नई दिल्ली: देश के कोरोना-योद्धाओं की मेहनत और देशवासियों की हिम्मत कहती है कि इन्डिया जीतेगा कोरोना हारेगा. लेकिन हकीकत भी क्या यही कहती है? हकीकत और वास्तविकता के इस महायुद्ध के बीच हैं सौ करोड़ भारतीयों की आशायें और वह साहस जिसका परिचय देश के हजारों-लाखों स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस कर्मियों, सेना के जवानों और आपातकालीन सेवा कार्य कर रहे भारतीयों ने दिया है. लेकिन वहीं देश में कोरोना के आंकड़े भी कुछ कह रहे हैं जिनसे हमारी उम्मीदों को पंख लग सकते हैं.  


क्या कहते हैं आंकड़े


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कहा जाता है कि आंकड़े झूठ नहीं बोलते. लेकिन सच ये भी है कि आंकड़े कुछ कहते हैं. दरअसल आंकड़े खामोशी की जुबां बोलते हुए संकेतों के शब्दों में बताते हैं कि आगे क्या हो सकता है. आइये हम आंकड़ों से बात करते हैं और सुनते हैं कि क्या कहते हैं भारत के कोरोना-आंकड़े. भारत के कोरोना आंकड़े सबसे पहले तो एक बात ये बताते हैं कि भारत ने कोरोना के मन्सूबों पर पानी फेर रखा है. कोरोना की रफ्तार पर लगाम लगा रखी है भारत की कोशिशों ने.


देश में कोरोना के शुरुआती आंकड़े


दुनिया के आंकड़े देख कर पता चलता है कि कोरोना ने कितनी तेज रफ्तार से कोहराम मचाया लेकिन भारत में शुरू से ही कोरोना अपने पांव उस रफ्तार में पसारने में नाकाम रहा. भारत के कोरोना आंकड़े बताते हैं कि देश में कोरोना के पहले पांच सौ मरीजों की तादाद डेढ़ महीने में पहुंची.


भारत में कोरोना के शुरुआती मामलों का एक दूसरा आंकड़ा बताता है कि संक्रमण के मरीजों की संख्या को देश में 100 से 1,000 तक पहुंचने में 15 दिन लगे थे. ये दुनिया में दूसरी सबसे धीमी केस बढ़ने की रफ्तार थी. दुर्भाग्य से भारत इस अच्छे प्रदर्शन को आगे वाले दिनों में बरकरार नहीं रख सका.


दो हफ्तों का आंकड़ा है अहम


चाहे पिछले दो हफ्ते हों या आने वाले दो हफ्ते, इन दो हफ्तों का आंकड़ा बहुत महत्वपूर्ण है. भारत में कोरोना संक्रमण के मामले पांच सौ से पांच हजार पहुंचने में सिर्फ दो हफ्ते का वक्त लगा. आंकड़ों का रिकार्ड रखने वाली वर्ल्ड मीटर वेबसाइट बताती है कि कोरोना के केस के मामले में हम इटली, स्पेन और अमेरिका से दो हफ्ते पीछे चल रहे हैं.


इसी तरह कोरोना के आंकड़ों के पिछले दो हफ्ते दुनिया के लिये बहुत अहम साबित हुए. सिर्फ अमेरिका में पिछले दो हफ्ते में कोरोना के मामले पांच हजार से दो लाख पहुंच गए. और अब इसके बाद हैं दो हफ्ते जो आने वाले हैं इनमें सारी दुनिया के लिये बहुत डरावना संदेश छुपा हो सकता है.


जनवरी और फरवरी के महीने


भारत में इस महामारी ने तीस जनवरी को कदम रखे याने कि भारत में कोरोना का पहला मरीज़ 30 जनवरी को सामने आया. फरवरी का महीना दुनिया में शुरू हो रहे कोरोना संक्रमण को देखते हुए इस बीमारी को समझने में बीता और महीना कुल मिला कर कंट्रोल में रहा.


मार्च कोरोना का महीना सिद्ध हुआ


भारत के परिदृश्य में एक बीमारी से महामारी का रूप कोरोना ने मार्च में लिया. मार्च के पहले दो हफ्ते तक संक्रमण नियंत्रित था किन्तु मार्च के तीसरे हफ्ते से पहली बार कोरोना ने रफ्तार पकड़ी.


22 मार्च थी वह तारीख जब एक साथ दो घटनायें हुईं - एक तो देश में कोरोना के मरीजों की तादाद 500 जा पहुंची और पीएम मोदी ने समझदारी का कदम उठाते हुए लॉकडाउन की घोषणा कर दी. अब तक की अच्छी बात ये थी कि 30 जनवरी से 22 मार्च तक यानी डेढ़ महीने में भारत में कोरोना के 500 मामले ही हुए थे.


22 मार्च से बदला खेल सारा


22 मार्च की निर्णायक तारीख के बाद अचानक कोरोना की रफ्तार तेज होने लगी. अब तक रेंग रहा कोरोना का विषाणु घुटने के बल चलने लगा. और फिर अगले दो हफ्तों के भीतर ही कोरोना संंक्रमण का आंकड़ा  500 से 5000 पहुंच गया. इस स्थिति को ऐसे देखिये कि जहां 22 मार्च को कोरोना के मरीजों की संख्या सिर्फ़ 5 सौ थी वहीं 8 अप्रैल आते-आते 5 हज़ार हो गई.


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अब अगर कोरोना के मरीजों का इस दौर में औसत देखें तो 22 मार्च से 8 अप्रेल तक हर रोज़ कोरोना के औसतन 300 नए मामले सामने आये. पर इस दौर में जब दुनिया में सैकड़ों से हजारों और हजारों से लाखों हो रहे हैं संक्रमण के मामले, भारत में कोरोना की रफ्तार अभी भी बहुत ज्यादा नहीं है.लेकिन भारत में कोरोना पर आक्रमण की रफ्तार बहुत तेज हो गई है इसलिये गेंद अभी भी भारत के पाले में है. और उम्मीद आज भी यही कहती है - जीतेगा इन्डिया!!


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