नई दिल्लीः लंबे इंतजार और उससे भी लंबी चली कानूनी लड़ाई के अंततः निर्भया को इंसाफ मिल गया. चारों दोषियों को फांसी दे दी गई और इस तरह एक बड़ी लड़ाई का अंत हुआ. फांसी देने के बाद अब अगला सवाल है कि चारों के शवों का क्या होगा? उनका अंतिम संस्कार कैसे होगा, इसके लिए क्या नियम हैं और जेल प्रशासन का इस बारे में क्या इतिहास रहा है, डालते हैं एक नजर-


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केवल अक्षय का भाई पहुंचा है
फांसी के बाद मृतकों के परिवार को शव लेने के लिए आवेदन करना होता है. हालांकि इस मामले में अभी किसी के परिवारी जन शव लेने के लिए नहीं पहुंचे हैं. उन्होंने ऐसा आवेदन नहीं किया है.  सिर्फ अक्षय का भाई पहुंचा हुआ है. उसके भाई का कहना है कि वो अक्षय की डेड बॉडी बिहार ले जाना चाहता है. लेकिन उसके पास ले जाने के लिए पैसे नहीं हैं. अभी तक का विचार यही है कि शवों का पोस्टमार्टम कर उन्हें परिवारीजनों को सौंप दिया जाएगा. 


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दीन दयाल हॉस्पिटल में पोस्टमार्टम 
चारों दोषियों की मौत के बाद शवों को हरि नगर थाने की पुलिस को सौंप दिया गया था, इसके बाद पुलिस उन्हें लेकर दीन दयाल उपाध्याय हॉस्पिटल पहुंची. वहां चारों का पोस्टमार्ट्म किया जाएगा. पोस्टमार्टम के बाद चारों के शव उनके घरवालों को सौंप दिया जाएगा. अबतक किसी के परिवार ने शव लेने या न लेने के बारे में कुछ नहीं कहा है.



ऐसे में सभी के मन में सवाल हैं कि शवों का क्या होगा? दोषियों को सुबह 5ः30 बजे फांसी हुई. फांसी के बाद चारों को करीब आधे घंटे फांसी पर लटके रहने दिया गया. इसके बाद 6 बजे के बाद फांसी घर में मौजूद डॉक्टरों ने चारों की मौत की पुष्टि की. फिर चारों को दो ऐम्बुलेंस से तिहाड़ से निकाला गया. 


इस गाइडलाइन्स के तहत सौंपे जाते हैं शव
किसी भी अपराधी को फांसी देने के बाद पहले तो डॉक्टर शव की जांच करते हैं और मौत की पुष्टि करते हैं. इसके बाद शव को ऑटोप्सी के लिए भेज दिया जाता है. तिहाड़ जेल के अधिकारियों के अनुसार पहले ऐसा नहीं होता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की 2014 की गाइडलाइन्स के बाद ये किया जाता है. निर्भया के दोषियों के शवों का क्या होगा, अभी इस बारे में कुछ भी तय नहीं है.  जेल मैनुअल इतना जरूर कहता है कि शवों का उनके धर्मों के अनुसार अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा. 


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परिजन प्रदर्शन न करने की लिखित में देंगे मंजूरी
इस नियम के तहत दोषियों का परिवार अंतिम संस्कार के लिए लिखित आवेदन देते हैं तो जेल सुपरिटेंडेंट परिस्थिति के अनुसार शवों को परिवार को सौंप सकते हैं. इसमें एक खास शर्त है कि परिजनों को लिखित में देना होगा कि वह शव को लेकर कोई प्रदर्शन नहीं करेंगे.


जेल मैनुअल के अनुसार शव को पूरे सम्मान के साथ जेल से निकाला जाएगा. शव को अंतिम संस्कार स्थल तक ले जाने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था भी की जाती है. जेल सुपरिटेंडेंट को इसके लिए पूरा अधिकार होता है. 


परिवार शव न ले तो?
कई ऐसे मामले होते हैं, जिनमें परिवार शव नहीं लेता है. इस स्थिति में जेल प्रशासन ही उनका अंतिम संस्कार करता है. फिर इस प्रक्रिया को वह पूरे तरीके से संपन्न कराता है. नियम है कि अगर दोषियों का परिवार लिखित में शव लेने का आवेदन न दे तो शव के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी जेल सुपरिटेंडेंट की ही होती है. 


ऐसे में याद आता है रंगा-बिल्ला का केस
रंगा-बिल्ला, यह दो नाम इस देश के अपराध की दुनिया में चर्चित नाम हैं. इतने कि 1982 के बाद आज तक तिहाड़ को उनकी फांसी के लिए याद किया जाता है. इन दोनों ने दिल्ली में दो भाई-बहन गीता और संजय चोपड़ा का 1978 में अपहरण किया और गीता का बलात्कार कर दोनों की हत्या कर दी थी.


इस चर्चित मामले के बाद उन्हें तिहाड़ में फांसी दी गई थी. रंगा-बिल्ला को फांसी देने के बाद किसी ने उनका शव लेने के लिए आवेदन नहीं किया था, ऐसे में जेल प्रशासन ने ही इनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की थी.