झारखंड में बीजेपी का नया आदिवासी कार्ड, बाबू लाल मरांडी को बनाया पार्टी लीडरशिप फेस

आगामी 28 अक्टूबर को पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में रांची में एक बड़ी रैली आयोजित करने जा रही है. इसका मकसद पार्टी के कार्यकर्ताओं और जनता का यह संदेश देना है कि अब मरांडी ही झारखंड में पार्टी के सर्वमान्य नेता हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 25, 2023, 09:06 PM IST
  • बीजेपी की 28 को बड़ी रैली.
  • मरांडी को स्थापित कर रही बीजेपी.
झारखंड में बीजेपी का नया आदिवासी कार्ड, बाबू लाल मरांडी को बनाया पार्टी लीडरशिप फेस

रांची.  भारतीय जनता पार्टी ने झारखंड में सत्ता में वापसी के लिए बड़ा आदिवासी कार्ड खेला है. हेमंत सोरेन  की अगुवाई वाले झामुमो-कांग्रेस-राजद के गठबंधन से मुकाबले के लिए बाबूलाल मरांडी को चेहरा बनाकर बीजेपी इस राह पर आगे बढ़ गई है. आगामी 28 अक्टूबर को पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में रांची में एक बड़ी रैली आयोजित करने जा रही है. इसका मकसद पार्टी के कार्यकर्ताओं और जनता का यह संदेश देना है कि अब मरांडी ही झारखंड में पार्टी के सर्वमान्य नेता हैं.

दरअसल जेपी नड्डा की यह रैली मरांडी की 17 अगस्त से शुरू हुई संकल्प यात्रा का समापन कार्यक्रम है. इसके पहले जुलाई में पार्टी ने मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था.
बीते दो महीनों में वह आठ चरणों में राज्य के 81 में से 71 विधानसभा क्षेत्रों की यात्रा कर चुके हैं. उनकी यात्रा के समापन कार्यक्रम में राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा का आना असल में मरांडी के नेतृत्व को पुनर्स्थापित करने की रणनीति का ही एक हिस्सा है.

राज्य के पहले सीएम रहे हैं मरांडी
दरअसल बाबू लाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे हैं. साल 2006 में उन्होंने बीजेपी से अलग होकर अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा बनाई थी. 14 साल में उनकी पार्टी ने अपनी एक पहचान तो जरूर बनाई, लेकिन सियासी हैसियत इतनी बड़ी कभी नहीं हुई कि पार्टी अपने बूते झारखंड की सत्ता हासिल कर सके. 2019 का चुनाव आते-आते मरांडी थक चुके थे और उनकी पार्टी भी बेतरह पस्त हो गई थी.

2019 में जनता ने रघुवर दास सरकार को नकारा
दूसरी तरफ बीजेपी के सीएम रघुवर दास पहले गैर आदिवासी नेता थे जो इस पद पर पहुंचे थे. लेकिन 2019 में जनता ने उन्हें भी खारिज कर दिया. बीजेपी राज्य की 28 आदिवासी सीटों में से 26 पर पराजित हुई और यह उसके हाथ से सत्ता के फिसलने की सबसे बड़ी वजह रही. अब बीजेपी को एक बड़े आदिवासी चेहरे की जरूरत थी. फिर मरांडी पार्टी में वापस लौटे. इसके बाद से ही बीजेपी ने सत्ता में लौटने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया. तभी से मरांडी को सर्वमान्य लीडर के तौर पर स्थापित करने की कवायद चल रही है.

लीडरशिप ने कैसे मैनेज किया?
वहीं पार्टी के भीतर अर्जुन मुंडा और रघुवार दास गुट को साधने के लिए भी टॉप लीडरशिप ने उपाय किए. एक तरफ रघुवर दास को ओडिशा का राज्यपाल बनाकर झारखंड में बीजेपी की सक्रिय राजनीति से दूर कर दिया गया है, तो दूसरी तरफ अर्जुन मुंडा को झारखंड के मोह से मुक्त होकर केंद्र की सरकार में मंत्री के तौर पर फोकस करने को कहा गया है. राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं.

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