किसान आंदोलन का `रक्तरंजित अंदेशा` डरावना है!
सवाल ये है कि अन्नदाता आंदोलन को देशविरोधी ताकतों का अड्डा बनने का न्यौता किसने दिया? शांतिप्रिय ढंग से शुरू हुए आंदोलन को हाईजैक करने की साजिश को हवा किसने दी?
नई दिल्ली: करनाल में किसान महापंचायत में हिंसा-हंगामे की तस्वीरें रविवार को देश को चौंका गई, उसके कई घंटे बाद किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने मीडिया में आकर कहा कि- 'कैमला गांव में जो घटना हुई, हमने करवाया. और बीजेपी जहां भी ऐसी रैली करेगी हम भी वहां पहुंचेंगे.
इस कबूलनामे के बाद ताल ठोकते हुए अन्नदाता आंदोलन का जो हल बताया गया वो भी सुन लीजिए. किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) एक वीडियो में अपने साथियों को पूरे तेवर में सुनाते दिखे. उन्होंने कहा- 'अगली किसान क्रांति होगी, वो हल क्रांति होगी. हल क्रांति में क्या-क्या सामान आता है? खेत में इस्तेमाल होने वाला हर सामान आता है. या तो सरकार सुधर जाए, नहीं तो हमारे लोगों को सब पता है कि क्या सामान आजमाना है, जो रास-रसिंदे हैं, वो भी इस्तेमाल होंगे, कोई स्टे नहीं है उसमें?'
'हल क्रांति' से अन्नदाता आंदोलन का हल निकालने की चेतावनी और आंदोलन को मार-काट की तरफ उकसाने वाले उसी तल्ख तेवर को देख-सुनकर सुप्रीम कोर्ट चिंतित है और किसान आंदोलन के हिंसक होने की आशंका जता रहा है.
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दिल्ली का 'डर' फिजूल नहीं है !
सवाल तो ये है कि - किसान आंदोलन (Farmers Protest) के कर्ता-धर्ता क्या इस हालत में हैं कि वो दावा कर सकें कि ये आंदोलन पूरी तरह उनके काबू में है? सवाल ये भी है कि- अगर करनाल वाला हंगामा दिल्ली के बॉर्डर पर मचा तो क्या होगा? सवाल तो ये भी है कि - किसानों के बीच बैठे घुसपैठिये अगर हिंसा पर उतरे तो उन्हें कैसे रोका जाएगा? किसान आंदोलन में जुटे बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों का अगर बाल भी बांका हुआ, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? किसान आंदोलन की आड़ में दिल्ली को आग में झोंका गया, तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी?
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपनी सुनवाई में इन्हीं सवालों को खुलकर पूछा है, और ऐसे डराने वाले हालात की जिम्मेदारी का हिसाब मांगा है.
दिल्ली दंगों के जख्म अभी ठीक से भरे भी नहीं है कि दिल्ली वालों के दिल में वही डर फिर से सिर उठाने लगा है. डर ये कि क्या अब किसान आंदोलन की आड़ में उनके घरों को जलाया जाएगा? उनकी जान को निशाना बनाया जाएगा?
ये डर फिजूल नहीं है क्योंकि दिल्लीवासियों को अंदर ही अंदर सिहरा रहा ये डर अब सुप्रीम कोर्ट की जुबान पर भी आ चुका है.
इसकी आशंका बेजा नहीं है, क्योंकि किसान आंदोलन में बड़े पैमाने पर बच्चे, बुजुर्गों और महिलाओं की मौजूदगी के कारण देशविरोधी तत्वों पर नकेल कसने में सरकार हिचकिचा रही है.
अन्नदाता आंदोलन में साजिश की 'खेती' क्यों नहीं रोकी गई?
पंजाब को लहूलुहान करने वाले जरनैल सिंह भिंडरांवाले (Jarnail Singh Bhindranwale) को इसी अन्नदाता आंदोलन में शहीद के तौर पर प्रचारित किया गया. खालिस्तानी आतंकियों से संबंधित किताबें बांटी गईं. आतंकी संगठन बब्बर खालसा के सजायाफ्ता आतंकी जगतार सिंह हवाला की फांसी रोकने की मांग उठाई गई. असम को देश से काटने की बात कहने वाले शरजील इमाम और अर्बन नक्सल साजिश के समर्थक चेहरों की रिहाई के पोस्टर सजाए गए. 'इंदिरा को ठोक दिया था, बाकियों से भी निपट लेगें' जैसे अराजक बयानबाजी होने लगी?
सवाल ये है कि अन्नदाता आंदोलन को देशविरोधी ताकतों का अड्डा बनने का न्यौता किसने दिया? शांतिप्रिय ढंग से शुरू हुए आंदोलन को हाईजैक करने की साजिश को हवा किसने दी?
वो चेहरे देश के सामने हैं, जिन्होंने अपने उकसाऊ बयानों से इसे लगातार परवान चढ़ाया और हालात ऐसे बना दिये कि अब किसान आंदोलन के हिंसक होने का डर गहरा रहा है?
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मोदी (Narendra Modi) विरोध की राजनीति को परवान चढ़ाने के लिये और अपनी खिसकती सियासी जमीन बचाने के लिये विपक्ष ने भी लगातार ऐसी बयानबाजी की, जिससे हाड़ कंपाती ठंड झेलते हुए किसान दिल्ली की सड़कों पर डटे रहें. और सियासी चारा बनकर उकसावे में आकर जान देते रहें.
विपक्ष की इसी शह ने ऐसे चेहरों को किसान आंदोलन के केंद्र में ला दिया, जो अराजकता के पैरोकार रहे हैं. किसान आंदोलन में उन चेहरों ने अपने-अपने एजेंडे के साथ धीरे-धीरे एंट्री ली.और शांतिप्रिय आंदोलन को चिनगारी दी. उसे फूंक मार-मार कर उस हद तक ले आए, जहां आंदोलन के सुलगा तो फिर हिन्दुस्तान का झुलसना तय है
इस सच्चाई पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी है और दो टूक कह दिया है कि अन्नदाता आंदोलन को दिल्ली (Delhi) के लिये बारूद बनने नहीं दिया जा सकता है.
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