नई दिल्लीः अभी हाल ही में विदेश सचिव हर्षवर्द्धन श्रृंगला (Harsh V. Shringla) ने कहा कि भारत तीस्ता जल समझैता (Teesta Water Dispute) जल्द से जल्द करने को लेकर प्रतिबद्ध है.


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उनका यह बयान ऐसे मौके पर आया जब यह कन्फर्म हुआ कि प्रधानमंत्री ने 26 मार्च को बांग्लादेश (Bangladesh) की स्वतंत्रता के स्वर्ण जयंती कार्यक्रम में शिरकत करेंगे. कोरोना के कारण दुनिया भर में लगी रोक के 15 महीने बाद यह पीएम मोदी (PM Modi) का पहला विदेश दौरा होने वाला है, जिसके लिए सुरक्षात्मक और कूटनीतिक तौर पर सारी तैयारियां पुख्ता हैं. 


बांग्लादेश (Bangladesh) को है उम्मीद
विदेश सचिव के कथन से एक बार फिर तीस्ता समझौता चर्चा में आ गया है. खास बात है कि बांग्लादेश (Bangladesh) को भी इस समझौते को लेकर भारत से बड़ी उम्मीदें हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश (Bangladesh) के पूर्व विदेश सचिव तौहिद हुसैन इस उम्मीदी रवैये पर मुहर लगाते हैं.



वह कहते हैं कि हमें पूरा विश्वास है कि तीस्ता समझौते पर हस्ताक्षर हो जाएंगे क्योंकि एक से अधिक प्रधानमंत्री ने इस पर भरोसा दिया है. ये समझौता हो ही चुका था, लेकिन फिर इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. 


उम्मीदों के साए में यह सवाल यक्ष प्रश्न की तरह सामने आ जाता है कि तीस्ता विवाद (Teesta Water Dispute) और इससे संबंधित समझौता क्या है? सवाल यह भी है कि बांग्लादेश (Bangladesh) के लिए यह इतना महत्व क्यों रखता है और यह भी कि वह इस मामले में भारत से क्या चाहता है?


सबसे पहले, क्या है तीस्ता?
तीस्ता एक नदी का नाम है, जो कि भारत के सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल (West Bengal) राज्य और बांग्लादेश (Bangladesh) से होकर बहती है. यह सिक्किम और पश्चिम बंगाल (West Bengal) के जलपाइगुड़ी प्रभाग की मुख्य नदी है. पश्चिम बंगाल (West Bengal) में यह दार्जिलिंग जिले में बहती है. तिस्ता नदी को सिक्किम और उत्तरी बंगाल की जीवनरेखा कहा जाता है.



सिक्किम और पश्चिम बंगाल (West Bengal) से बहती हुई यह बांग्लादेश (Bangladesh) में प्रवेश करती है और ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है. इस नदी की पूरी लम्बाई 315 किमी है. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली यह नदी भारत के साथ ही बांग्लादेश (Bangladesh) की समृद्धि की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण नदी है.


बांग्लादेश (Bangladesh) का करीब 14 फीसदी इलाका सिंचाई के लिए इसी नदी के पानी पर निर्भर है और बांग्लादेश (Bangladesh) की 7.3 फीसदी आबादी को इस नदी के माध्यम से प्रत्यक्ष रोजगार मिलता है. 


नदी में विवाद कहां से आया
तीस्ता विवाद (Teesta Water Dispute) को लेकर बात की जाती है तो सिर्फ आजादी के बाद या बांग्लादेश (Bangladesh) निर्माण के बाद की स्थिति बताई जाती है. असल में यह विवाद अविभाजित और कंपनी शासन के अंतर्गत आने वाले भारत में ही शुरू हो गया था. साल था 1815. तब 1815 में नेपाल के राजा और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच तीस्ता नदी के पानी को लेकर समझौता हुआ था.



बताया जाता है कि तब राजा ने नदी के बड़े हिस्से पर नियंत्रण अंग्रेजों को सौंप दिया था. बांग्लादेश (Bangladesh) के आजाद होने के 12 साल बाद 1983 में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ. पानी का 36% हिस्सा बांग्लादेश (Bangladesh) और बाकी भारत के खाते में आया, लेकिन पिछले 18 साल से बांग्लादेश (Bangladesh) इस पर दोबारा विचार करना चाहता है. 


