नई दिल्ली.  इस्लामिक देशों (Islamic countries) को लामबंद करने में जो दो देश आगे हैं वो दोनों ही दुनिया में अपनी आतंकवाद (Terrorism) समर्थित अपनी छवि के लिए जाने जाते हैं. एक तुर्की (Turkey) और दूसरा पाकिस्तान (Pakistan) . तुर्की इस्लामिक स्टेट के आतंवादियों का इस्तेमाल करता है तो पाकिस्तान अपने यहां पैदा किए गए इस्लामिक दहशतगर्दों को. ये दोनों देश बखूबी जानते हैं कि ट्रेडिशनल वॉरफेयर के बजाए धार्मिक एकजुटता का भावुक कार्ड खेलकर और इस्लाम पर मंडराते खतरे का झूठा खौफ दिखाकर मुस्लिम (Muslim) देशों को गैर मुस्लिम देशों के खिलाफ असानी से भड़काया जा सकता है. और ये दोनों यही कर रहे हैं. आर्मेनिया पर कहर बरपाया जा रहा है. महज 29 लाख की आबादी वाले इस देश ने अजरबैजान के खिलाफ अब कमर कस ली है. 18 साल और इससे ऊपर के नौजवान अपनी मातृभूमि की सीमाओं की रक्षा के लिए संकल्प लिए युद्ध के मैदान में हैं. आर्मेनिया की बहुसंख्यक आबादी ईसाई है. अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच नागोर्नो-काराबाख में जंग जारी है. तुर्की के उकसावे पर अज़रबैजान ने आर्मेनिया के खिलाफ इस इलाके में जंग छेड़ी हुई है. बात इतनी भर नहीं है इस्लाम के नाम पर तुर्की इस्लामिक स्टेट के आतंकियों को भी अज़रबैजान की तरफ से भेज रहा है.


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ISIS आतंकियों को नागोर्नो-काराबाख भेज रहा है तुर्की


ISIS के ये वो आतंकी हैं जिन्होंने सीरिया और इराक में चुन-चुन कर शिया समुदाय की महिलाओं-बच्चों तक की बर्बर हत्याएं की थीं. अब इन इस्लामिक आतंकियों को आर्मेनिया की क्रिश्चियन आबादी के खिलाफ उतारा गया है. इसकी पुष्टि खुद फ्रांस के राष्ट्रपति इम्‍मैनुअल मैक्रान ने की है. इम्‍मैनुअल मैक्रान ने कहा है कि- 300 से ज्यादा सीरियाई आतंकी कुछ समय पहले अलेप्पो जोन से निकाले गए थे और उन्हें तुर्की के रास्ते नागोर्नो-काराबाख में संघर्ष इलाके में तैनात किया गया है जो अजरबैजान की ओर से युद्ध लड़ेंगे. मैंने इस संबंध में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात की है और उन्होंने इसकी पुष्टि की है. दरअसल मामला बहुत सीधा और साफ है. तुर्की इस्लामिक गुटबंदी में लगा हुआ है. इसके लिए उसने तीन तरफ रास्ता चुना है. एक इस्लामिक राष्ट्रों को गैर मुस्लिम देशों पर हमले के लिए उकसाना. दूसरा आतंकी संगठनों का गैर मुस्लिम देशों के खिलाफ इस्तेमाल करना. तीसरा गैर मुस्लिम देशों में रह रही मुस्लिम आबादी को भड़काना.


शियाओं और गैर मुस्लिमों की बर्बर हत्याएं


ये बेहद खतरनाक साजिश है. खतरनाक इसलिए क्योंकि इस्लामिक आतंकियों ने शियाओं और गैर मुस्लिमों का कत्लेआम धर्म के नाम पर किया है उसे दुनिया ने देखा है. दुनिया का इस्लामिक फोबिया तुर्की और पाकिस्तान जैसे देशों के पाले गए इस्लामिक आतंकियों की ही देन है. अब इसी फोबिया का फायदा तुर्की उठाना चाहता है. दुनिया को दारुल उलूम में बदलने के मकसद से.  दारुल उलूम वो इलाका है जहां इस्लाम का राज चलता है. दारुल हरब का मतलब होता है युद्ध भूमि. जहां इस्लाम का शासन नहीं चलता यानि गैर मुस्लिम देश. जेहाद में दारुल हरब को दारुल इस्लाम बनाने के लिए संघर्ष का आह्वान किया जाता है


