नई दिल्ली: कोरोना संकट काल में बच्चों का पैदा होना तो बंद नहीं हो सकता. लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि ज्यादातर केसेज में महिलाओं की डिलीवरी नॉर्मल हुई. जबकि कोरोना के आगमन से पहले खास तौर पर निजी अस्पतालों(Private Hospitals) में आधी से ज्यादा डिलीवरी सिजेरियन(Cesarean Delivery) ही होती थी. 

सिजेरियन जैसी इमर्जेन्सी प्रक्रिया हो गई थी सामान्य
पिछले कुछ सालों से निजी अस्पतालों में ज्यादातर डिलीवरी सिजेरियन(Cesarean Delivery) ही हो रही थी. विशेषज्ञों का मानना है कि सिजेरियन डिलीवरी सिर्फ जटिल केसों में ही की जानी चाहिए. क्योंकि सिजेरियन ऑपरेशन का माता के शरीर पर बेहद बुरा असर पड़ता है. क्योंकि इसमें बच्चे का जन्म प्राकृतिक तरीके से नहीं होता. बल्कि गर्भाशय में चीरा लगाकर बच्चे को निकाला जाता है. यह जटिल मेडिकल हालातों में बच्चा पैदा कराने का आखिरी विकल्प है. लेकिन पिछले कुछ समय से सिजेरियन डिलीवरी का चलन बढ़ गया था. 
कोरोना ने खोला राज
पिछले कुछ सालों में मामूली केसेज में भी अस्पतालों द्वारा गर्भवती महिला और उसके परिजनों को दहशत में डालकर सिजेरियन ऑपरेशन करने के मामले बढ़ते जा रहे थे. क्योंकि इससे अस्पतालों का बिल कई गुना बढ़ जाता था. लेकिन कोरोना संकट काल में अस्पतालों ने मजबूरी में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए मरीजों को भर्ती कराने से परहेज किया. जिसका सीधा असर सिजेरियन डिलीवरी के मामलों में दिखाई दिया. 


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लॉकडाउन के दौरान देश के कई राज्यों में डिलीवरी के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो सिजेरियन ऑपरेशनों की संख्या बेहद तेजी से गिर गई है. कई जगहों पर तो यह गिरावट 60 से 70 फीसदी है. जिससे यह शक और पुख्ता होता है कि कोरोना संकट के पहले अस्पताल पैसे बनाने के लिए सिजेरियन ऑपरेशन कराने पर जोर देते थे.    
आंकड़े देते हैं गवाही
- यूपी के गोरखपुर में 60 फीसदी बच्चे नॉर्मल डिलीवरी से हुए. खास तौर पर जिला महिला अस्पताल में ज्यादातर बच्चे नॉर्मल ही हुए. 
- वाराणसी, मिर्जापुर, आजमगढ़, मऊ, बौलिया जैसे शहरों में 60 से 70 फीसदी बच्चे नॉर्मल डिलीवरी से हुए. 
- झारखंड में सिजेरियन मामलों की संख्या 4 हजार से घटकर औसतन 2600 रह गई है. यहां अप्रैल में 33 फीसदी और मई में 25 फीसदी कम सिजेरियन ऑपरेशन हुए. 
- पंजाब में सिजेरियन ऑपरेशन के मामले आधे से भी कम हो गए. अमृतसर, लुधियाना, जालंधर में सिजेरियन की अपेक्षा नॉर्मल डिलीवरी के मामले ज्यादा हो गए हैं. जबकि कोरोना संकट से पहले सिजेरियन मामले नॉर्मल डिलीवरी से ज्यादा हुआ करते थ. 
- कुछ साल पहले हुए एक सर्वे में देश के प्राईवेट अस्पतालों में 54.6 सिजेरियन डिलीवरी होती थी. जबकि सरकारी अस्पतालों में 16.5 फीसदी सिजेरियन केसेज होते थे. लेकिन कोरोना संक्रमण काल में प्राईवेट अस्पतालों ने भी नॉर्मल डिलीवरी पर जोर दिया. 
कोरोना ने अस्पतालों को सुधार दिया
विशेषज्ञों का कहना है कि कि आम तौर पर मात्र 10 से 15 फीसदी जटिल केसेज में ही महिलाओं को ही सिजेरियन ऑपरेशन की जरुरत होती थी. लेकिन यह आंकड़ा 50 फीसदी से ज्यादा तक पहुंच जाता था. एक अनुमान के मुताबिक सीजेरियन के 90 फीसदी मामलों में ऑपरेशन की जरुरत ही नहीं होती थी. तब भी पैसों के लालच में अस्पताल गर्भवती महिलाओं का ऑपरेशन कर देते थे. यह ट्रेंड पिछले 25 से 30 सालों में बेहद ज्यादा हो गया था. 
लेकिन कोरोना के डर ने अस्पतालों को फिलहाल तो सही राह पर ला दिया. अब वे संक्रमण के डर से मरीजों को भर्ती करने या जटिल ऑपरेशनों से परहेज करने लगे हैं. क्योंकि इस दौरान संक्रमण फैलने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. 
यही वजह है कि सीजेरियन ऑपरेशन की संख्या घट गई है और नॉर्मल डिलीवरी बढ़ गई है. आने वाले वक्त में गर्भवती महिलाओं और उनके परिजनों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए और अस्पतालों के झांसे में आने से बचना चाहिए. 


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