नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के एक स्कूल में हिंदू छात्रों को 'कलमा' पढ़ाए जाने को लेकर विवाद हो गया है. फ्लोरेट्स इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ रहे एक हिंदू छात्र के अभिभावक ने इसकी शिकायत पुलिस में कर दी. अभिभावकों का कहना है कि स्कूल में बच्चों को सुबह की प्रार्थना में कलमा पढ़ने का दबाव डाला जा रहा है. 


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इस मामले पुलिस थाने ने स्कूल से कहा है कि सुबह की प्रार्थना में कलमा पढ़ने की रवायत बंद की जानी चाहिए. समाचार एजेंसी आईएएनएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक स्कूल में कलमा पढ़ने की रवायत करीब दस सालों से चली आ रही है. लेकिन अब इसे लेकर विवाद बढ़ गया है. मामले में स्कूल ने सफाई दी है कि उसके यहां सभी धर्मों से जुड़ी प्रार्थना करवाई जाती है. लेकिन कलमा पढ़ने को लेकर आखिर विवाद क्यों हो रहा है और इसका मतलब क्या होता है? आइए जानते हैं...


क्या है कलमा?
कलमा या फिर शहादा एक इस्लामिक प्रतिज्ञा है जो इस्लाम के पांच मूल स्तंभों में शामिल है. इन्हें फाइव पिलर्स ऑफ इस्लाम भी कहते हैं. इनमें शहादा या कलमा, सलात या नमाज, सौम या रोजा, जकात और हज शामिल हैं. इस्लामिक धार्मिक नियमों के मुताबिक धर्म का पालन करने वाले हर मुसलमान को इन पांचों का पालन करना चाहिए. इनमें शहादा या फिर कलमा सबसे पहला है. 


कलमा एकईश्वरवाद यानी एक भगवान (अल्लाह) के एक होने की घोषणा करता है. पैगंबर मोहम्मद के अल्लाह का मैसेंजर होने की घोषणा करता है. कई इस्लामिक धार्मिक स्कूलों का मानना है कि केवल एक बार पूरी आस्था से कलमा पढ़ना ही मुसलमान बन जाने के लिए पर्याप्त होता है. 


क्या होता है इसका मतलब?
ला इलाहा इल्लल्लाह
मुहम्मदूं रसूल अल्लाह


इसमें पहली लाइन का शाब्दिक अर्थ है-अल्लाह के अलावा कोई दूसरा भगवान नहीं है. दूसरी लाइन का मतलब है-मुहम्मद अल्लाह के पैगंबर हैं.


हालांकि शियाओं में एक और लाइन होती है- अलीयुन वलीउल्लाह. इसका मतलब होता है-अल्लाह के प्रतिनिधि अली हैं. दुनियाभर में सुन्नी और शिया मुस्लिम कलमा पढ़ते हैं. यह एक बेहद सामान्य धार्मिक रवायत है. यह लाइन हर पैदा होने वाले मुस्लिम बच्चे के कान में पिता द्वारा कही जाती है. साथ ही दुनिया से विदा हो रहे किसी मुस्लिम व्यक्ति के कानों में भी यह लाइन पढ़ी जाती है. 


कई देशों के झंडे पर कलमा, मुद्राओं में भी
दुनिया के कई इस्लामिक देशों ने अपने झंडे पर भी कलमे को जगह दी है. इन देशों में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान, सऊदी अरब जैसे देश शामिल हैं. कई मुद्राओं में भी इसका जिक्र किया जा चुका है. इसके अलावा कई मस्जिदों पर चित्रकारी के स्वरूप में भी यह पंक्ति प्रदर्शित की गई हैं. 


नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शन के दौरान थरूर के ट्वीट पर हुआ था बवाल
पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद शशि थरूर कलमे पर एक ट्वीट को लेकर फंस चुके हैं. दरअसल नागरिकता संशोधन कानून विरोधी प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर ला इलाहा इल्लल्लाह के नारे लगाए गए थे. तब थरूर ने ट्वीट किया था- 'हिंदू अतिवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई के चलते इस्लामी चरमपंथियों को ये नहीं लगना चाहिए कि हम उनके साथ हैं. हम दोनों तरह के अतिवाद से लड़ रहे हैं. हम धार्मिक कट्टरता को बहुलता और विविधता की जगह नहीं लेने देंगे. हम समावेशी भारत को बचा रहे हैं.' थरूर के इस ट्वीट को लेकर उस वक्त काफी बवाल मचा था. तब कई विचारकों ने ओपीनियन लिखकर शशि थरूर के ट्वीट को गलत करार दिया था.


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