नई दिल्लीः बीते दिनों उत्तर प्रदेश कोरोना की दूसरी लहर में बुरी तरह प्रभावित दिखा. अभी भी नए मामले आ रहे हैं, लेकिन उनकी संख्या पहले से कम हो रही है. वायरस से हाहाकार का शोर कुछ कम हुआ है तो राजनीतिक गलियारे के शोर-शराबे पर एक बार फिर ध्यान जा पा रहा है.


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इस शोर के बीच में एक नाम कभी हल्का तो कभी स्पष्ट तौर पर सुनाई दे रहा है. नाम है एके शर्मा. यानी अरविंद कुमार शर्मा.


एक चर्चा जारी है
सिर्फ नाम ही नहीं सुनाई पड़ रहा है. इसके पीछे-पीछे चर्चाओं का एक पूरा हुजूम है. चर्चाएं कई लूप में हैं. पहली तो ये कि यूपी कैबिनेट में बड़ी फेरबदल होने वाली है.


दूसरी कि यह फेरबदल नीचे से होते-होते सीधे डिप्टी सीएम की कुर्सी तक पहुंचेगी. तीसरी ये कि चुनाव से कुछ वक्त पहले ही एके शर्मा डिप्टी सीएम के पद पर काबिज हो सकते हैं. 



चर्चाओं को अफवाहें बनने और अफवाहों को सच साबित होने में देर नहीं लगती. इसलिए इन सारी अटकलों को यहीं छोड़ते हुए पहले यही जान लेते हैं कि एके शर्मा कौन हैं? क्या हैं,और यूपी की सत्ता में कितने अहम हैं? 


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पहले जान लीजिए नाम-पता और गांव
उत्तर प्रदेश में मऊ जिला है. इसी मऊ जिले में है मुहम्मदाबाद गोहना तहसील, यहां से आगे है रानीपुर विकास खंड और यहीं है गांव काझाखुर्द.


IAS रहे अरविंद कुमार शर्मा का स्थायी पत्राचार वाला पता यही है. पिता शिवमूर्ति और मां शांति के घर 1962 में जन्मे सबसे बड़े बेटे ने गांव में रहकर प्राइमरी पाठशाला में ककहरा सीखा और फिर DAV इंटर कॉलेज से इंटर पास करके चले गए पूर्व के ऑक्सफोर्ड यानी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी. यहां से ग्रेजुएशन किया, फिर पीजी फिर पीएचडी और फिर बन गए IAS Aspirant.  न सिर्फ बने बल्कि चुन भी लिए गए. 


और जिंदगी में आया टर्निंग पॉइंट
अरविंद शर्मा 1988 बैच के गुजरात कैडर के IAS अधिकारी रहे. बतौर IAS अपना जो भी काम था करते रहे. नौकरशाह की नौकरी चलती रही. फिर एक दिन साल बदला, इसी के साथ सदी बदल गई और गुजरात में अचानक ही निजाम बदल गया.


2001 भुज भूकंप के बाद सूबे की सत्ता का बोझ सीएम केशुभाई पटेल के बूढ़े कंधों से उतार कर नरेंद्र मोदी नाम के एक कर्तव्य निष्ठ प्रचारक के सिर पर ताज बनाकर सजा दिया गया था.



राज्यों के सीएम अपने सचिव के तौर पर विश्वासी ब्यूरोक्रेट को नियुक्त करते रहे हैं. एक सीनियर IAS के सुझाव के बाद सीएम बने मोदी को ये विश्वास IAS AK Sharma की आंखों में नजर आया.


ऐसे जीता भरोसा, बने आंख के तारे
फिर कई मामले आए, शर्मा ने इस विश्वास को पुख्ता किया मजबूत बनाया और बन गए तब के सीएम के नैन तारे. फिर तो मीडिया रिपोर्ट भी कहती हैं कि शर्मा इतने प्रिय रहे हैं कि जहां-जहां मोदी गए हैं अरविंद कुमार शर्मा वहां नजर आए हैं.


एक वाकया बड़ा दिलचस्प है. पं. बंगाल में टाटा जब नैनो प्लांट लगा रही थीं तो उसका ममता एंड टीम विरोध कर रही थी. मामला बहुत बढ़ गया.


गुजरात ने इस मौके को भुनाया और टाटा को साणंद में जमीन देने की बात की. इस जमीन पर कुछ पेंच था. ये केस IAS अफसर और सीएम सचिव अरविंद कुमार शर्मा के पास आया. उन्होंने हाथ घुमाया पेंच खुल गए और साणंद की जमीन में टाटा नैनो की खेती होनी लगी. 


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सीएम मोदी ही नहीं पीएम मोदी के भी रहे साथ
अरविंद कुमार शर्मा सिर्फ सीएम नरेंद्र मोदी के साथ ही नहीं रहे, बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी के भी साथ रहे हैं और लंबा साथ निभाया है.



यही साथ उन्हें पीएम मोदी का घनिष्ठ करीबी बनाता है. 26 मई 2014 को पीएम मोदी ने शपथ ली. 30 मई को अरविंद शर्मा की नियुक्ति हुई. PMO में अरविंद शर्मा 3 जून को ज्वाइंट सेक्रेटरी बने,


22 जुलाई 2017 को एडिशनल सचिव और 30 अप्रैल 2020 को उन्हें MSME यानी मंत्रालय में सचिव बना दिया गया. 


14 जनवरी 2021 को हुए भाजपा में शामिल
अरविंद शर्मा ने 12 जनवरी 2021 को VRS ले लिया. उनकी सेवानिवृत्ति में दो साल बच रहे थे.


इसी साल 14 जनवरी को उन्होंने लखनऊ में भाजपा की सदस्यता ली है. फिर MLC बनाए गए. तभी से डिप्टी सीएम बनाए जाने की चर्चा जारी है.


बीच में Covid का कहर बरपा तो यह चर्चाएं बंद हो गईं, लेकिन बताया जा रहा है कि बीते दिनों सीएम योगी से एक गुप्त बैठक और इसके ठीक बाद दिल्ली में पीएम मोदी के साथ एक निजी बातचीत किसी नए समीकरण का इशारा कर रहे हैं.



इसके पहले भी हाल ही में पीएम मोदी ने बनारस में कोरोना नियंत्रण को लेकर भी अरविंद शर्मा की तारीफ की थी. 


तो देखते हैं कि UP की सियासत में हो रही इस गुपचुप गलबहियां से क्या नया शगुन होने वाला है? 


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