लद्दाख तक पहुंचने का सबसे आसान रास्ता, देश के होगा और करीब
लद्दाख(Laddakh) में जारी भारत और चीन(India and china) के गतिरोध पर भारत को एक और सफलता मिली है. अब लद्दाख देश के और अधिक करीब आयेगा. क्योंकि वहां तक पहुंचने का सबसे आसान रास्ता खुलने जा रहा है.
नई दिल्ली: लद्दाख भारत के सबसे अहम और कीमती स्थान में से एक है जिससे भारत का गौरव बढ़ता है. केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद टनल पर काम बहुत तेजी आगे बढ़ा. कारगिल युद्ध के समय ही एक तीसरे रास्ते की योजना बनाई गई थी जिसके ज़रिए साल भर लद्दाख का सड़क मार्ग खोला जा सके.
आपको बता दें कि अधिक आबादी के लिए भी फायदेमंद था और सेना के लिए भी जिसे गर्मियों के चार महीने में ही पूरे साल की रसद जमा करनी होती थी. लद्दाख (Ladakh) को साल भर देश से जोड़े रह पाना संभव हो जाएगा. रोहतांग पास (Rohtang Pass) के नीचे से निकलने वाली टनल के शुरू होते ही लद्दाख तक पहुंचने का सबसे छोटा और सबसे आसाना रास्ता भी खुल जाएगा. ये रास्ता होगा मनाली से हिमाचल के दार्चा, शिंकुला पास से होते हुए लद्दाख की जांस्कार वैली (Zanskar Valley) के जरिए आगे बढ़ेगा.
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लद्दाख पास के नीचे वाली टनल से लद्दाख तक की दूरी होगी कम
बता दें कि रोहतांग पास (Rohtang Pass) के नीचे से निकलने वाली टनल के शुरू होते ही लद्दाख तक पहुंचने का सबसे छोटा और सबसे आसाना रास्ता भी खुल जाएगा. ये रास्ता होगा मनाली से हिमाचल के दार्चा, शिंकुला पास से होते हुए लद्दाख की जांस्कार वैली (Zanskar Valley) के जरिए आगे बढ़ेगा.
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नये मार्ग की ये है सबसे बड़ी खासियत
इस रास्ते में बर्फबारी कम है और ज्यादातर रास्ता नदी के साथ-साथ चलता है. इसलिए ये इकलौता ऐसा रास्ता होगा जिसके जरिए भारी बर्फबारी में भी लेह और कारगिल का सड़क मार्ग खुला रहेगा. इस रास्ते पर आने वाले इकलौते पास शिंगुला पर टनल बनाने का काम शुरू हो रहा है जिसमें तीन साल का समय लगेगा. लेकिन इस टनल के बनने से पहले ही ये रास्ता लद्दाख के लिए तीसरा रास्ता बनने को तैयार है.
बर्फबारी के कारण बन्द करना पड़ता था रास्ता
कारगिल (Kargil) या लेह (Leh) पहुंचने के लिए दो ही रास्ते थे. एक रास्ता श्रीनगर (Srinagar) से ज़ोज़िला पास पार करके कारगिल और लेह पहुंचने का है और दूसरा रास्ता मनाली से रोहतांग (Manali-Rohtang), लाचुंग ला (Lachung La), बारालाचला और तंगलांग ला होते हुए लेह और उसके बाद कारगिल पहुंचने का. लेकिन दोनों ही रास्ते साल के कुछ ही महीने खुले रहते हैं बाकी समय ऊंचे दर्रों पर भारी बर्फबारी के कारण बंद रहते हैं.