Sarai Kale Khan ISBT Name Changed: आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शुक्रवार को घोषणा करते हुए बताया कि दिल्ली के सराय काले खां अंतरराज्यीय बस टर्मिनल (ISBT) बस स्टैंड चौक का नाम बदलकर भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर रखा गया है. तो ऐसे में अब सराय काले खां ISBT को बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाना जाएगा.


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केंद्रीय मंत्री ने दिल्ली में एक कार्यक्रम में यह घोषणा की, जहां केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 'जनजातीय गौरव दिवस' के अवसर पर उनकी प्रतिमा का अनावरण किया.


खट्टर ने घोषणा करते हुए क्या कहा?
खट्टर ने कहा, 'मैं आज घोषणा कर रहा हूं कि यहां आईएसबीटी बस स्टैंड के बाहर बड़े चौक को भगवान बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाएगा. इस प्रतिमा और उस चौक का नाम देखकर न केवल दिल्ली के नागरिक बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बस स्टैंड पर आने वाले लोग भी निश्चित रूप से उनके जीवन से प्रेरित होंगे.'


बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती
भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर उनकी प्रतिमा का अनावरण करते हुए अमित शाह ने सामाजिक सुधार में उनके योगदान और 'धार्मिक रूपांतरण' के खिलाफ खड़े होने के उनके साहस की सराहना की.



शाह ने कहा कि देश हमेशा बिरसा मुंडा का आभारी रहेगा, जिन्होंने आजादी के लिए और धर्मांतरण के खिलाफ आंदोलन किया. शाह ने कहा कि जब पूरा देश और दुनिया के दो तिहाई हिस्से पर अंग्रेजों का शासन था, उस समय उन्होंने धर्मांतरण के खिलाफ खड़े होने का साहस दिखाया.


उन्होंने कहा, 'बिरसा मुंडा ने अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी करते समय धर्म परिवर्तन के खिलाफ आवाज उठाई थी. 1875 में माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करते समय उन्होंने धर्म परिवर्तन के खिलाफ आवाज उठाई थी. जब पूरा देश और दुनिया के दो तिहाई हिस्से पर अंग्रेजों का शासन था, उस समय उन्होंने धर्म परिवर्तन के खिलाफ खड़े होने का साहस दिखाया.'


कौन थे भगवान बिरसा मुंडा?


-स्वतंत्रता सेनानी का जन्म 1875 में वर्तमान झारखंड में हुआ था. बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी थी और उन्हें साम्राज्य के खिलाफ आदिवासियों को संगठित करने का श्रेय दिया जाता है. 25 साल की छोटी उम्र में ब्रिटिश हिरासत में उनकी मृत्यु हो गई.


-बिरसा मुंडा ने 19वीं सदी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में उठे आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया. विद्रोह मुख्य रूप से खूंटी, तमार, सरवाड़ा और बंदगांव के मुंडा बेल्ट में केंद्रित था.


-बिरसा ने अपने शिक्षक जयपाल नाग के मार्गदर्शन में सालगा में शिक्षा प्राप्त की.


-बाद में, बिरसा ने ईसाई धर्म अपनाकर जर्मन मिशन स्कूल में दाखिला लिया, लेकिन जल्द ही यह पता चलने के बाद कि अंग्रेज शिक्षा के माध्यम से आदिवासियों को ईसाई बनाने का लक्ष्य बना रहे हैं, उन्होंने स्कूल छोड़ दिया.


-मुंडा विद्रोह का कारण 'औपनिवेशिक और स्थानीय अधिकारियों द्वारा अनुचित भूमि हड़पने की प्रथाएं थीं, जिसने आदिवासी पारंपरिक भूमि व्यवस्था को नष्ट कर दिया था'.


-बिरसा को पारंपरिक आदिवासी संस्कृति को पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है, जो ब्रिटिश ईसाई मिशनरी कार्यों से सबसे अधिक नकारात्मक रूप से प्रभावित थी.


-उनके संप्रदाय के अंतर्गत आने वाले कई आदिवासी पहले ही ईसाई धर्म अपना चुके थे. उन्होंने चर्च और कर लगाने और धर्म परिवर्तन जैसी उसकी प्रथाओं का विरोध और उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी.


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