नई दिल्ली: Bihar Floods Reasons: साल बदले, हाल नहीं... बिहार से हर साल बाढ़ की खबरें रिपोर्ट की जाती हैं. न सिर्फ लोगों के घर बह जाते हैं, बल्कि मौतें भी होती हैं. फिर भी सरकार नहीं चेत पाती. इस बार भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति बनती दिख रही है. कोसी और गंडक समेंत कई नदियां उफान पर हैं. मधुबनी के मधेपुर प्रखंड की करीब 50 हजार की आबादी बाढ़ से घिर गई है. आइए, जानते हैं कि बिहार में हर साल बाढ़ क्यों आती है.
बाढ़ से बदतर हो जाते हैं हालात
आपदा विभाग बिहार को बाढ़ ग्रसित राज्य मानता है. यहां का 73% क्षेत्र यानी 68800 वर्ग किमी क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है. बिहार की कुल आबादी में से 76% लोग फ्लड प्रोन एरिया में रहते हैं. जब-जब बाढ़ आती है, इनका जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है. उत्तरी बिहार की करीब 5 करोड़ की आबादी हर साल बाढ़ से परेशान होती है. साल 2004 में बिहार की स्थिति बाढ़ के कारण काफी भयावह हो गई थी. करीब 20 जिलों के 9,346 गांवों के 2 करोड़ से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हुए. इससे 885 लोगों की मौत हुई. इसके आलावा, 522 करोड़ रुपये की फसल का नुकसान भी हुआ.
पूर्व PM नेहरू ने किया था वादा
देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बिहार में बाढ़ को रोकने के लिए प्रयास किए थे. लेकिन वे सफल नहीं हो पाए. साल 1953 में उन्होंने कोसी परियोजना का शिलान्यास किया. तब उन्होंने आश्वासन दिया था कि आगामी 15 साल में हम बिहार की बाढ़ पर कंट्रोल कर लेंगे. 15 साल का टाइम पूरा होता, इससे पहले ही नेहरू का निधन हो गया. अब 71 साल बीत चुके हैं, इस बीच कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन बाढ़ नहीं रूक पाई.
बिहार में क्यों आती है बाढ़, सरकार कहां चूकी?
1. नेपाल खोल देता है बांध के दरवाजे: बिहार में बाढ़ आने का मुख्य कारण नेपाल है. नेपाल की ओर से बहने वाली नदियां (गंडक, कोसी, कमला बलान, बूढ़ी गंडक, बागमती) बिहार में आती हैं. जब भी बारिश होती है तो ये नदियां उफान पर आ जाती हैं और बिहार में बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है. चंपारण, मधुबनी, सीतामढ़ी, अररिया और किशनगंज जैसे जिले नेपाल से सटे हुए हैं. नेपाल में जल स्तर बढ़ने पर बांध के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और बिहार के इन जिलों में बाढ़ आ जाती है. सरकार इन नदियों के अधिक पानी को रोकने में सफल नहीं हो पाई है.
2. जलग्रहण क्षेत्र में पेड़ों की कटाई: बिहार का जो जलग्रहण क्षेत्र था वहां पर पेड़ों की अत्याधिक कटाई हुई है. पहले पेड़ थे, तो पानी रुक जाता था, लेकिन अब जमीन समतल हो गई और पानी बिना किसी रुकावट के आगे बढ़ जाता है. कोसी नदी का बिहार में 11,410 वर्ग किमी जलग्रहण क्षेत्र है. इसमें कम पेड़ होने के कारण पानी सीधे आबादी वाले क्षेत्र तक पहुंच जाता है.
3. कोसी नदी पर डैम नहीं: बिहार में बाढ़ का कारण कोसी नदी में बढ़ा हुआ जलस्तर भी है. जब तक इस नदी पर हाई डैम का निर्माण नहीं होता, तब तक ये समस्या जारी रहेगी. कोसी नदी पर डैम बनाने को लेकर नेपाल सहमत नहीं है. नेपाल के लोगों का मानना है कि इस नदी पर डैम बना तो पर्यावरण नकारात्मक असर पड़ेगा और नेपाल का बड़ा भू-भाग डूब भी सकता है.
4. पानी की निकासी की जगह नहीं: बिहार में बहने वाली नदियों के पानी की निकासी की जगह नहीं है. जब जलस्तर बढ़ता है, तो उसे जाने की जगह नहीं मिलती और पानी बाढ़ का विकराल रूप ले लेता है.
5. सिल्ट का जमा होना: नदियां अपने साथ सिल्ट (गाद) भी बहाकर लाती हैं. तटबंधों के कारण ये सिल्ट धीरे-धीरे जमा होने लगता है. एक समय ऐसा आता है जब ये सिल्ट पानी को एक एक स्थान पर रोक देता है, जिससे वह आगे नहीं बढ़ पाता और आसपास के इलाकों में फैल जाता है.
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