44 दिन चले `अढ़ाई कोस`, क्यों बेनतीजा रही सरकार-किसान बैठक?
देश में अराजकता की धमकी देकर, गणतंत्र दिवस पर दिल्ली के राजपथ पर ट्रैक्टर दौड़ाने की चेतावनी देकर, लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को धमका, अड़ कर, चढ़कर, यस और नो की शर्त रखकर किसानों के कथित नेता कौन सा संवाद सरकार से कर रहे हैं?
नई दिल्ली: तारीखें बदलती रहीं, विज्ञान भवन में किसान नेता आते जाते रहे. सरकार आती रही बैठकें दर बैठकें होती रहीं लेकिन बात नहीं बनी, सुई वहीं अटकी है जहां पहले थी. किसान नेताओं ने कहा तीनों कृषि वापस लें, तब आगे की बात होगी, सरकार ने कहा कानून वापस नहीं होगा, सुझावों का स्वागत है.
सवाल ये है कि देश में अराजकता की धमकी देकर, गणतंत्र दिवस (Republic day) पर दिल्ली के राजपथ पर ट्रैक्टर दौड़ाने की चेतावनी देकर, लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को धमका, अड़ कर, चढ़कर, यस और नो की शर्त रखकर किसानों के कथित नेता कौन संवाद सरकार से कर रहे हैं? दरअसल कथित किसान नेताओं की नीयत किसानों की ज़िंदगी खुशहाल करने की नहीं बल्कि देश के भीतर अराजकता को हवा देने की है.
9वें दौर की बातचीत में क्या निकलेगा इसका अंदाजा तो हमें पहले से ही था. जब राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने ज़ी हिंदुस्तान से बातचीत में ये कहा था कि हम 2024 तक की तैयारी कर के आए हैं. जाहिर है ऐसे में किसान आंदोलन (Farmers protest) को किसान का पवित्र आंदोलन मत कहना ठीक नहीं होगा ये एक तरह का राजनीतिक मूवमेंट है. जो समय के साथ अराजकता का सबब भी बन सकता है लिहाजा सचेत रहना भी जरूरी है. कथित किसान आंदोलन को एक खास एजेंडा चलाने और उसे स्थापित करने वाले अतिवादी वामपंथियों का राजनीतिक जतन कहना ज्यादा ठीक होगा.
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अराजकता का खौफ दिखाकर ब्लैकमेलिंग का खेल है ये?
अगर सरकार वार्ता के लिए न बुलाती, अगर सरकार कमेटी बनाकर किसानों के सुझाव मांगती, अगर सरकार हर बार की बैठक के पहले नकारात्मक भाषा बोलती तब तो हम भी मान लेते कि सरकार समाधान के लिए गंभीर नहीं है. पर सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया बल्कि हर वो मुमकिन कोशिश की कि जमी बर्फ पिघले, साथ खाना खाया, चाय पी और चर्चा की. सरकार ने कभी संवाद की खिड़की और दरवाज़े बंद नहीं किए लेकिन हासिल क्या हुआ?
इस बीच एक नहीं ऐसी सैकड़ों तस्वीरें भी सामने आईं जिन्होंने इस बात की तस्दीक की, कि आंदोलन के नाम पर अराजकतावादियों ने सिर्फ मासूम किसानों को छला है. दिल्ली की हाड़ कंपाती ठंड और प्रचंड शीतलहरी में किसानों को सिर्फ इसलिए रखा गया है ताकि उनकी भीड़ पर, उनके चेहरों को आगे रख कर वामपंथी एजेंडाधारी अपने अपने सत्ता संघर्ष की हवा चलाते रहें.
दूसरी तरफ कई जगहों से आई अराजकता की तस्वीरें भी वामपंथियों के उसी खौफ फैलाने के एजेंडे का हिस्सा है जिससे झूठी क्रांतियां लिखी जाती रही हैं और आखिर में हासिल हुआ है निरंकुश वामपंथी साम्राज्य.
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अतिवादी वामपंथ, किसान आंदोलन सियासी पैंतरा
लेफ्ट नेता हन्नान मुल्ला (Hannan Mollah) की धमकी उसी वामपंथी अराजकता की तरफ इशारा करती है. जिसमें वो कहते हैं 26 जनवरी को राजपथ पर हम ट्रैक्टर चलाएंगे, अगर हमारी बात नहीं मानी गई तो. वो पूरे देश में ट्रैक्टर जुलूस निकालने की चेतावनी देते हैं. दरअसल ऐसी तस्वीरें रच कर खौफ पैदा करने कोशिश भी की जा रही है.
ये बात भी दीगर है कि मीडिया को निशाना बनाया जा रहा है. महिला पत्रकारों तक से बदसलूकी की एक नहीं कई तस्वीरें हैं. इसके जरिए ये जताया जा रहा है कि जो संवाद का हिमायती बनेगा उसे माओवादी दर्शन के हिसाब से कुचल दिया जाएगा. समझ नहीं आता कि ये कौन सी मानसिकता है, जो महान लोकतांत्रिक देश में सरेआम बंदूक की गोली से सत्ता टटोलने निकली है?
हालांकि इटली में तफरीह करने पहुंचे कांग्रेस के चिर युवा नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) एक्टिव हैं. मौज मजे के दौर में अंदाज शायराना है, वो ट्वीट कर किसान नेताओं को लघ्घे से घी पिला रहे हैं. युवराज लिखते हैं कि,
नीयत साफ नहीं है जिनकी,
तारीख़ पे तारीख़ देना स्ट्रैटेजी है उनकी!
सबके अपने एजेंडे हैं अपना राग है. फिलहाल तो अब 15 जनवरी का इंतजार है.
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