न मनाने की परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है.
क्यों नहीं मनती दिवाली
गांव के राजकुमार यादव बताते हैं कि इस गांव में दीवाली के मौके बहुत पहले एक अनहोनी हो गई थी. गांव का एक नौजवान इसी त्योहार वाले दिन चल बसा. तभी से यहां के लोग दिवाली नहीं मनाते हैं. अगर मनाने का प्रयास करते हैं तो कोई अनहोनी हो जाती है. उस डर का असर आज भी है.
किसी ने नहीं की हिम्मत
राजकुमार ने बताया कि एक दो बार नई बहुएं आयीं और उन्होंने इस परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया, जिसका खमियाजा भी हमें भुगतना पड़ा, कई लोग बीमार हो गए. बच्चे भी काफी दिक्कत में पड़ गए. कई लोग अस्पताल के चक्कर ही लगाते रहे. इसके बाद से एक बात और ठानी गई कि भले कुछ हो जाये, मगर दीवाली वाले दिन इसे नहीं मनाया जाएगा. भले ही उसके दूसरे दिन बच्चे अपना पटाखे आदि जला लें. लेकिन उस दिन नहीं करते हैं.
सरजू प्रसाद यादव कहते हैं कि त्योहार न मनाने का दु:ख बहुत रहता है. अगल बगल के लोग दीवाली मनाते हैं. लेकिन इस गांव में पीढ़ी दर पीढ़ी यह प्रथा कायम रखने में यहां के लोग वचनवद्ध है. सपना यादव ने बताया कि दीपावली वाले दिन इस गांव में न तो पटाखों की गूंज होती है और न ही दीपमाला न ही मिठाई बांटने का कोई रिवाज. सामान्य दिनों की तरह ही यहां रात को सन्नाटा होता है.
गांव के लोगों को शुभ समाचार का इंतजार
बुजुर्ग द्रौपदी देवी कहती हैं कि दीवाली न मनाने की परिपाटी यहां सैकड़ों वर्ष पुरानी है. इस गांव के लोगों को इंतजार है कि दीवाली वाले दिन गांव में कोई बेटा पैदा हो जाये या फिर गाय के बछड़ा पैदा हो जाये तभी इस पर्व की शुरूआत हो सकती है. वरना ऐसे ही दीवाली के दिन यहां सन्नाटा पसरा रहेगा. जो पीढ़ियों से चला आ रहा है. गांव की प्रधान शिवकुमारी देवी ने बताया कि इस गांव के लोग दीवाली का त्योहार नहीं मनाते हैं और बुजुर्ग को दिए गए वचन की आन रखे हुए हैं. यहां के लोग बड़े अनुशासन से अपने बुजुर्गों का सम्मान रख रहे है. दीवाली न मनाने की पंरपरा को भावी पीढ़ी भी बहुत ही अच्छे ढंग से निर्वाह कर रही है.
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