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बांग्लादेश (Bangladesh) की समस्या क्या है?
बाग्लादेश की समस्या नदी के बहाव को लेकर है. दिसंबर से मार्च के बीच तीस्ता नदी में पानी का बहाव कम हो जाता है. इस वजह से बांग्लादेश (Bangladesh) में मछुआरों और किसानों को कुछ महीनों तक रोजगार के दूसरे विकल्प तलाशने पड़ते हैं.


पश्चिम बंगाल (West Bengal) सरकार यह कहती आई है कि वह अपने बैराज से तीस्ता का ज्यादा पानी बांग्लादेश (Bangladesh) को नहीं दे सकती. बांग्लादेश (Bangladesh) का करीब 14 फीसदी इलाका सिंचाई के लिए इसी नदी के पानी पर निर्भर है और रोजगार का बड़ा जरिया भी. 


भारत की आजादी के बाद तीस्ता विवाद (Teesta Water Dispute)
देश के विभाजन के बाद तीस्ता के पानी के लिये ही आल इंडिया मुस्लिम लीग ने 1947 में सर रेडक्लिफ की अगुवाई में गठित सीमा आयोग से दार्जिलिंग व जलपाईगुड़ी को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की मांग उठाई थी, लेकिन कांग्रेस और हिंदू महासभा ने इसका विरोध किया था.



इसके बाद कई पहलुओं पर विचार किया गया और जिसके बाद भारत के क्षेत्र को देखते हुए सीमा आयोग ने तीस्ता का बड़ा हिस्सा भारत को सौंपा था, आगामी सालों तक यही स्थिति बनी रही. 


जब आजाद हुआ बांग्लादेश (Bangladesh)
साल 1971 में जब बांग्लादेश (Bangladesh) पाकिस्तान से आजाद हुआ तब पानी का यह मुद्दा एक बार फिर हिलोरें लेने लगा. 1983 में तीस्ता के पानी के बंटवारे पर एक तदर्थ समझौता हुआ था और इस समझौते के तहत बांग्लादेश (Bangladesh) को 36 फीसदी और भारत को 39 फीसदी पानी के इस्तेमाल का हक मिला, बाकी 25 फीसदी का आवंटन नहीं किया गया था.


इसके बाद गंगा समझौते के बाद दूसरी नदियों के अध्ययन के लिए विशेषज्ञों की एक साझा समिति गठित की गई थी, इस समिति ने तीस्ता को अहमियत दी और 2000 में इस पर समझौते का एक प्रारूप सामने रखा था. 



यह दीगर है कि 2010 में दोनों देशों ने समझौते के अंतिम प्रारूप को मंजूरी दे दी थी और इसके एक साल बाद 2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ढाका दौरे के दौरान दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्व के बीच इस नदी के पानी के बंटवारे के एक नए फार्मूले पर सहमति भी बनी थी. लेकिन पश्चिम बंगाल (West Bengal) के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तब विरोध किया जिसके कारण हस्ताक्षर नहीं किया जा सका. 


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क्या पीएम मोदी (PM Modi) हस्ताक्षर करेंगें?
विशेषज्ञों का कहना है कि आखिरी समझौते में किस देश को कितना पानी मिलना है यह साफ नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि बांग्लादेश (Bangladesh) को 48 फीसदी पानी मिलना है. हालांकि पश्चिम बंगाल (West Bengal) की दलील को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि इसके बाद राज्य में छह जिलों में सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह ठप पड़ जाएगी.



यह भी कहा जा रहा है कि बांग्लादेश (Bangladesh) तीस्ता को लेकर 50-50 की मांग कर रहा है, लेकिन ऐसी स्थिति भारतीय लिहाज से कितनी ठीक होगी? यही सवाल समझौते की राह पर रोड़ा है. 


लेकिन, जिस तरह से विदेश सचिव के बयान में तीस्ता समझौता को लेकर प्रतिबद्धता की बात कही गई है, क्या पीएम मोदी (PM Modi) इस बार की ढाका यात्रा में इस पर हस्ताक्षर कर देंगें. इसका जवाब 26-27 मार्च की तारीख ही देगी. 


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