'दारुल हरब'- नागोर्नो-काराबाख


इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले एक दशक से ज्यादा के वक्त में दुनिया ने इस्लामिक आतंकवाद की सबसे बुरी तस्वीरें देखी हैं. खास बात ये है कि महज धर्म के नाम शिया बहुल अजऱबैजान अपने ही लोगों के हत्यारों के साथ हाथ मिला चुका है. आर्मेनिया अज़रबैजान के लिए दरअसल दारुल हरब है. यानि युद्ध का मैदान. अज़रबैजान की कोशिश आर्मेनिया को दारुल इस्लाम में बनाने की है. हालांकि ये फिलहाल मुश्किल है. वैसे ऐसी ही सुपारी पाकिस्तान ने भी एशियन रीजन में अपने इस्लामिक आतंकियों के भरोसे ली हुई है. वही पाकिस्तान जहां कुछ दिन पहले शियाओं की गर्दने उतारने का ऐलान सुन्नी कट्टरपंथी मौलानाओं ने किया था.


इस्लामिक अलगाववाद के खिलाफ फ्रांस में कानून


ऐसा लगता है जैसे इस्लामिक कट्टरपंथ की हवा किसी भी देश में इस्लामिक अलगाववाद को जन्म दे रही है. फ्रांस ने इस्लामिक अलगाववाद को लेकर गहरी चिंता जताई है. फ्रांस के राष्ट्रपति ने इस्लामिक सेपेरेटिज्म के खिलाफ कानून लाने की बात कही है. मैक्रों का कहना है कि इस सिलसिले में एक बिल अगले साल की शुरुआत में संसद में भेजा जाएगा जिसमें इस्लामिक अलगाववाद से निपटने का प्रावधान होगा. दरअसल फ्रांस की चिंताओं के मूल में कुछ सवाल हैं:



- क्या कोई विचारधारा या धर्म देश के कानून से ऊपर हो सकता है?
- क्या किसी नियम को धर्म के आधार पर मानने से इंकार किया जा सकता है?
- क्या किसी देश को अपने कानून लागू करने का हक नहीं है?
- हर नियम और काम में धर्म को आगे लाना कितना ठीक है ?
- किसी देश में नागरिक का धर्म बड़ा है या नागरिकता ?
- फ्रांस में पिछले 5 सालों में इस्लामिक आतंकी हमलों में 250 लोगों की जान जा चुकी है


2070 तक भारत में मुस्लिम आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा


सच जो है वो बेहद कड़वा है. इस्लामिक कट्टरपंथ ने दुनिया के भरोसे को एक बार फिर तोड़ा है. जिस इस्लामिक आतंक की दंश को दुनिया के कई देशों ने झेला है उसी आतंक को तुर्की-पाकिस्तान जैसे देश गैर मुस्लिम राष्ट्रों के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. एक सवाल ये भी है कि अचानक इतनी आक्रामकता की वजह क्या है. इसका जवाब है दुनिया में तेजी से बढ़ती मुस्लिम आबादी. इस्लाम किसी भी दूसरे धर्म की तुलना में बहुत तेजी से फैल रहा है. 2010 में इंडोनेशिया में दुनिया की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी थी जो करीब 205 मिलियन थी. लेकिन एक स्टडी के मुताबिक 2070 तक भारत में दुनिया सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी होगी जो 311 मिलियन के करीब होगी. अनुमान के मुताबिक इस्लामी कट्टरपंथ ऐसे ही बढ़ता रहा तो 2050 यूके और फ्रांस की क्रिश्चियन आबादी करीब 50 फीसदी कम हो जाएगी.  इतना ही नहीं 2050 तक यूरोप की 10 फीसदी आबादी के मुस्लिम धर्म अपनाने का अनुमान है. स्टडी कहती है कि 2050 में दुनिया के 50 लोगों में से 1 शख्स मुस्लिम होगा और इस्लाम 2070 तक दुनिया का सबसे बड़ा धर्म होगा. ज़ाहिर है बड़े पैमाने ऐसे बदलाव स्वत: स्फूर्त तो नहीं होंगे क्योंकि इस्लामिक कट्टरपंथ की जो तस्वीरें दिखती रही हैं वो कम से कम मानवता के लिए बेहतर संदेश तो नहीं देतीं.


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