सहारनपुरः प्राचीन जैव विविधता को समझने के सिलसिले में उत्तर प्रदेश को एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है. यहां सहारनपुर जनपद के अन्तर्गत शिवालिक वन प्रभाग आता है. इसके सहारनपुर वन क्षेत्र में सर्वेक्षण के दौरान एक हाथी का जीवाश्म (फॉसिल्स) मिला है. \


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जीवाश्म के अध्ययन के बाद वाडिया इंस्टीटयूट आफ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून के वैज्ञानिकों ने इसे 50 लाख वर्ष से अधिक पुराना बताया है. इस हाथी के पूर्वज को स्टेगोडॉन कहते हैं. 


सर्वेक्षण के दौरान मिला जीवाश्म
जानकारी के मुताबिक सहारनपुर जनपद के अंर्तगत शिवालिक वन प्रभाग सहारनपुर का वन क्षेत्र 33,229 हेक्टेयर है. बीते 6 माह से इसमें वन्य जीवों की गणना का कार्य चल रहा है. इस दौरान वन्य जीवों की दुर्लभ तस्वीरें ली गई हैं, साथ ही विशेष सर्वेक्षण भी किया गया. इसी सर्वेक्षण के दौरान एक हाथी का जीवाश्म भी मिला है.  



बादशाही बाग रेंज के पास मिला फॉसिल्स
जीवाश्म सर्वेक्षण टीम में सहारनपुर वृत्त के मुख्य वन संरक्षक वीके जैन, WWF इंडिया देहरादून के डा. आइपी बोपन्ना, देववृत पंवार शामिल रहे. मुख्य वन संरक्षक वीके जैन ने मीडिया से बातचीत में बताया कि टीम को यह जीवाश्म बादशाही बाग रौ के डाठा सौत के किनारे मिला जो बादशाहीबाग रेंज से मात्र 3-4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.



इस जीवाश्म का अध्ययन वाडिया इंस्टीटयूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून के वैज्ञानिकों से कराया गया. 


वर्तमान में विलुप्त हो चुके हैं यह हाथी
संस्थान के वैज्ञानिक डा. आरके सहगल एवं सेवानिवृत्त वैज्ञानिक डा. एसी नंदा द्वारा शिवालिक रेंज में पाये जाने वाले विभिन्न जीवाश्म पर अध्ययन किया गया. उन्होंने बताया कि यह जीवाश्म हाथी के पूर्वज का है, जिसे स्टेगोडॉन कहते हैं, जो वर्तमान में विलुप्त हो चुके हैं. यह जीवाश्म लगभग 50 लाख वर्ष पुराना है. 


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इस प्रजाति पर जारी हो चुके हैं डाक टिकट
स्टेगोडॉन पर 13 जनवरी 1951 को भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण शताब्दी के स्मरणोत्सव पर भारतीय डाक टिकट जारी किया गया था, जिसमें स्टेगोडॉन गणेशा को दिखाया गया था. डाक टिकट हेनरी फेयरफील्ड ओसब्रोन द्वारा प्रोबोसिडिया में प्रकाशित तस्वीर पर आधारित है.



इस टिकट के जरिये दुनिया के हाथियों की खोज, विकास, प्रवास और विलुप्त होने को लेकर वन्यजीव प्रेमियों की चिंता को भी जाहिर किया गया था. 


यह है जीवाश्म
किसी पत्थर पर हाथी के दांत पड़े रहने से निशान बन जाते हैं. ऐसे हाथी लगभग डायनासोर के समतुल्य ही होते थे. इनके लंबे दांत ही इनकी पहचान थे. ऐसे जीवाश्म पहले भी कई देशों में मिले हैं. 


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