UP में योगी ने दिखाई `झांकी`, अब `आजम खेला` बाकी!
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने इतिहास रच दिया है. एमएलसी चुनाव में भाजपा ने सपा को कहीं का नहीं छोड़ा. 36 सीटों पर हुए चुनाव में सपा के खाते में एक भी सीट नहीं गई.
नई दिल्ली: महीने भर में ही समाजवादी मुखिया अखिलेश यादव का भरम टूटा गया. यूपी विधानसभा चुनाव में 111 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली समाजवादी पार्टी विधान परिषद चुनाव में अपने उम्मीदवारों की जमानत तक नहीं बचा पाई. यादवलैंड और जाटलैंड में भी उसका सियासी खूंटा उखड़ गया.
..और बीजेपी ने ऐसे रच दिया इतिहास
विधान परिषद चुनाव में समाजवादी पार्टी जीत का खाता खुलने का इंतजार करती रह गई. और बीजेपी ने इतिहास रच दिया. यूपी की 36 विधान परिषद सीटों में से 33 सीटों पर कमल खिला और तीन सीटें निर्दलीय के खाते में गईं.
ताजा नतीजों के बाद यूपी विधान परिषद की 100 सीटों में 64 पर बीजेपी काबिज हो चुकी है और समाजवादी खाते में यूपी विधान परिषद में 15 विधायक बचेंगे, जिनकी तादाद जुलाई में घटकर 9 रह जाएगी.
विधान परिषद चुनाव के नतीजों ने अखिलेश यादव का पूरा खेल बिगाड़ कर रख दिया है. समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में 111 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा हासिल किया था. अब उसके छिन जाने की नौबत है.
अखिलेश की नये सियासी प्लान को करारा धक्का!
अखिलेश ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा देकर यूपी की राजनीति पर फोकस करने का जो प्लान बनाया था, यूपी विधान परिषद के नतीजे उस पर करारी चोट कर रहे हैं.
बड़ी बात ये भी है कि दोनों सदनों में बीजेपी के बहुमत होने से समाजवादी पार्टी किसी बिल पर विरोध तो जता पाएगी, लेकिन अब उसे अटका नहीं पाएगी. सवाल तो ये है कि समाजवादी पार्टी के 'एम-वाई' समीकरण की हवा विधान परिषद चुनाव में क्यों निकल गई? और सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या समाजवादी पार्टी में अंदरखाने 'बड़ा खेला' शुरू हो गया है?
यूपी विधान परिषद के नतीजों के बाद योगी सरकार के मंत्री नंदगोपाल नंदी ये कहकर चुटकी ले रहे हैं कि "जिस तरह राहुल गांधी ने कांग्रेस को खत्म करने का काम किया, अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के लिये वही काम कर रहे हैं.
उखड़ गया 'खूंटा', समाजवादी भ्रम टूटा!
विधान परिषद चुनाव में करारी हार से समाजवादी पार्टी में सिर उठा रहे अखिलेश विरोधी खेमे को ताकत मिल गई है. अब वो बबुआ के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाएंगे. चाचा शिवपाल से हमदर्दी रखने वाले समाजवादियों की जुबान पर अब लगाम लगाना मुश्किल होगा.शिवपाल चच्चा को गच्चा देने के सियासी दांव पर भी अखिलेश की घेराबंदी की जाएगी.
यही नहीं, अखिलेश को अब आजम खेमे से भी बड़े झटके का अंदेशा डरा रहा होगा.आजम समर्थक लगातार खुलकर कह रहे हैं कि "अखिलेश नहीं चाहते कि आजम जेल से बाहर निकलें. अखिलेश नहीं चाहते कि मुसलमानों को समाजवादी पार्टी में सियासी हक मिले.वो मुसलमानों से सिर्फ अपनी रैलियों में दरी बिछवाना चाहते हैं."
यही बात उछालकर 2022 की चुनावी रैलियों में एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी अखिलेश यादव को घेर रहे थे. समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगाना चाह रहे थे.
ओवैसी भले यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश को झटका नहीं दे पाए, लेकिन ओवैसी की बातों पर अब समाजवादी पार्टी का आजम खेमा अब यकीन जता रहा है. अटकलें तो यहां तक लगने लगी हैं कि आजम ओवैसी से हाथ मिला सकते हैं.
अखिलेश के 'एम-वाई' फॉर्मूले में पलीता लग गया?
आजम खान के करीबी और उनके मीडिया सलाहकार फसाहत अली शानू बगावती अंदाज में आ चुके हैं. उन्होंने बिना लागलपेट के कहा कि " हम चाहते हैं कि आजम खान साहब समाजवादी पार्टी से दूरी बनाने का फैसला जल्द से जल्द लें. उन्होंने पार्टी के लिये अपने खून का एक-एक कतरा दिया, जबकि पार्टी को उनकी परवाह ही नहीं है."
लब्बोलुआब ये है कि आजम खान ने अगर समाजवादी पार्टी को बाय-बाय बोला तो समाजवादी पार्टी में अखिलेश से खुन्नस खाये शफीकुर्रहमान बर्क जैसे कई बड़े चेहरे भी तलवार खींच लेंगे. और समाजवादी बबुआ ने जिस मुस्लिम-यादव फॉर्मूले से 2024 में बीजेपी की घेराबंदी का सपना पाल रखा है, फिर उसकी बुनियाद को ढहने से रोक पाना मुश्किल होगा.
योगी के डिप्टी सीएम केशव मौर्य तो 2022 के चुनावी दंगल से ही अखिलेश यादव को ये कहकर निशाने पर ले रहे हैं कि "वो समाजवादी पार्टी के आखिरी सुल्तान हैं." यूपी विधान परिषद चुनाव के नतीजे भी फिलहाल इस बयान पर मुहर लगाते दिख रहे हैं.
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